महा विकास आघाड़ी : शांसत में महाराष्ट्र की उद्धव सरकार

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महा विकास

फडणवीस की बाजीगरी : सीधे सीएम पर वार, सोमैया के तीर और केंद्रीय एजेंसियों की सक्रियता

*कल्याण कुमार सिन्हा-
राजनीतिक दांवपेंच : महाराष्ट्र की महा विकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन सरकार को भारतीय जनता पार्टी के एक के बाद एक बड़े हमलों ने शांसत में डाल रखा है. आरोपों और सरकार जाने की भविष्यवाणियों के बाद अब मंत्रियों, नेताओं के नजदीकियों के साथ अब रिश्तेदार के कारनामे उजागर कर सीधे सीएम पर वार..! भाजपा का आघाड़ी नेताओं पर ‘वार पर वार’ का सिलसिला जारी है. मुसीबत है कि महा विकास आघाड़ी की जवाबी रणनीति भी भाजपा नेताओं के सीडीआर, टेलीफोन इंटरसेप्टर, वीडियो में कैद हो जाते हैं. अब तो मुख्यमंत्री के दामन को भी दागदार बनाने वाली खबर सामने आ गई है. उनके रिश्तेदार पर भी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने हाथ डाल दिया है.

शिवसेना और महा विकास आघाड़ी के नेतागण इस घटना पर खुल कर प्रतिक्रिया व्यक्त करने से बचते हुए भी यही राग अलाप रहे हैं कि पश्चिम बंगाल की तरह केंद्र की भाजपा सरकार राज्य सरकार के विरुद्ध केंद्रीय एजेंसियों का दुरूपयोग कर रही है. हालांकि यह भी सच है कि केंद्रीय एजेंसियां बिना तथ्य के किसी पर हाथ नहीं डालती.

महाराष्ट्र में तो पहले से ही भाजपा नेताओं ने महा विकास आघाड़ी के विरुद्ध अपनी सक्रियता बना रखी है. सरकार के मंत्रियों और नेताओं के विरुद्ध एक ओर पूर्व सांसद किरीट सोमैया के तरकश के तीर खत्म होने का नाम नहीं ले रहे. सरकारी दस्तावेजों के हवाले से इनके कारनामे उजागर कर सोशल मीडिया को सोमैया ने अपना हथियार बना लिया है तो दूसरी ओर विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी अपने ताजा हमले में कॉल डेटा रिकॉर्ड (सीडीआर), टेलीफोन इंटरसेप्ट, वीडियो फुटेज और यहां तक कि पुलिस को दिए गए बयानों सहित संवेदनशील और गोपनीय जानकारी को हथियार बनाया है. सरकार के लिए फडणवीस यह हमला बहुत भारी पड़ रहा है. वैसे फडणवीस द्वारा सरकार की ही संवेदनशील और गोपनीय जानकारियों को हथियार बनाया जाना विवाद का विषय भी बना है.

एक के बाद एक जबरदस्त हमलों के बाद भी सरकार की सेहत पर भले ही कोई खास असर पड़ता दिखाई नहीं देता, भले ही छवि की ऐसी की तैसी तो हो रही हो. सत्ता के गलियारों से नजदीकी रिश्ता रखने वालों का कहा मानें तो उनके अनुसार, “कुर्सी हाथ से न निकल जाए, इस भय ने तीनों दलों को बांधे रखा है. नहीं तो अघाड़ी के अंतर्विरोध ही आघाड़ी का काम तमाम किए देता.”

भारी पड़ रहे भाजपा के आरोप
फडणवीस पिछले एक साल से मिसाइल पर मिसाइल दागते चले जा रहे हैं. आधा दर्जन ऐसे मामलों में फडणवीस ने गोपनीय सूचनाओं का इस्तेमाल कर सरकार को न केवल शर्मिन्दा किया है, बल्कि हिला भी दिया है. सरकार के मंत्रियों पर आरोपों की झड़ी के जवाब में आघाड़ी सरकार के जवाबी आरोप और कार्रवाई भी जारी है. इससे भाजपा पर विशेष फर्क पड़ता तो नहीं दिख रहा, लेकिन आघाड़ी के तीनों दलों पर भाजपा के आरोप भारी जरूर पड़ रहे हैं.

