जिला अस्पतालों में सार्वजनिक-निजी भागीदारी योजना लागू होगी

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हृदय, कैंसर और फेफड़े संबंधी बीमारियों का इलाज जन आरोग्य योजना या राज्य बीमा योजना के तहत होगा

नई दिल्ली : हृदय, कैंसर और फेफड़े संबंधी गैर-संक्रामक बीमारियों के पूर्व निर्धारित दरों पर इलाज के लिए जिला अस्पतालों में बेहतर ढांचागत सुविधा स्थापित करने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी लागू करने के लिए नीति आयोग प्रयत्नशील है. उसने सरकार को इस आशय का सुझाव भी दिया है. लेकिन यह योजना सरकार कब तक अमल में लाएगी, यह अभी तय नहीं है.

सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) माडल के तहत राज्य सरकारों द्वारा मौजूदा जिला अस्पतालों में हृदय, कैंसर और फेफड़े संबंधी बीमारियों के इलाज के लिए सुविधा स्थापित करने को लेकर निजी क्षेत्र को जगह उपलब्ध कराया जाएगा.

गैर-संक्रामक बीमारियों के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी को लेकर दिशानिर्देश जारी करते हुए नीति आयोग सदस्य वी.के. पॉल ने बुधवार को कहा कि पीपीपी माडल के तहत इलाज की लागत वही होगी, जो आयुष्मान भारत के अंतर्गत जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई) या राज्य बीमा योजना के तहत होगी. जिन राज्यों में बीमा पैकेज नहीं उपलब्ध नहीं, वे उस अवधि के लिये सीजीएचएस पैकेज दरों का उपयोग कर सकते हैं.

दिशानिर्देश के अनुसार निजी भागीदार सुविधाओं को उन्नत बनाने, निर्माण और मानव संसाधन की तैनाती में निवेश करेंगे. दिशानिर्देश दस्तावेज के अनुसार, “ऐसी उम्मीद है कि गैर-संक्रामक बीमारी (एनसीडी) के इलाज की सुविधा जिला अस्पतालों में होगी और ये सुविधाएं जिला स्तर पर सरकारी अस्पतालों में उक्त बीमारियों से जुड़ी सेवाओं तक पहुंच बेहतर बनाएगी.”

इसके अनुसार, “एनसीडी इलाज की सुविधा से जुड़ी सभी सेवाएं एकल इकाई उपलब्ध कराएगी. यह ट्रस्ट, कंपनी, समूह आदि हो सकते हैं.” पीपीपी माडल विशेषीकृत एनसीडी सेवा उपलब्ध कराएंगे. साथ ही जिला स्तर पर विशेषज्ञों की उपलब्धता सुनिश्चित करेगा. दिशानिर्देश दस्तावेज के अनुसार, “राज्य सरकार भेजे गए उन सभी मरीजों की तरफ से निजी क्षेत्र को भुगतान करेगी जो एनसीडी केंद्रों पर सेवाएं प्राप्त करेंगे.”

पॉल ने कहा कि भारत को स्वास्थ्य क्षेत्र में और निवेश की जरूरत है क्योंकि बेहतर इलाज की सुविधा की आपूर्ति से जुड़े मसले हैं. उन्होंने कहा, “हम जांचे-परखे मॉडल पर भरोसा कर रहे हैं और उसे एनसीडी में लागू कर रहे हैं, जिसकी लंबे समय से उपेक्षा की गई है.”

इस मौके पर नीति आयोग के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) अमिताभ कांत ने कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र में निजी भागीदारी से समान वृद्धि को प्रोत्साहन मिलेगा. साथ ही वैश्विक स्तर का बुनियादी ढांचा, विशेषज्ञ उपलब्ध कराने में मददगार होगा. दस्तावेज में कहा गया है कि हालांकि जन्म के समय जीवन प्रत्याशा जैसे मामलों में काफी सुधार हुए हैं, लेकिन गैर-संक्रामक बीमारियां मृत्यु दर का एक प्रमुख कारण है. इसका देश में कुल बीमारियों में 55 प्रतिशत तथा मृत्यु में 62 प्रतिशत से अधिक योगदान है.

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