EPS -95

EPS -95 : धूल झोंक रहा है EPFO केंद्र की मोदी सरकार की आंखों में

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कर रहा सेवानिवृत्तों के मानवाधिकार, मौलिक अधिकार और नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का हनन

नागपुर : इम्पलाइज पेंशन स्कीम-95 (EPS -95) में पिछले 1 सितम्बर 2014 को किया गया संशोधन पूर्णतः मानवाधिकार, मौलिक अधिकार और नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का हनन है. यह संशोधन, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ EPFO) केंद्र की मोदी सरकार को अंधेरे में रखकर करवाने में सफल रहा है. यह निजी क्षेत्र और सार्वजनिक क्षेत्र के सेवानिवृत कर्मियों के मानवाधिकार, मौलिक अधिकार और नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का हनन है.

इस तथ्य को मातोश्री जनसेवा सामाजिक बहुद्देशीय संस्था के अध्यक्ष दादाराव झोड़े ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भेज कर उनके संज्ञान में लाने का प्रयास किया है. दादा झोड़े ने प्रधानमंत्री को बताया है कि इस महत्वपूर्ण तथ्य से EPFO और केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय ने आपके और भारत सरकार के ध्यान में इतनी बड़ी गड़बड़ी छुपा कर यह संशोधन कराने में सफल रहा है. इम्पलाइज पेंशन स्कीम-95 (EPS -95) में यह अनैतिक और अवैधानिक संशोधन पिछले 1 सितम्बर, 2014 से GSR No. 609 (E) / 22-08-2014 के अंतर्गत लागू हो गया है. जिसे हजारों कर्मचारियों और सेवानिवृत्तों को हाईकोर्ट में चुनौती देनी पड़ी.

संशोधन से नुकसान
EPS- 95 में किए गए इस संशोधन से मुख्य रूप से सेवानिवृत्तों के निम्नलिखित मानवाधिकार और वैधानिक अधिकारों का हनन हुआ है –

1. उच्चतम पेंशन के प्रावधान का विलोपन,
2. पेंशन के गणना में 12 महीनों की बजाय 60 महीनों के अंतिम वेतन का औसत कर दिया जाना, और  
3. कर्मचारियों के अंशदान की वैधानिक कटौती से बढ़ कर 1.16 प्रतिशत अधिक राशि की वसूली.

इनके अलावा भी इसमें संशोधन के जरिए कर्मचारियों को व्यापक रूप से वंचित करने की कोशिश हुई है. ये संशोधन अत्यंत वयोवृद्ध सेवानिवृत्तों को नुक्सान पहुंचाने वाले और कर्मचारियों के हितों का दमन करने वाले हैं. यह सरकार पहला ऐसा गैरकानूनी संशोधन है, जिसे केंद्र में 26-05-2014 को बनी भारतीय जनता पार्टी की नई सरकार की आंखों में धूल झोंक पारित करवा कर 1-09-2014 से EPFO लागू करवाने में सफल हो गया. इसे बाद में सरकार द्वारा गठित संसदीय जांच कमेटी, केरल हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी खारिज कर चुके हैं.

केरल हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया…
केरल हाईकोर्ट ने 15,000 से अधिक लोगों द्वारा दायर 507 मुकदमों की एकसाथ सुनवाई के पश्चात 12 अक्टूबर 2018 को इस अवैधानिक और अनैतिक संशोधन को खारिज कर दिया. केरल हाईकोर्ट के इस फैसले को EPFO ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट ने भी सुनवाई के पश्चात EPFO की अपील को खारिज कर दिया और केरल हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए इस संशोधन को अवैधानिक, मनमाना और असंवैधानिक करार देते हुए 1 अप्रैल 2019 को आदेश जारी किया.

आश्वासनों से मुकर कर सुप्रीम कोर्ट में दायर कर दी रिव्यू पिटीशन और SLP  
दादा झोड़े ने प्रधानमंत्री को बताया है कि भारत सरकार और केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय ने पहले तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करते हुए सभी पेंशनरों (सेवानिवृत्तों) की शिकायतों का निपटारा करने का आश्वासन दिया. लेकिन तुरंत बाद अपने वचनों से मुकरते हुए सुप्रीम कोर्ट के 1 अप्रैल 2019 के आदेश और केरल हाईकोर्ट के फैसले के विरुद्ध फिर से सुप्रीम कोर्ट में एक पुनर्विचार याचिका और SLP दायर कर दी गई है. उन्होंने कहा है कि ऐसा केवल पेंशनरों के वैधानिक अधिकार से उन्हें वंचित रखने के उद्देश्य से किया गया है. उन्होंने बताया है कि भारत सरकार का यह निर्णय बहुत ही गलत और देश के कर्मचारियों एवं पेंशनरों के पूर्णतः विरुद्ध है.