प्रदेश की सत्ता में शामिल पार्टियां- शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), हालांकि फडणवीस के इन हमलों का माकूल जवाब नहीं दे पाई है. लेकिन उनका दावा है कि सरकारी जांच एजेंसियों की मदद के बिना ऐसी जानकारी तक फडणवीस की पहुंच संभव नहीं है.

केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल कर रहे फडणवीस : शरद पवार
फडणवीस ने एक वीडियो जारी करके आरोप लगाया था कि उद्धव सरकार के मंत्री भाजपा नेताओं को फर्जी केस में फंसाने की कोशिश कर रहे थे. इसे लेकर नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) सुप्रीमो शरद पवार ने कहा कि उद्धव सरकार को नहीं गिरा पाने से भाजपा बौखलाई हुई है और अघाड़ी के नेताओं की कर रही है.

पवार ने कहा कि जिस तरह से फडणवीस ने वीडियो जारी किया उससे ऐसा लगता है कि केंद्रीय एजेंसियां रिकॉर्डिंग में शामिल हैं. उन्होंने कहा, “मैंने सुना है कि रिकॉर्डिंग 125 घंटे की है. अगर यह सच है, तो आपको इसको अंजाम देने के लिए शक्तिशाली एजेंसियों के मदद की आवश्यकता होगी. ऐसी एजेंसियां केवल केंद्र सरकार के पास उपलब्ध हैं. वे राज्य सरकार के एक कार्यालय में घुसने और घंटों तक गुप्त रिकॉर्डिंग करने में कामयाब रहे. मुझे विश्वास है कि राज्य सरकार घटना की जांच करेगी और टेप की सत्यता की भी जांच करेगी. भाजपा नेता शिकायत करते हैं और फिर चुने हुए प्रतिनिधियों को निशाना बनाया जाता है. यह महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में हो रहा है.”

दाल में कुछ तो काला है…
पवार की इस प्रतिक्रिया से एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि फडणवीस टेप और वीडियो में दम तो है. पवार मानते हैं, “अगर यह सच है, तो आपको इसको अंजाम देने के लिए शक्तिशाली एजेंसियों के मदद की आवश्यकता होगी. ऐसी एजेंसियां केवल केंद्र सरकार के पास उपलब्ध हैं. वे राज्य सरकार के एक कार्यालय में घुसने और घंटों तक गुप्त रिकॉर्डिंग करने में कामयाब रहे.”

फडणवीस ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन
इधर फडणवीस भी यह बताने से बचते नजर आते हैं कि उन्हें यह जानकारी कैसे मिली. पिछले 14 मार्च को एक मीडिया ब्रीफिंग में इसी सवाल पर कि वह इतनी संवेदनशील जानकारी वे कैसे खोद पाए, जिसे उन्होंने सदन के पटल पर भी प्रस्तुत कर दिया, उन्होंने यह कहकर टाल दिया कि आप कह सकते हैं कि महाराष्ट्र में “फडणवीस ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन” काम कर रहा है.

मुकेश अंबानी के आवास के बाहर आतंकी षड्यंत्र
पिछले साल विधानसभा सत्र के दौरान उद्धव ठाकरे सरकार इस बात से अनजान थी कि 25 फरवरी को दक्षिण मुंबई में मुकेश अंबानी के आवास एंटीलिया के बाहर एक आतंकी षड्यंत्र के बाद अनजानी स्कॉर्पियो पकड़ी गई थी, जिसमें जिलेटिन की छड़ें बरामद हुईं थीं. इस मामले में भी फडणवीस ने ही पहले पहल राज्य विधानसभा को यह भी जानकारी दी थी कि जिस व्यक्ति ने स्कॉर्पियो कार के लिए लापता शिकायत दर्ज की थी, उसने एक व्यक्ति को कॉल किया था, जिस नंबर पर उसने कॉल किया था, वह नंबर सचिन हिंदूराव वाजे नामक व्यक्ति के नाम पर पंजीकृत है.

