लूट की छूट से COVID-19 कोरोना मरीजों को बचाएं

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निजी और कारपोरेट अस्पतालों के व्यावसायिक शोषण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में गुहार

नई दिल्ली : निजी और कॉरपोरेट अस्पतालों में कोरोना रोगियों की लूट की छूट को उजागर करते हुए उपचार की आड़ में “भारत के नागरिकों को लूटने” से बचाने के लिए कथित घोटाले और दुर्भावनाओं पर सुप्रीम कोर्ट में एक हस्तक्षेप आवेदन दायर किया गया है. याचिका में बताया गया है कि “कई निजी अस्पताल राष्ट्रीय संकट की घड़ी में घातक वायरस से पीड़ित रोगियों का व्यावसायिक रूप से शोषण कर रहे हैं.”

सचिन जैन की ओर से दायर उस जनहित याचिका में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड मनीषा टी करिया के माध्यम से आवेदन को दाखिल दिया गया है, जिसमें निजी/कॉरपोरेट अस्पतालों में COVID-19 कोरोना के उपचार के नाम पर लूट जैसे शुल्क के नियमन की मांग की है.

दिशानिर्देश तैयार करने की मांग
याचिकाकर्ता और वकील सचिन जैन ने तर्क दिया है कि सभी संस्थाओं के लिए एक नियम होना चाहिए, जबकि केंद्र और राज्य सरकारों ने इन अस्पतालों को रोगियों से मनमाना लागत वसूलने के लिए अधिकार दे दिए हैं. शीर्ष अदालत को बताया गया है कि निजी अस्पताल शोषणकारी साधनों में लिप्त हैं और मरीजों से भारी रकम लूट रहे हैं. राज्य सरकारों द्वारा उपचार दरों पर कैप को लागू किए जाने से इन अस्पतालों को लूट की छूट मिल गई है. उन्होंने COVI19 रोगियों के दाखिले और अस्पताल से छुट्टी के लिए दिशानिर्देश तैयार करने की मांग भी शीर्ष अदालत से की है.

इस संदर्भ में याचिकाकर्ता ने इन अस्पतालों में दाखिला और उपचार के नियमन के लिए सुप्रीम कोर्ट को कुछ सुझाव भी दिए हैं –

a) संबंधित जिले में प्राधिकरण- जो भर्ती रोगियों के डेटा और स्थिति को बनाए रखने और अन्य रोगियों को बेड उपलब्ध कराने की स्थिति का निर्वहन करें. जो डेटा बनाए रखा जाएगा, उसका उपयोग जिले में उपलब्ध प्लाज्मा दाताओं की सूची बनाने के लिए भी किया जा सकता है.

b) COVI19 रोगियों को स्वीकार करने से इनकार करने का कारण अस्पताल के अधिकारियों द्वारा लिखित रूप में दिया जाना चाहिए. यह अस्पतालों को रोगियों को उनकी मनमर्जी और रिक्तियों के आधार पर मना करने से रोकने के लिए है.

c) हर जिले में विशिष्ट निगरानी समिति होनी चाहिए, जहां सभी अस्पतालों को, जो COVID-19 रोगियों को संभाल रहे हैं, उन्हें COVID-19 रोगियों की रिपोर्ट/रिकॉर्ड भेजना चाहिए और आर्टिफिशिल इंटेलीजेंस या इलेक्ट्रॉनिक मोड की मदद से बिलों की जांच करनी चाहिए.  

d) बिस्तर के अलावा अन्य चीजों की दर को ठीक करना- जैसे कि फार्मास्युटिकल उत्पाद, पीपीई किट, डॉक्टर की यात्रा आदि ताकि अस्पताल मरीजों को अधिभार न देना पड़े और साथ ही दवाओं और अन्य चिकित्सा उपकरण की भारी कीमत के कारण वित्तीय संकट का सामना न करना पड़े.

e) अस्पतालों के डॉक्टरों और अन्य सहायक कर्मचारियों के लिए लाभ को ठीक करना – जो वास्तविक COVID योद्धा हैं और कोई अतिरिक्त लाभ नहीं ले रहे हैं और जो अतिरिक्त शुल्क लिया जाता है वह केवल अस्पतालों और दवा कंपनियों के प्रबंधन की जेब में जा रहा है.

उन्होंने कहा, “निजी अस्पतालों में, जो COVID समर्पित अस्पताल हैं, उनके पास यह तय करने की कोई योग्यता नहीं है कि वे अस्पताल इसके उपचार का कितना शुल्क ले सकते हैं. ऐसे में वे मरीजों से 10 से 12 लाख रुपए वसूले जा रहे हैं. सरकार ने उन्हें बिना शुल्क के ऐसी शक्तियां दी हैं.”

बिलों के भुगतान से बीमा कंपनियों का इनकार
याचिका में कोरोना के रोगियों को इलाज के भारी रकमों के बिलों के भुगतान से बीमा कंपनियों के इनकार करने की विभिन्न रिपोर्टों की ओर भी शीर्ष अदालत का ध्यान दिलाया गया है. याचिका में बताया गया है कि अगर अस्पतालों द्वारा इस तरह के बढ़ाए गए बिल बीमा उद्योग के लिए चिंता का विषय बन सकता है तो एक आम आदमी की क्या दुर्दशा होगी, जिसके पास ना तो साधन हैं और प्रतिपूर्ति करने के लिए न ही बीमा कवर है, यदि उसके एक निजी अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है.

यह गंभीर चिंता का विषय है कि भारत में लोगों का एक बड़ा वर्ग अभी भी किसी भी बीमा कवर का अधिकारी नहीं है और किसी भी सरकारी स्वास्थ्य योजना के तहत भी नहीं कवर नहीं हैं.

याचिकाकर्ता ने यह भी बताया है कि भारत सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पूर्व में दिए गए हलफनामे और सुझाव इन शिकायतों को दूर करने के लिए पर्याप्त नहीं है. अतः COVID -19 के लिए दवा और अन्य उत्पादों की लागत को सीमित करने के लिए विशिष्ट दिशानिर्देश और नियमों की तत्काल आवश्यकता है. यह धर्मार्थ संस्थानों की भी मदद करेगा जो COVID-19 रोगियों और यहां तक कि अस्पतालों की भी लागत बचाने और बेहतर सेवा करने में मदद कर रहे हैं.”  

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