वेणुगोपाल

वेणुगोपाल ने कोर्ट में झूठा पक्ष रखा पेंशन-95 मामले में EPFO का

देश सुप्रीम कोर्ट
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अटॉर्नी जनरल ने बिना तथ्यों की जांच किए गलतबयानी कर गुमराह किया, फंसे EPFO की चाल में

नागपुर : सेवानिवृत्त कर्मचारियों के प्रति EPFO (कर्मचारी भविष्य निधि संगठन) की विरोधी नीति से देश के करोड़ों वरिष्ठ नागरिक प्रभावित हैं. 2016 में देश के शीर्ष अदालत और कम से कम 6 हाईकोर्ट्स के फैसले को लागू करने से बचने के लिए EPFO अनेक हथकंडे अपनाने के बाद उन्हें अंतिम वेतन के आधार पर पेंशन से वंचित कर दिया है. और इसपर भी तुर्रा यह कि उसने अपने इस हथकंडे को लागू करने में सर्वोच्च न्यायालय और अटॉर्नी जनरल को ही अपना साधन या हथियार बनाया है.

झूठी दलीलों से अदालत की आंखों पर पट्टी चढ़ा दी  
केंद्र सरकार के परोक्ष समर्थन से अपनी झूठी दलीलों से अदालत की आंखों पर दोहरी पट्टी चढ़ा दी है. यही कारण है कि पिछले करीब डेढ़ साल से सुप्रीम कोर्ट में सेवानिवृत्त कर्मचारियों को अपना पक्ष रखने का मौका भी नहीं दिया जा रहा है. EPFO और केंद्र सरकार ने क्रमशः सुप्रीम कोर्ट और केरल हाईकोर्ट के फैसलों के विरुद्ध पुनरीक्षण याचिका (Review Petition) और विशेष अवकाश याचिका (SLP) दायर कर रखा है.

वेणुगोपाल ने झूठी दलीलों पर भरोसा किया
अर्थात सेवानिवृत्तों के पक्ष में केरल हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अन्यायपूर्ण करार दे दिया गया है. देश के अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने EPFO और केंद्र सरकार की झूठी दलीलों पर पिछले 6 फरवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट में अपनी मुहर लगा दी है. EPFO ने देश को गुमराह करने वाली झूठी दलील यह पेश की कि अदालत के फैसले को लागू करने से 15 लाख करोड़ रुपए का बोझ उस पर पड़ेगा. जिसे वहन करना उसके लिए संभव नहीं है. उसकी इस दलील की बिना जांच किए केंद्र सरकार ने भी स्वीकार कर ली और वह भी EPFO के साथ हो चली. इसके साथ देश के सबसे बड़े वकीलों में एक और अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने भी बिना उनकी दलीलों की जांच किए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाओं का समर्थन करते हुए झूठे बयान दे डाले. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट प्रत्येक महीने हियरिंग की तिथि तो घोषित करता है, लेकिन इस केस की ओर रुख ही नहीं कर रहा.

दुनिया में 90 वर्ष की आयु में किसी देश के ऐसे सर्वोच्च पद पर आसीन रहने वाले वेणुगोपाल एकमात्र अटॉर्नी जनरल हैं. पिछले 30 जून को अटॉर्नी जनरल का उनका कार्यकाल समाप्त होने के पश्चात केंद्र सरकार ने उन्हें फिर से एक वर्ष के लिए पद पर बरकरार रखा है. सरकार उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान पद्मविभूषण और पद्मभूषण से भी सम्मानित कर चुकी है.

सेवानिवृत्तों को आहत किया वेणुगोपाल ने  
स्वयं देश के वरिष्ठ नागरिक होने और अपने पद की मर्यादा का ख्याल किए बिना सेवानिवृत्त बुजुर्गों के प्रति वेणुगोपाल जैसे व्यक्ति का विरोधी रुख देश भर के सेवानिवृत्तों को आहत कर गया है. सेवानिवृत्तों के अनेक संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में उनकी गलत बयानी पर अफसोस जताया है. साथ ही उन्हें पत्र भेजा है. उन्हें अपनी गलती सुधार कर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सही तथ्य रखने के आग्रह के साथ ऐसी झूठी याचिकाएं वापस लेने का भी निवेदन किया है.

