अवमानना मामले में दोषी, बिना शर्त माफी मांगने का भी मिल सकता है मौका
नई दिल्ली : शीर्ष अदालत ने वकील प्रशांत भूषण को अवमानना का दोषी माना है. भूषण के खिलाफ यह मामला उनके 2 विवादित ट्वीट से जुड़ा है. एक ट्वीट में उन्होंने पिछले 4 चीफ जस्टिस पर लोकतंत्र को तबाह करने में भूमिका निभाने का आरोप लगाया था. दूसरे ट्वीट में उन्होंने बाइक पर बैठे मौजूदा चीफ जस्टिस की तस्वीर पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी. फैसला सुरक्षित रखते हुए सजा सुनाने की तारीख 20 अगस्त मुकर्रर की गई है. उस दिन सजा पर भी तजवीज की जाएगी. समझा जाता है कि उन्हें बिना शर्त माफी मांगने का अवसर भी दिया जा सकता है.
मौजूदा CJI पर भी की थी टिप्पणी
वर्तमान चीफ जस्टिस एस.ए. बोबड़े की एक तस्वीर 28 जून को सामने आई थी. इसमें वो महंगी बाइक पर बैठे नजर आए थे. इस तस्वीर पर भी वकील प्रशांत भूषण ने टिप्पणी की थी कि CJI ने सुप्रीम कोर्ट को आम लोगों के लिए बंद कर दिया है और खुद भाजपा नेता की 50 लाख रुपए की बाइक चला रहे हैं.
तस्वीर की सच्चाई यह थी कि मोटर बाइक के बेहद शौकीन जस्टिस बोबड़े अपने गृहनगर नागपुर में एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान, वहां खड़ी एक महंगी बाइक पर बहुत थोड़े समय के लिए बैठे थे. रिटायरमेंट के बाद अच्छी बाइक खरीदने की उनकी इच्छा की जानकारी मिलने पर एक स्थानीय डीलर ने उन्हें दिखाने के लिए वह बाइक भेजी थी.
गुना के वकील माहेक माहेश्वरी ने दायर की थी याचिका
मध्यप्रदेश के गुना के रहने वाले एक वकील माहेक माहेश्वरी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस ट्वीट की जानकारी दी थी. उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के बंद होने का दावा झूठा है. चीफ जस्टिस पर किसी पार्टी के नेता से बाइक लेने का आरोप भी गलत है. प्रशांत भूषण ने जानबूझकर तथ्यों को गलत तरीके से पेश किया और लोगों की नजर में न्यायपालिका की छवि खराब करने की कोशिश की. इसके लिए उन्हें कोर्ट की अवमानना का दंड मिलना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः लिया संज्ञान
सुप्रीम कोर्ट में अवमानना का मुकदमा शुरू करने से पहले याचिकाकर्ता को एटॉर्नी जनरल से सहमति लेनी होती है. माहेक माहेश्वरी ने ऐसा नहीं किया था. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस पर कहा था, “हमने याचिका में बताए गए तथ्यों को देखने के बाद खुद ही इस मसले पर संज्ञान लेने का फैसला लिया है. ऐसे में अब एटॉर्नी जनरल की मंजूरी नहीं है. हम अवमानना की कार्रवाई शुरू कर रहे हैं.”
4 पूर्व CJI पर भी किया ट्वीट
प्रशांत भूषण के एक और ट्वीट पर भी जजों ने संज्ञान लिया था. 27 जून के इस ट्वीट में भूषण ने यह लिखा था कि पिछले कुछ सालों में देश में लोकतंत्र को तबाह कर दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट के पिछले 4 चीफ जस्टिस की भी इसमें भूमिका रही है.“ सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि पहली नजर में भूषण के दोनों ट्वीट अवमाननापूर्ण लगते हैं. यह ट्वीट लोगों की निगाह में न्यायपालिका खास तौर पर चीफ जस्टिस के पद की गरिमा को गिराने वाले हैं.