भौहें आखिर उनकी ओर उठती ही क्यों है..?
इससे यह प्रश्न देवेंद्र फडणवीस की ओर सवाल उठना लाजमी है कि आखिर उनकी ओर भौहें क्यों उठती हैं..! राज्य के पूर्व सीएम और अब विपक्ष के नेता, ने समय-समय पर शिवसेना, कांग्रेस, एनसीपी सरकार में ऐसी जानकारियों का खुलासा किया है, जो वर्गीकृत है, और आमतौर पर केवल जांच एजेंसियों द्वारा प्राप्त की जाती है. इससे संदेह पैदा हुआ है और इससे केंद्र-राज्य संबंधों में और खटास आ सकती है, जैसे पश्चिम बंगाल सरकार और केंद्र के बीच यह खटास बनी हुई है.

जब सरकार को शर्मिंदगी उठानी पड़ गई…
अंबानी के आवास एंटीलिया के आगे स्कॉर्पियो कार के मौजूद होने से संबंधित तथ्य यह है कि स्कार्पियो मालिक एक व्यवसायी मनसुख हिरन ने सचिन वाजे (सहायक पुलिस निरीक्षक, अब निलंबित) को कॉल किया था, जो घटना के होने से पहले ही मामले के जांच अधिकारी थे. सदन में फडणवीस द्वारा इस रहस्योद्घाटन के कारण इन तथ्यों से अनजान गठबंधन सरकार को शर्मिंदगी उठानी पड़ गई थी. सरकार सचिन वाजे और मनसुख हिरन के बीच संबंधों के बारे में अंधेरे में थी. सरकार को इसकी जांच आतंकवाद विरोधी दस्ते (एटीएस) को स्थानांतरित करना पड़ा. एटीएस की जांच से यही तथ्य सामने आया कि वाजे और हिरन एक-दूसरे को जानते थे और अंबानी के आवास के बाहर आतंक फैलाने के लिए हिरन की स्कॉर्पियो का इस्तेमाल करने में वाजे शामिल थे.

हिरन की हत्या मामले में भी चौंकाया
हिरन इस मामले में उनकी संलिप्तता उजागर न कर दे, वाजे ने कथित तौर पर उसकी हत्या कर दी थी. चार दिन बाद, 9 मार्च को विधानसभा सत्र में फडणवीस ने मनसुख हिरन की पत्नी के बयान तक अपनी पहुंच का दावा करके फिर से सरकार को आश्चर्यचकित कर दिया, जिसमें महिला ने आरोप लगाया था कि सचिन वाजे ही उनके पति की मृत्यु के लिए जिम्मेदार थे. मनसुख हिरन का शव 5 मार्च को मुंब्रा क्रीक से निकाला गया था.

सीडीआर कैसे हासिल किया?
भौहें इसलिए भी उठीं कि फडणवीस ने मनसुख हिरन का सीडीआर कैसे हासिल किया? केवल कानून प्रवर्तन एजेंसियों के पास ही ऐसी पहुंच हो सकती है. 2014 से 2019 तक मुख्यमंत्री के रूप में, फडणवीस ने गृह विभाग का पोर्टफोलियो संभाल चुके हैं. इस दौरान अनेक आईपीएस अधिकारी उनके विश्वास पात्र बने ही होंगे. लेकिन अब, हालांकि वह सिर्फ विपक्ष के नेता हैं, यह तो समझा ही जा सकता है कि वे कैसे ऐसी जानकारी पाने सफल हैं.

तत्कालीन गृह मंत्री की बलि
पूरे देश को पता चल चुका है कि यह कांड महा विकास आघाड़ी सरकार के तत्कालीन गृह मंत्री की बलि ले चुकी है. वसूली कांड में पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख की संलिप्तता के बारे में मुंबई के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के आरोपों की कहानी ने क्या-क्या गुल खिलाए, यह सर्वविदित है. उन्हें भी नौकरी गंवानी पड़ी और वे भी ऐसे ही आरोप झेल रहे हैं. सरकार द्वारा मामले की जांच के लिए गठित चांदीवाल कमेटी अपनी जांच लगभग पूरी कर चुकी है. देखना है कि रिपोर्ट कब और कैसी आती है.