वेणुगोपाल को नसीहत
इम्पलाईज पेंशन (1995) कोऑर्डिनेशन कमिटी (निवृत्त कर्मचारी (1995) समन्वय समिती) ने भी अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल को ऐसे ही एक पत्र में 15 लाख करोड़ रुपए की देनदारी वाली EPFO की गलतबयानी के बारे में बताया है. कमिटी के राष्ट्रीय महासचिव प्रकाश पाठक और राष्ट्रीय विधि सलाहकार दादा झोड़े ने वेणुगोपाल को उनकी गलती की ओर ध्यान दिलाते हुए उनसे EPFO और केंद्र सरकार को याचिकाएं वापस लेने की सलाह देने का निवेदन किया है.

उन्होंने वेणुगोपाल से उनकी प्रशंसा करते हुए कहा है कि उनके जैसा देश का सर्वाधिक प्रतिष्ठित और स्वयं वरिष्ठ नागरिक होने के नाते इस प्रकार गुमराह कर दिया जाना चिंता का विषय है. ईपीएफओ ने केंद्र सरकार सहित आपको भी गुमराह किया है. ऐसे में आप के द्वारा भूल सुधार जरूरी है. साथ ही यह भी नसीहत दी है कि आप जैसे व्यक्ति को बिना तथ्यों की जांच किए सुप्रीम कोर्ट में गलतबयानी करना शोभा नहीं देता.

15 लाख करोड़ रुपए के बोझ का दावा झूठा  
EPFO द्वारा यह दावा कि उसपर 15 लाख करोड़ रुपए का बोझ पड़ेगा, वास्तव में गुमराह  करने वाला है. इसमें EPFO ने बड़ी चालाकी से EPF की सारी देनदारी को जोड़ दिया है. जबकि अब तक सेवानिवृत्त हो चुके करोड़ों लोगों के उसने जो पीएफ का भुगतान कर दिया है, उतनी राशि घटा कर उसे एरियर चुकाना है. साथ ही लाखों की संख्या में ऐसे पेंशनर्स हैं, जिनका निधन हो गया है और उन्हें अथवा उनके परिजनों को इसके बारे में कुछ भी जानकारी ही नहीं है. अनेक तो ऐसे भी हैं, जिनका जीवन प्रमाण नहीं भरने से फिलहाल मिल रहा पेंशन भी बंद हो चुका है. वे मान बैठे हैं कि अब उन्हें पेंशन नहीं मिलाने वाला है. EPFO ऐसे लोगों की तलाश कर उन्हें पेंशन चालु कर देगा, ऐसा वह कभी करेगा भी नहीं.

अनेक चालें चली हैं EPFO ने  
सुप्रीम कोर्ट के 2016 के आदेश के आधार पर सभी को उनके अंतिम वेतनानुसार पेंशन देने के मामले EPFO ने अनेक चालें चली हैं. पहले तो उन्होंने एक्जम्पटेड-नॉनएक्जम्पटेड (Exempted-Non-exempted) का विभेद खड़ा किया. फिर घोषणा कर दी कि एक्जम्पटेड प्रतिष्ठानों के सेवानिवृत्तों को सुधारित पेंशन नहीं दिया जाएगा. साथ ही Non-exempted प्रतिष्ठानों के सेवानिवृत्तों के समक्ष शर्तों की बाधाएं खड़ी कर दी. जिससे अभी तक लाखों लोग जूझ रहे हैं या थक कर चुप बैठ गए हैं. फिर भी कुछ जागरूक लोगों ने अपने-अपने राज्यों के हाईकोर्ट से आदेश दिला कर अपना सुधारित पेंशन शुरू भी करवाया तो सुप्रीम कोर्ट में Review Petition और SLP दायर कर देश भर में जिन 26 हजार से अधिक लोगों को सुधारित पेंशन मिलना शुरू हो गया था, उनका यह पेंशन मामला कोर्ट में होने के नाम पर EPFO ने देना बंद कर दिया है.

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