मारबत और पोला की धूम मची नागपुर और विदर्भ में

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मारबत
नागपुर के बडकस चौक पर काली-पीली दोनों मारबत का मिलन हुआ.

नागपुर : नागपुर शहर शनिवार, 27 अगस्त को 142 वें वर्ष भी परम्परागत ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मारबत जुलूस का साक्षी रहा. साथ ही विदर्भ के परम्परागत पोला पर्व शुक्रवार को संपन्न होने के बाद, शनिवार को ही तान्हा पोला भी मनाया गया. मारबत जुलूस की परम्परा नागपुर के तेली समाज के लोगों ने शुरू किया था. यह वार्षिक आयोजन आगे चल कर आजादी की लड़ाई में अंग्रेजी सत्ता और गुलामी की जंजीरों को तोड़ने की प्रेरणा भी बन गया था.

(नागपुर- नागपूरातील मारबत ही प्रथा १४२ वर्ष जुनी आहे. भोसले कालीन ही प्रथा आहे पोळ्याच्या पाडव्याच्या दिवशी साजरी केली जाते. मागील कोरोनाच्या २ वर्षे हे काढण्यात आली नव्हती. परंतु यंदा ती जल्लोषात होत असल्याने म्हणून आज लोकांमध्ये उत्साह दिसत आहे.)


बुराई की प्रतीक काली मारबत और अच्छाई की प्रतीक पीली मारबत

नागपुर शहर में 142 वर्ष पूर्व शुरू किया गया ‘बुराई की प्रतीक काली मारबत और अच्छाई की प्रतीक पीली मारबत’ का जुलूस अब विदर्भ के अन्य शहरों की सांस्कृतिक विरासत के रूप में शामिल हो गया है. नागपुर में इस बार भी “इड़ा पिड़ा रोगाराई… दुष्ट प्रवृति आणि संकटानां घेऊन जा रे मारबत” अर्थात ‘रोग दुःख कुप्रवृतियां हर तरह के संकट साथ ले जाओ री मारबत” की गूज सुनाई दी.

शनिवार को नागपुर के जग्गनाथ बुधवारी से बुराई की प्रतीक काली मारबत के विशालकाय पुतले का जुलूस निकला और इतवारी के श्रीदेवस्थान से अच्छाई और भलाई की प्रतीक भव्य पीली मारबत के साथ लोगों का हुजूम आगे बढ़ा. दोनों मारबत का मिलन नेहरू पुतला चौक पर हुआ.

बड़गों (काली मारबतों) के साथ ढोल-ताशों और डीजे के लय पर नाचते-थिरकते जनसैलाब को देखने के लिए इतवारी से बडकस चौक तक हजारों की संख्या में सपरिवार लोग उनका उत्साह बढ़ाते नजर आए. कुल बुराई के बैनरों के साथ 12 बड़गे निकाले गए थे. इस वर्ष बुराइयों की सूची में महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी को शामिल किया गया था.


किसानों के मित्र बैल जोड़ियों का सम्मान पर्व- पोला

इन दोनों सांस्कृतिक और ऐतिहासिक लोक पर्व के प्रति आस्था और जुड़ाव का अद्भुत दृश्य पिछले दो वर्षों के कोरोना महामारी के बाद अपनी पूरे शबाब में नजर आई. पोला पर किसान अपने कृषि कार्य के सबसे प्रिय और निकट सहयोगी अपने बैल जोड़ियों के प्रति सम्मान प्रदर्शित करते हुए उन्हें नहला-धुला सजाते हैं और उनकी पूजा कर उनके प्रति अपने प्रेम प्रदर्शित करते हैं. सामूहिक रूप से मनाए जाने वाला यह पर्व मुहल्लों और गांवों में उत्सव का रंग भर देते हैं.


लकड़ी के बैलों के साथ बच्चे मनाते हैं तान्हा पोला

इसी तरह दूसरे दिन अन्नदाता किसान अपने बच्चों को भी बैल राजा के प्रति प्रेम करना, उनका सम्मान करना सिखाने के लिए तान्हा पोला पर्व मनाते हैं. बच्चे लकड़ी से बने छोटी-छोटी चारपहिया वाहनों पर बने लकड़ी के हे बैल को सजाते हैं और उन्हें लेकर एक दूसरे के घरों में जाते हैं, जहां घर वाले उन लकड़ी के बैलों का सम्मन कर बच्चों का उत्साह बढ़ाते हैं. शहरों में मुहल्लों, कॉलोनियों और रेसिडेंसियल अपार्टमेंट के लोग भी अपने बच्चों के साथ तान्हा पोला पर्व मनाते हैं.

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