मनचाही ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए कैसे पैरवी!
इसी मामले में पिछले साल के 23 मार्च को, फडणवीस ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जहां उन्होंने अपने कब्जे में कॉल रिकॉर्डिंग होने का दावा किया, जिससे पता चला कि राज्य में आईपीएस और गैर आईपीएस अधिकारियों ने राज्य के तत्कालीन गृह मंत्री अनिल देशमुख के साथ मनचाही ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए कैसे पैरवी की थी. उन्होंने दावा किया कि उनके पास एक पेन ड्राइव में 6.3 जीबी डेटा है, जिसे उन्होंने गृह मंत्रालय के सामने पेश किया. इससे भी सरकार को सदन के सामने अवाक रह जाना पड़ा – कि महा विकास आघाड़ी सरकार के कार्यकाल के दौरान ही आईपीएस अधिकारी रश्मि शुक्ला की सरपरस्ती में महाराष्ट्र राज्य सूचना विभाग (एसआईडी) द्वारा कॉल रिकॉर्ड किए गए थे.

फडणवीस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया था कि शुक्ला ने तत्कालीन डीजीपी सुबोध जायसवाल के साथ रिपोर्ट साझा की थी, जिन्होंने ठाकरे को सूचित किया था. फडणवीस ने आरोप लगाया कि ठाकरे ने कोई कार्रवाई नहीं की. इस मामले में भी तथ्य यही सामने आया है कि एसआईडी द्वारा संवेदनशील कॉल रिकॉर्डिंग को विपक्ष के नेता के साथ साझा किया गया था, जिसके कारण मुंबई पुलिस ने आधिकारिक गुप्त अधिनियम के तहत रश्मि शुक्ला के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज की और मुंबई पुलिस ने शुक्ला और फडणवीस के बयान भी दर्ज किए.

केंद्रीय एजेंसियों ने 90 बार छापेमारी की, 200 से ज्यादा लोगों के बयान दर्ज किए
रश्मि शुक्ला द्वारा की गई कॉल रिकॉर्डिंग के आधार पर ही पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख पर 100 करोड़ रुपए उगाही का टार्गेट देने के मामले की पुष्टि हुई थी. इसके बाद की जांच के दौरान केंद्रीय एजेंसियों ने पूर्व गृहमंत्री देशमुख, उनके परिवार, सहयोगियों, निजी सचिव और चार्टर्ड अकाउंटेंट पर कम से कम 90 बार छापेमारी की जा चुकी है. उनके मामले में 200 से ज्यादा लोगों के बयान दर्ज किए गए हैं. प्रवर्तन निदेशालय ने 50 छापे मारे हैं. केंद्रीय जांच ब्यूरो ने 20 छापे मारे हैं और आयकर विभाग ने 20 छापे मारे हैं.

इस साल निशाना बने विशेष लोक अभियोजक प्रवीण चव्हाण
इस प्रकरण के ठीक एक साल बाद इसी माह पिछले 8 मार्च को मौजूदा विधानसभा सत्र के दौरान, फडणवीस फिर से पेन ड्राइव के साथ आए. इस बार उनका निशाना विशेष लोक अभियोजक प्रवीण चव्हाण थे, जिन पर उन्होंने आरोप लगाया था कि वे विपक्षी नेताओं के खिलाफ मामले तय करने के लिए एमवीए के साथ काम कर रहे थे. विधानसभा में फडणवीस ने दावा किया कि पेन ड्राइव में कथित तौर पर चव्हाण के कार्यालय से 125 घंटे की फुटेज थी, जहां वह भाजपा नेताओं को फंसाने से संबंधित मुद्दों पर बात करते नजर आ रहे हैं.

विधानसभा में एक और पेन ड्राइव…
उसी दिन फडणवीस एक और पेन ड्राइव के साथ विधानसभा सत्र में आए, जिसमें वक्फ बोर्ड के सदस्यों मोहम्मद अरशद खान और मुदस्सर लांबे के बीच कथित रूप से फोन पर हुई बातचीत की ऑडियो रिकॉर्डिंग थी. फडणवीस ने आरोप लगाया कि लांबे ने दावा किया कि उनके ससुर इब्राहिम के सहयोगी थे, जबकि खान ने कहा कि उनके चाचा अंडरवर्ल्ड का हिस्सा थे. भाजपा नेता ने आरोप लगाया कि खान जेल में है, जबकि लांबे बलात्कार के आरोपों का सामना करने के बावजूद बाहर है.

इस मामले में तथ्य यह है कि चव्हाण के कार्यालय में चुपके से एक वीडियो कैमरा लगाया गया था और उनकी बातचीत को रिकॉर्ड किया गया था और उसे फडणवीस के द्वारा सार्वजनिक किया गया था. इस सप्ताह की शुरुआत में, राज्य के गृह मंत्री दिलीप वालसे पाटिल ने सत्र को सूचित किया कि चव्हाण ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है.

