पुरानी नीतियों के जंजीरों में फंसा ‘आत्मनिर्भर भारत’ कृषि क्षेत्र के विकास में ही बना बाधक
*राजीव चक्रवर्ती,
आलेख : सन 2002 में खाद नियंत्रक कानून FCO 1985 में बड़े बदलाव किए गए थे. इन बदलावों के जरिये जोड़े गए आयातित अनुद्रव्य ने भारत के कृषि निर्यातों में क्रांति ला दी थी. उन दिनों यह सारे अनुद्रव्य जिन्हें “घुलनशील खाद” (सॉल्युबल फर्टिलाइजर) के नाम से भी जाना जाता है, पश्चिमी देशों से आयात किए जाते थे. पिछले एक दशक में विश्व बाजार में हुए परिवर्तनों का “घुलनशील खाद” के उत्पाद पर भी असर पड़ा है और अब यह सारा चीन से आयात किए जाते हैं.
भारत में इन वस्तुओं का उत्पाद पर सबसे पहला सफलतापूर्वक परीक्षण 2007 में ही हो गया था. कुछ छोटे निर्माता और गिनी-चुनी बड़ी भारतीय कंपनियां इन्हें बनाने की कोशिश कर कर रही हैं, पर घुलनशील खाद की जरूरतों में से 90% से भी ज्यादा के लिए आज भी चीन पर निर्भरता जारी है. यहां तक कि पश्चिमी देश के निर्यातक भी चीन से ही इसे खरीद कर भारत को निर्यात कर रहे हैं.
इन दिनों भारत में छोटे उद्योगों की आत्मनिर्भरता को बढ़ाने और चीन के उत्पादों पर निर्भरता घटाने की बात हो रही है. इस संदर्भ में एक बड़ा व्यवधान है, जो भारतीय उद्योग क्षेत्र को अति आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन में भारत को आत्मनिर्भर बन पाने से रोक रहा है. ऐसी बाधाओं को दूर करने पर ही देश के कृषि क्षेत्र को बेहतर योगदान दिया जा सकता है.
इसमें सबसे बड़ी बाधा है- उत्पादन के विकास में दशकों पहले बनी नीतियां, जो एक ओर भारतीय उत्पादों को “लाइसेन्स राज” में जकड़ कर विदेश से आयात को ही प्रोत्साहित कर रही है और देश को आत्मनिर्भर होने से रोक रही है.
बाधा ऐसी है कि – एक भारतीय निर्माता कंपनी को अपने राज्य के साथ-साथ हर उस राज्य में ऑफिस खोलकर लाइसेन्स लेना पड़ता है, जहां उनके उत्पादों को बेचना होता है. देश के अनेक राज्य ऐसे हैं, जो भारतीय कंपनियों को अन्य राज्यों में co–marketing के जरिये अपने उत्पाद बेचने की अनुमति नहीं देती है. गिने-चुने राज्यों में यह संभव तो है, पर यह एक बेहद खर्चीला मामला है. FCO 1985 केंद्र का अधिनियम होते हुए भी राज्यों ने इस तरह के अपने-अपने कानून बना रखे हैं. इन कानूनों के जरिये भारतीय निर्माताओं को रोकने की हर संभव कोशिश होती रहती है. यह नियम सूक्ष्म अनु द्रव्यों के लिए भी लागू है.
इसके ठीक विपरीत चीन का उत्पादक को अपने देश में ही बैठे-बैठे, भारत के किसी आयातक (importer) को केवल एक पत्र देना होता है, जिसे लेकर अलग-अलग राज्यों में बैठे उसके Importer/co-marketer का लाइसेन्स प्राप्त कर व्यापार शुरू कर लेता है.
जबकि, भारतीय उत्पादक दूसरे राज्यों में आसानी से अपने उत्पाद बेचने में सक्षम नहीं है. उसके लिए तमाम तरह की अड़चनें खड़ी कर दी गई हैं. साथ ही भारत में निर्मित “सॉल्युबल फर्टिलाइजर” को निर्यात की भी अनुमति नहीं है. कुछ है भी तो वह इतना जटिल है कि उसे कार्यान्वित करना भारतीय निर्माताओं के लिए संभव नहीं.
एक भारतीय निर्माता को जब तक अपने ही देश में एक विदेशी चाइनीज निर्माता को मिल रही सहूलियतों के बराबर की सहूलियत उपलब्ध नहीं कराई जाएगी, तब तक देश कभी भी चीन से आयात का मुकाबला नहीं कर पाएगा और भारत कृषि क्षेत्र के इस महत्वपूर्ण उत्पाद के मामले में कभी आत्मनिर्भर भी नहीं बन पाएगा.
अगर केंद्र सरकार इस विषय का संज्ञान ले और FCO 1985 अधिनियम में मामूली परिवर्तन कर भारतीय निर्माताओं को सशक्त कर पाए, तभी यह देश करोड़ों डॉलर की विदेशी मुद्रा भी बचा पाएगा और साथ ही अन्य देशों में भी इसे निर्यात कर विदेशी मुद्रा भी अर्जित कर पाएगा.
– राजीव चक्रवर्ती, राष्ट्रीय अध्यक्ष, सॉल्युबल फर्टिलाइजर इंडस्ट्री एसोसिएशन.
(लेखक का भारत में सॉल्युबल फर्टिलाइजर का सन 2002 में FCO 1985 पंजीकरण और इन अनुद्रव्यों के विस्तार में खास भूमिका रही है.)