अधिकतम विचाराधीन कैदियों को रिहा करें : कानून मंत्री

0
626
अधिकतम
जयपुर में शनिवार, 16 जुलाई को 18वीं अखिल भारतीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (नालसा) में बैठक को संबोधित करते हुए केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू.

अदालतें केवल विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के लिए नहीं, अंग्रेजीदां वकीलों को अधिक फीस, अधिक केस नहीं मिलने चाहिए

 
जयपुर (राजस्थान) : केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों से प्रयास करने की अपील की, ताकि भारत की स्वतंत्रता के 75वें साल के दिन 15 अगस्त, 2022 तक अधिकतम विचाराधीन कैदियों को रिहा किया जा सके. 

15 अगस्त तक अधिकतम विचाराधीन कैदियों को रिहा करें 

कानून मंत्री ने कहा, “मैं सभी राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों से अपील करता हूं कि वे विचाराधीन कैदियों को कानूनी सलाह/सहायता प्रदान करने के अपने प्रयासों को और तेज करें, ताकि 15 अगस्त 2022 को या उससे पहले आजादी का अमृत महोत्सव मनाते हुए अधिकतम संख्या में विचाराधीन कैदियों को रिहा किया जा सके.”

अधिकतम
जयपुर में शनिवार, 16 जुलाई को 18वीं अखिल भारतीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (नालसा) बैठक का दृश्य.

जयपुर में शनिवार को 18वीं अखिल भारतीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बैठक को संबोधित करते हुए कानून मंत्री ने स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में देश में लंबित पांच करोड़ से अधिक मामलों पर चिंता व्यक्त की. मंत्री ने बड़ी संख्या में विचाराधीन व्यक्तियों के जेलों में बंद रहने पर भी चिंता व्यक्त की. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एन.वी. रमाना, सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस यू.यू. ललित और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश समारोह में शामिल थे.
 
देश में 3.5 लाख विचाराधीन कैदी

कानून मंत्री रिजिजू ने कहा, “इस आज़ादी का अमृत काल में 3.5 लाख कैदी हमारे देश में विचाराधीन कैदी हैं. हर जिले में जिला न्यायाधीशों के नेतृत्व में समीक्षा समिति है. हम हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों से सक्रिय भूमिका निभाने का आग्रह करते हैं. हम उनसे जिला न्यायाधीशों को प्रभावित करने के लिए अधिक सक्रिय भूमिका निभाने का आग्रह करते हैं. जितना संभव हो सके रिहा करें. क्योंकि, भारत सरकार ने कैदियों को विशेष छूट देने का फैसला किया है और दिशानिर्देश तैयार किए गए हैं. हम विचाराधीन समीक्षा समितियों से कार्य करने का आग्रह करते हैं कि वे अधिक सक्रिय रूप से और अधिकतम लोगों की मदद करें.”

अदालतें केवल विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के लिए नहीं हो सकतीं 

अपने संबोधन में रिजिजू ने वकीलों की अत्यधिक फीस पर भी चिंता व्यक्त की, जो आम आदमी के लिए न्याय तक पहुंच में बाधा उत्पन्न करती है. 
कानून मंत्री ने कहा, “जो लोग अमीर और साधन संपन्न होते हैं उन्हें अच्छे वकील मिलते हैं. दिल्ली सुप्रीम कोर्ट में कई वकील आम आदमी के लिए अफोर्डेबल हैं. अगर वकील प्रति सुनवाई के लिए 10-15 लाख चार्ज करते हैं तो आम आदमी कैसे खर्च कर सकता है? अदालतें केवल विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के लिए नहीं हो सकती. न्याय का दरवाजा हमेशा सभी के लिए समान रूप से खुला होना चाहिए.”

हाईकोर्ट और निचली अदालतों में क्षेत्रीय भाषाओं के प्रयोग पर भी जोर

उन्होंने कहा, “सुप्रीम कोर्ट में तर्क और निर्णय अंग्रेजी में हैं. हमारा विचार है कि हाईकोर्ट और निचली अदालतों में क्षेत्रीय भाषाओं को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है. ऐसे वकील हो सकते हैं, जो कानून के जानकार हों, लेकिन अपनी दलीलें अंग्रेजी में पेश नहीं कर सकते. यदि स्थानीय भाषाओं को न्यायालयों में अनुमति दी जाती है तो हम कई समस्याओं का समाधान कर सकते हैं. 

रिजिजू ने कहा कि यदि मैं अंग्रेजी नहीं बोल सकता तो मुझे अपनी मातृभाषा में बोलने की स्वतंत्रता होनी चाहिए. ऐसा नहीं होना चाहिए कि केवल अंग्रेजी बोलने वालों को ही अधिक फीस, ज्यादा केस और ज्यादा इज्जत मिले. मैं इसका विरोध करता हूं. मातृभाषा अंग्रेजी से कम नहीं है. अगर हम हाईकोर्ट और निचली अदालतों में स्थानीय भाषा को मौका देते हैं तो यह हमारे लिए अच्छा होगा.” 

मंत्री ने यह भी कहा कि आगामी संसद सत्र में 71 अप्रचलित अधिनियमों को निरस्त कर दिया जाएगा और सरकार की मंशा आम लोगों के लिए कानूनी अनुपालन की आवश्यकता को कम करना है.

NO COMMENTS