फडणवीस की बाजीगरी के बारे में सुरक्षा प्रतिष्ठान के एक अधिकारी का दावा है, “दो लोगों के बीच फोन पर बातचीत तक पहुंच पाना, निगरानी कार्य करने की अनुमति प्राप्त कानून प्रवर्तन एजेंसियों की मदद के बिना संभव नहीं है.” इस आरोप में काफी दम है कि राज्य शासन के कुछ आला अधिकारी अभी भी फडणवीस के साथ संबंध बनाए हुए हैं… ऐसे अधिकारियों के एक खास वर्ग का मानना है कि देर-सबेर भाजपा सत्ता में लौटेगी… इसलिए ये अधिकारी भाजपा नेता के गुड बुक में रहना चाहते हैं.”

कांग्रेस प्रवक्ता सचिन सावंत का यह मत गलत नहीं है कि “फडणवीस पांच साल तक राज्य के सीएम और राज्य के गृह मंत्री भी थे और उन्होंने जानकारी हासिल करने के लिए अपने अच्छे संबंधों का इस्तेमाल किया है. हालांकि, विपक्ष के नेता के रूप में, उन्हें इसे प्रकट न करके और संबंधित प्राधिकारी को सौंप कर उन्हें एक जिम्मेदार तरीके से कार्य करना चाहिए था. आखिर केंद्र की मोदी सरकार भी आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करती है और फडणवीस को यह सुनिश्चित करना चाहिए था कि वह इसका उल्लंघन न करें.”

शिवसेना प्रवक्ता मनीषा कायंदे का आरोप है, “सरकार को रचनात्मक तरीके से अपने पास उपलब्ध जानकारी प्रदान करने के बजाय, फडणवीस ने राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इसका फायदा उठाया है, जिससे यह आभास होता है कि इनमें से कुछ चीजें उनके निर्देश पर हुईं.”

यह बताते हुए कि अक्टूबर 2013 में, फडणवीस ने सिंचाई परियोजनाओं के ठेके में कथित वित्तीय अनियमितताओं की जांच के लिए आघाड़ी (गठबंधन) सरकार द्वारा गठित चितले समिति को औरंगाबाद में एक बैलगाड़ी लोड दस्तावेज प्रस्तुत किया. एनसीपी प्रवक्ता क्लाइड क्रेस्टो का आरोप है, “वह उसमें किसी भी घोटाले को साबित करने के लिए असमर्थ थे… इसलिए वह अब पेन ड्राइव का इस्तेमाल कर रहे हैं. यह उनकी एकमात्र बाजीगरी है, जो साफ समझ आती है. साथ ही इन विवरणों को प्राप्त करने के लिए उपयोग की जाने वाली विधियां एक सतत जांच का विषय हैं. सच्चाई और कानून की अंततः जीत होगी.”

इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि ऐसे राजनीतिक चीरहरण वाले मामले वास्तव में मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए ही होते हैं. शरद पवार ने भी सही कहा है कि इन हथकंडों से “भाजपा राज्य की महा विकास आघाड़ी सरकार को अपना कार्यकाल पूरा करने से रोक नहीं सकती.” जानकारों के मुताबिक सत्तारूढ़ महा विकास आघाड़ी की तीनों पार्टियां अपनी अंदरूनी मतभेदों के बावजूद भाजपा के प्रहारों के कारण ही कायम रह पाई हैं. सत्ता गंवाने के डर ने उन्हें बांधे रखा है.

भाजपा की रणनीति : अगले चुनाव में बड़ी चुनौती न बन पाए आघाड़ी
महा विकास आघाड़ी सरकार बनाने के बाद से ही हर महीने हप्ते-दस दिनों में सरकार के पतन का लगातार दावा ठोंकते रहने वाली भाजपा की रणनीति यही है कि अगली विधानसभा चुनावों तक यह सरकार को मतदाताओं की नजर में इतना अवश्य गिरा देगी कि शिवसेना सहित एनसीपी और कांग्रेस तीनों ही उसके लिए चुनावों में बड़ी चुनौती न बन पाएं. इसमें उनके ये हथकंडे उपयोगी साबित हो सकते हैं.

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