भूषण का जवाब
प्रशांत भूषण ने अवमानना का नोटिस का जवाब अपने वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे पेश करते हुए दलील दी कि जजों की आलोचना को सुप्रीम कोर्ट की अवमानना नहीं माना जा सकता. यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हनन होगा. दवे ने कहा था कि मौजूदा चीफ जस्टिस की तस्वीर पर की गई टिप्पणी तथ्यों के बारे में पूरी जानकारी लिए बिना की गई थी. लेकिन उनका कहना था कि यह आम आदमी के प्रति भूषण की चिंता को दिखाता है. इसका मकसद सुप्रीम कोर्ट की अवमानना नहीं था. 4 पूर्व चीफ जस्टिस पर की गई टिप्पणी के बारे में दवे की दलील थी कि उनके कार्यकाल में कई बार सुप्रीम कोर्ट में जनहित के मुद्दों पर उस तरह से कदम नहीं उठाए, जैसी उम्मीद की जाती है.
दुष्यंत दवे ने कोर्ट में से यह भी कहा था कि न्यायिक क्षेत्र में प्रशांत भूषण के महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए उन्हें माफ कर दिया जाना चाहिए. दवे ने कहा था, “हमें तो यह उम्मीद थी कि प्रशांत भूषण का नाम पद्म पुरस्कार के लिए भेजा जाएगा. लेकिन उन्हें अवमानना का नोटिस दे दिया गया.”
कोर्ट का अदेश
अपना फैसला सुनाते हुए शीर्ष अदालत ने कहा, “30 साल से वकालत कर रहे शख्स से ऐसे ट्वीट्स की उम्मीद नहीं की जा सकती. उन्होंने जनहित से जुड़े मुद्दे कोर्ट में रखे हैं. लेकिन इन ट्वीटस को न्यायपालिका की स्वस्थ आलोचना नहीं समझा जा सकता. ये ट्वीट आम लोगों की नज़र में एक संस्था के तौर पर सुप्रीम कोर्ट और चीफ जस्टिस के सम्मान को गिराने वाले है.न्यायापालिका पर उनके विश्वास को चोट पहुंचाने वाले है.”
कोर्ट ने यह भी कहा है कि इसमें शक नहीं कि जजों को अपनी आलोचना को उदारता से लेना चाहिए. लेकिन इस सीमा तक नहीं कि जान-बूझकर, गलत नीयत से न्यायपालिका पर किए गए हमले पर सख्ती न की जाए.
सजा 20 अगस्त को
कोर्ट ने भूषण को दोषी मानते हुए सजा पर बहस के लिए 20 अगस्त की तारीख रखी है. कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट एक्ट 1971 के प्रावधानों के तहत अवमानना के मामले में अधिकतम 6 महीने की सजा हो सकती है. इस मामले में कोर्ट प्रशांत भूषण को जेल भेजने जैसी कड़ी सजा देगा या उन्हें कोई सांकेतिक सजा देगा या अगर वह बिना शर्त माफी मांगते हैं, तो उन्हें माफ कर देगा; यह सब कुछ 20 अगस्त को तय होगा.
एक और मामला लंबित, 16 अगस्त को सुनवाई
न्यूज चैनल “एबीपी न्यूज” से बातचीत में प्रशांत भूषण ने माना है कि उनके स्पष्टीकरण को स्वीकार न किया जाना निराशाजनक है. अभी इससे ज़्यादा प्रतिक्रिया वो नहीं देना चाहते. भूषण के खिलाफ अवमानना का एक और मामला लंबित है. 11 साल पहले उन्होंने पिछले 16 में से आधे चीफ जस्टिस को भ्रष्ट कहा था. इस मामले में भी उनके स्पष्टीकरण को कोर्ट ने संतोषजनक नहीं माना है. इस पर 16 अगस्त को सुनवाई है.
इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने प्रशांत भूषण को सजा देने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर ट्वीट कर अपनी यह प्रतिक्रया व्यक्त की है-
Through this act, the Supreme Court has let itself down, and has let the Republic down too. A dark day for Indian democracy.https://t.co/owN10z95FG
— Ramachandra Guha (@Ram_Guha) August 14, 2020