ढपोरशंख

ढपोरशंख भी है ‘सेवानिवृत्तों का अभिशाप’ यह EPFO- (भाग 2)

देश
Share this article

दावा करता है कि हम विश्व के सबसे बड़े “सामाजिक सुरक्षा” प्रदान करने वाले संगठन हैं

*कल्याण कुमार सिन्हा,
आलेख :
सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की ढपोरशंख जैसे दावे करने वाला कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) भारत सरकार के लिए आत्मप्रचार का बहुत ही बढ़िया माध्यम रहा है. लेकिन असलियत यह है कि यह ढपोरशंख संगठन अपनी योजनाओं के तहत निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के सेवानिवृत कर्मियों को उचित और न्यायपूर्ण पेंशन के अधिकार से वंचित रखने में अग्रणी बना हुआ है. इसने तो वयोवृद्ध सेवानिवृत्तों के मानवाधिकार, मौलिक अधिकार का हनन कर नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों को भी कुचल कर रख दिया है.

EPFO के ढपोरशंख जैसे दावों की पोल तो पेंशन देने के मामले में 12 जुलाई 2016 को ही तब खुली, जब देश के सर्वोच्च अदालत ने इसकी EPF 95 योजना के तहत सेवानिवृत्त कर्मियों को उनके वास्तविक अंतिम वेतन के आधार पर निर्धारित कर उच्चतम पेंशन (Higher Pension) देने का दो टूक फैसला सुनाया.

इससे पूर्व यह ढपोरशंख संगठन सरकार के पुरातन नियमों के अंतर्गत कर्मचारियों का वास्तविक वेतन चाहे जितना भी अधिक हो, पेंशनेबुल वेजेज (Pensionable Weges) मात्र 5,000 अथवा 6,500 रुपए तय कर रखा था. सुप्रीम कोर्ट ने इसे और सरकार दोनों को आईना दिखा दिया. लेकिन इसके बाद सभी रिटायर्ड कर्मियों को उच्चतम पेंशन देने के मार्ग में इसने बाधाएं भी खड़ी करनी शुरू कर दीं. एक्जम्पटेड और नॉन एक्जम्पटेड नियोक्ता का भेद खड़ा किया. जिन कर्मियों ने इन बड़ी बाधाओं को पार कर लिया, उनका तो उच्चतम पेंशन निर्धारित कर यह पुनरीक्षित पेंशन देने पर बाध्य होना पड़ा.

लेकिन देश भर के ऐसे 65 लाख पेंशनरों में से करीब 24 हजार ही ऐसे लोग थे, जिन्होंने इसके द्वारा खड़ी की गई बाधाओं को पार करने में लेकिन उसके बाद क्या हुआ? यह जान कर देश के आम लोगों को आश्चर्य ही होगा. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ  कर दिया था कि उच्चतम पेंशन वास्तविक अंतिम वेतन पर ही निर्धारित किए जाएं. लेकिन नई-नई सत्ता में आई नरेंद्र मोदी सरकार ने भी अपनी पीठ ठोकने के लिए पूर्व के 6,500 रुपए पेंशनेबुल वेजेज को बढ़ा कर सितंबर 2014 से 15,000 रुपए की सीमा बांध दी. अर्थात चाहे वास्तविक वेतन जितना भी अधिक हो, पेन्शन 15,000 रुपए पर ही तय करने की मनमानी छूट EPFO को दे दी गई.

यह एक असंवैधानिक नियम है, इसका विरोध लाजिमी था. यह सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट फैसले को कुंद करने बड़ी चाल थी. केरल के 15,000 से अधिक सेवानिवृत्तों ने केरल हाईकोर्ट में केंद्र सरकार के इस फैसले के विरोध में गुहार लगाई. केरल हाईकोर्ट ने पेंशनेबुल वेजेज की नई सीमा बांधने को गलत और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरीत बताते हुए सरकार द्वारा पेंशन मामले में सीमाबंदी को खारिज कर सभी को वास्तविक अंतिम वेतन के आधार पर ही उच्चतम पेंशन देने का फैसला सुनाया. 12 अक्टूबर, 2018 के केरल हाईकोर्ट के इस फैसले को खारिज करवाने EPFO सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. लेकिन वहां उसे मुंह की कहानी पडी. सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के फैसले को उचित बताते हुए EPFO की अपील 1 अप्रैल, 2019 को खारिज कर दी.

लेकिन पेंशनरों को उच्चतम पेंशन से वंचित रखने की अपनी ओछी नीतियों के तहत ढपोरशंख EPFO ने केंद्र सरकार को झूठ की पट्टी पढ़ा कर यह समझाया कि इस फैसले को लागू करने पर 15 लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ेगा. इसके साथ ही उसने सुप्रीम कोर्ट में एक रिव्यू पीटीशन (Review Petition) दाखिल कर दिया और केंद्र सरकार ने भी एक एसएलपी (Special Leave Petition) ठोक डाली.

और इसके साथ ही उसने उन 24 हजार लोगों के उच्चतम पेंशन पर भी रोक लगा दी, जिन्हें यह मिलना शुरू हो गया था. तर्क यह दिया कि यह मामला अदालत में विचाराधीन है. अब यह दोनों पीटीशन सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं. 2 फरवरी 2020 को इसकी पहली सुनवाई सुप्रीम कोर्ट ने की, जहां EPFO और केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने वही 15 लाख करोड़ रुपए के बोझ की झूठी दलील पेश की. अब उसके बाद से सुप्रीम कोर्ट प्रत्येक महीने सुनवाई की तिथि तो घोषित करता है, लेकिन अभी तक एक बार भी सुनवाई नहीं हुई. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट में अनेक गैर जरूरी मामलों की आनन-फानन में तिथि तय कर सुनवाई की है व फैसले भी सुनाए हैं. लेकिन देश के करीब 65 लाख जीवन के अंतिम छोर में पहुंचे “अच्छे दिन” देख पाने की वाट जोह रहे सेवानिवृत वरिष्ठ नागरिकों के भविष्य से जुड़े  मामले की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट समय नहीं निकाल पा रहा है. आश्चर्य है..!

(विश्व के सबसे बड़े सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने वाले इस ढपोरशंखी EPFO की निष्क्रियता और सेवानिवृत्तों के प्रति इसके गैरजिम्मेदाराना रवैये के बारे में पढ़ें इस सीरीज के तीसरे भाग में)

Leave a Reply