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‘बंबई में का बा’ : मनोज बाजपेयी-अनुभव सिन्हा ने दिया सागर को किनारा 

मनोरंजन
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*समीक्षा
देश की बदहाल सामाजिक व्यवस्था
पर सवाल पेश करता एक भोजपुरी रैप ‘बंबई में का बा’ आया है. अनुभव सिन्हा के निर्देशन में बिहार की माटी से ताल्लुक रखने वाले अभिनेता मनोज बाजपेयी के रापचिक लुक और आवाज से पूरी व्यवस्था पर सवाल उठाया गया है. रैप के रचयिता डॉ. सागर ने मुंबई के प्रवासी मजदूरों के भोगे जाने वाले यथार्थ को मानो कलेजा फाड़ कर रख दिया है. 

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निर्देशक अनुभव सिन्हा और अभिनेता मनोज बाजपेयी ‘बंबई में का बा’ रैप के सेट पर. 

रैप के रचयिता हैं…. 
इस लोकप्रियता का शिखर चूमने वाले भोजपुरी रैप के रचयिता हैं- डॉ. सागर. अब आप जानना चाहेंगे- ये डॉ. सागर कौन हैं..? तो पहले सुनिए- उत्तर प्रदेश में बलिया के बेहद पिछड़े गांव ककड़ी के हैं डॉ. सागर.  उनका बचपन संघर्षों की अंतहीन दास्तान है. पिता हरियाणा में कहीं मजदूरी करते थे. परिवार में दूर-दूर तक कोई पढ़ा लिखा नहीं था. पिता से लंबे-लंबे अंतराल के बाद मुलाकात होती.बचपन गरीबी, जहालत और मुश्किलों में गुजरा. दादा-दादी के साथ रहते थे. सागर बताते हैं कि उनके भोजपुरी गीतों में आनेवाले 90 फीसदी शब्द उनकी दादी के सुनाए गीतों के हैं. दादी उन्हें कजरी, सोहर, झूमर, चैता, जंतसार विधा वाले गीत सुनाया करती थीं.सागर बताते हैं कि वो गांव के स्कूल में तो जाते थे, लेकिन वहां भी भोजपुरी के गीत लिखने में जुटे रहते. खेतों में काम करते, धान की रोपाई करते. दादा के साथ बर्तन बनाते. दादी के काम में हाथ बंटाते…मनोज बाजपेयी-अनुभव सिन्हा ने डॉ. सागर को सचमुच में किनारा दे दिया है…अब उनके जीवन की पूरी दास्तान जाननी हो तो नीचे बीबीसी हिंदी पोर्टल का लिंक आपको खोलना तो पड़ेगा- 

https://www.bbc.com/hindi/entertainment-54146805
‘दो बीघा में घर बा, सुतल बानी टेम्पू में’
रैप सांग को अगर गहराई से समझें तो महानगरों में रोजी-रोटी के लिए आए प्रवासियों की लाचारी को बड़ी आसानी से समझ सकते हैं. अपना घर-बार छोड़ रोजगार की तलाश में मीलों दूर आने वाले इन कामगरों के क्या दर्द है, 2 बीघे के घर में रहने वाला गार्ड की नौकरी में डबल ड्यूटी करता है… कैसे उसकी जिंदगी डिबरी की लौ की तरह तिल तिल कर जलती जाती है. मां, बीवी और बच्चे सब छूट जाते हैं और कैसे एक-एक दिन करके इनकी जिंदगी बुझती चली जाती है. ऐसे दर्द को रैप में बयां करते हुए जो बोल फूटे हैं, उसकी पूरी झलक है ‘बंबई में का बा’ में ?

महानगरों में गांव से आकर गुजर बसर करने वाले किन-किन परेशानियों से जूझते हैं इसे महज 6 मिनट के इस गाने से समझा जा सकता है.  ‘बंबई में का बा’ यानी ‘मुंबई में ऐसा क्या है’? गाने के बोल प्रवासी कामगरों के जीवन के ईर्द-गिर्द ही घूमते हैं. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से लेकर बिहार के छपरा, आरा और दानापुर तक बोली जाने वाली भोजपुरी से जुड़े इलाकों समेत उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों से मुंबई जैसे महानगरों में प्रवासी कामगार पलायन करने को मजबूर हैं. रोजी-रोटी कमाने के लिए उन्हें अपना सबकुछ छोड़, शहरों, महानगरों का रुख करना पड़ता है. गांव की स्वच्छ हवा और शुद्ध खान-पान छोड़ इन शहरों में जिंदगी एक ऑटो जितने छोटे कमरे में सिमटती जाती है.

इन महानगरों की गगनचुंबी इमारतें, चमचमाती सड़कें, उद्यान आदि जिन प्रवासी मजदूरों  टेक्निशयनों के बूते महानगरों की शान बढ़ा रहे हैं, उन प्रवासियों की संकट की घड़ी से उबारने और उनकी सुधि भी लेने की चिंता वहां के स्थानीय लोग की बात तो छोड़ दें, वहां की सरकारों को भी नहीं होती. कितने तेंदूलकर, कितने गावस्कर, कितने गोदरेज, कितने किर्लोस्कर, कितने ठाकरे उनकी मदद के लिए सामने आए? 

इस गाने को सोशल मीडिया पर काफी जबरदस्त प्रतिक्रिया मिल रही है. गैर भोजपुरी भाषी भी इस गाने की तारीफ कर रहे हैं. वीडियो में गाने के बीच में स्क्रीन पर अंग्रेजी शब्द बहुत ही आकर्षक लगते हैं.

24 घंटे के भीतर 1,266,732 व्यूज मिले
बुधवार को रिलीज हुए इस गाने को महज 24 घंटे के भीतर 1,266,732 व्यूज मिले हैं. कारण है- गाने के बोल.., जिससे थोड़ी बहुत हिंदी जानने वाला इसे बड़ी आसानी से समझ सकता है. ऊपर से मनोज बाजपेयी की अदाकारी ने इसे और सहज-सरल बना दिया है. गैर पत्रकार संकर्षन ठाकुर ने इसका अंग्रेजी अनुवाद किया है.

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