अपने गुडबुक में रहे लोगों के माध्यम से सरकार के विरुद्ध चला रहा है ‘प्रोपेगंडा-वार’
*खबर विशेष,
नई दिल्ली : चीन की एक कंपनी द्वारा 10 हजार भारत के सत्ता पक्ष एवं विपक्ष के लोगों और समाचार माध्यमों के साथ-साथ संस्थाओं पर नजर रखने की खबर देश के तमाम अखबारों में छाई रही है. इसके साथ ही यह भी पता चला है की देश का भरोसा तोड़ने में अपनी कंपनियों से देश में खूब फंडिंग करवाता रहा है.
अब भारत की सुरक्षा से जुड़े इस मामले में एक और गंभीर जानकारी ‘विदर्भ आपला’ के हाथ लगी है. एक global political analyst के अनुसार पता चला है कि चीन अपने प्रोपेगंडा-वार में और समाचार माध्यमों और उन तमाम लोगों खास इस्तेमाल कर रहा है, जो पूर्व में उसकी कंपनियों और दूतावास के माध्यम से उचित-अनुचित लाभ लेते रहे हैं.
Analyst ने अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया की पिछले दिनों की एक रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें बताया गया था कि चीनी टेक कंपनियां और मीडिया कंपनियां भारतीय समाचार माध्यमों के एप और प्रसिद्द न्यूज एप्स को भारी फंडिंग कर रही हैं.
Analyst के अनुसार पता चला है कि इस दौर में देश का भरोसा तोड़ने में चीन उनका भरपूर उपयोग कर रहा है. सूत्रों ने बताया, ‘हालांकि केंद्र के गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय को इसकी भनक बहुत पहले ही मिल चुकी है. इसके बाद केंद्र भी समय-समय पर संबंधित लोगों को परोक्ष रूप से संभवतः आगाह भी करती रही है.’
बताया गया कि पिछले अनेक महीनों से सरकार की गतिविधियों और नीतियों पर जोरदार ढंग से झूठे और गलत तथ्यों एवं दलीलों के साथ समाचार माध्यमों के माध्यम से हमला, चीन के प्रोपेगंडा-वार (propaganda-war) का ही हिस्सा रहा है. वह सरकार को देश की आम जनता के बीच बदनाम करने और अविश्वसनीय बनाने के लिए अपने इस चैनल का उपयोग बखूबी कर रहा है. उनका इस्तेमाल देश का भरोसा तोड़ने के लिए कर रहा है.
चीन ने अपने इस एजेंडे को लागू करने का दायित्व विपक्ष के उन नेताओं, सांसदों, अन्य नेताओं और पत्रकारों को सौंपा है, जो उसके गुडबुक में रहे हैं. ऐसे ही नौकरशाहों को उसने इनकी गुप्त रूप से मदद करने, भरोसा तोड़ने पर भी लगा दिया है.
सूत्रों के मुताबिक सामरिक तनातनी के इस दौर में चीन का यह गैरसैन्य तरीका भारत की सरकार की सरकार के प्रति जनता के मन में असंतोष और अविश्वास को बढ़ाना और भरोसा तोड़ कर सरकार के मनोबल को गिराना है.
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार अपनी दो महीने तक चली पड़ताल में उसने पाया कि चीन की जिस कंपनी को 10 हजार भारतीय लोगों और संस्थाओं पर नजर रखने की दायित्व सौंपा गया है, वह है- ‘जुनख्वा डेटा इंफोर्मेशन टेक्नॉलॉजी को लिमिटेड’. यह कंपनी शेनज़ेन में स्थित है और इसके संबंध चीन की सरकार और चाइनीज कॉम्युनिस्ट पार्टी से हैं.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और उनके परिवार के सदस्य, ममता बनर्जी, अशोक गहलोत, नवीन पटनायक, उद्धव ठाकरे से लेकर कैबिनट मंत्री राजनाथ सिंह, रवि शंकर प्रसाद, निर्मला सीतारमण, स्मृति इरानी इस लिस्ट में शामिल हैं.
इतना ही नहीं, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बिपिन रावत, आर्मी, नेवी और एयरफोर्स के 15 प्रमुखों से लेकर मुख्य न्यायाधीश शरद बोबडे, लोकपाल पी.सी. घोष, कैग प्रमुख जी.सी. मुर्मु, ‘भारत पे’ के संस्थापक निपुण मेहरा, उद्योगपति रतन टाटा और गौतम अडानी को भी ये कंपनी मॉनिटर कर रही है.
इनके अलावा कई बड़े पद वाले नौकरशाह, जज, वैज्ञानिक, पत्रकार, कार्यकर्ता और धार्मिक शख़्सियतों पर भी नजर रखी जा रही है. यह कंपनी खुद दावा करती है कि ये चीन की खुफिया एजेंसी, सेना और सुरक्षा एजेंसियों के साथ काम करती है.
इंडियन एक्सप्रेस ने दिल्ली स्थित चीनी दूतावास के एक सूत्र से सवाल किया तो जवाब आया कि चीन ने किसी कंपनी या व्यक्ति से दूसरे देशों के डेटा या इंटेलिजेंस के बारे में जानकारी न ही मांगी है और न मांगेगा.
अखबार ने एक सितंबर को कंपनी की वेबसाइट पर मौजूद ईमेल आईडी पर सवाल भेजे थे, लेकिन कोई जवाब नहीं आया, बल्कि नौ सितंबर से वेबसाइट बंद कर दी गई.
इस तरह से कंपनी का डेटा रखना ‘हाईब्रिड वारफेयर’ का हिस्सा है, जहां गैर-सैन्य तरीकों को प्रभुत्व और प्रभावित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.