संसदीय कमेटी ने भी इसे अवैधानिक और अन्यायपूर्ण बताया…
दादा झोड़े ने प्रधानमंत्री का ध्यान भारत सरकार द्वारा 6ठी लोकसभा के सदस्य श्री दिलीप कुमार मनसुखलाल गांधी के सभापतित्व में 2015-16 में (GSR No. 609 (E) dated 22-08-2014 and  w.e.f. 1-09-2014) उपरोक्त संशोधन की जांच के लिए एक कमेटी का गठन किया गया था. इस कमेटी ने भी संशोधन को अत्यंत अवैधानिक, मनमाना, असंवैधानिक और नैसर्गिक न्याय के विरुद्ध करार दिया है.

NPS का भी हवाला दिया कमेटी ने  
कमेटी ने अपनी अनुशंसा में कहा है कि यह संशोधन 1 सितम्बर 2014 से पहले और उसके बाद सेवा में नियुक्त हुए किसी भी कर्मचारी पर लागू करने योग्य नहीं है. अपनी इस अनुशंसा के समर्थन में कमेटी ने नई पेंशन स्कीम (NPS) का भी हवाला दिया गया है, जिसमें इसी तर्क के आधार पर 31-12-2003 के पूर्व नियुक्त कर्मचारियों पर NPS लागू नहीं किया गया है. कमेटी की यह रिपोर्ट 10-08-2016 को लोकसभा में पेश किया गया है.

देश के सर्वोच्च अदालत और हाईकोर्ट के साथ संसदीय समिति की अवहेलना
दादा झोड़े के प्रधानमंत्री संज्ञान में उपरोक्त सभी तथ्य लाते हुए आश्चर्य व्यक्त किया है कि लोकसभा की इस जांच कमेटी की रिपोर्ट को न तो कोइ तव्वजो दी और न ही उसने केरल हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की आदेशों का ही पालन करना जरूरी समझा. ध्यान देने वाली बात तो यह है कि EPFO ने संसदीय कमेटी सहित केरल हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की भी अवहेलना की है.

उन्होंने आरोप लगाया है कि EPFO के कहे में आकर सरकार भी देश के वरिष्ठ नागरिकों के मानवाधिकारों, मौलिक अधिकार और न्याय के नैसर्गिक सिद्धांतों के हनन की दोषी बन गई है. उन्होंने कहा है कि यह अत्यंत निकृष्ट दृष्टांत है और सुशासन के परिप्रेक्ष्य में तो बिलकुल ही नहीं कहा जा सकता.

सरकार बनी मूक दर्शक..
झोड़े ने अपने पत्र में कहा है कि EPFO और सरकार के इस कृत्य से देश के लाखों वयोवृद्ध पेंशनर्स और वरिष्ठ नागरिकों को उनके वैधानिक अधिकार से वंचित किया जाना घोर अमानवीय कृत्य है. लाखों वयोवृद्ध को अपनी उत्तरजीविता के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. इन वंचितों को अपनी पेंशन राशि को न्यायसंगत बनाने के लिए सड़कों पर आकर गुहार लगाने के लिए मजबूर कर दिया गया है. सरकार इन वंचितों के वैधानिक अधिकार का संरक्षण करने की बजाय उन्हें EPFO द्वारा छेड़ी गई अन्यायपूर्ण अदालती जंग का मूक दर्शक बने रहना पसंद कर रही है.

प्रधानमंत्री से अपील
दादा झोड़े ने प्रधानमंत्री से विनम्र अपील की है कि वे इस अन्याय को रोकें और संसदीय कमेटी की रिपोर्ट की अनुशंसा, केरल हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर नजर डालें और भारत सरकार को सुप्रीम कोर्ट से अपनी अवैधानिक पुनर्विचार याचिका और SLP वापस लेने का आदेश दें और वयोवृद्ध पेंशनरों को न्याय दिलाएं. दादा जोड़े ने अपने पत्र की प्रति केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय के सचिव और सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश को भी भेजी है.   

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