ऐसी ही पहले की अर्जियों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द करने का सरकारी वकील ने दिया हवाला, किया विरोध
गांधीनगर (गुजरात) : वृद्धावस्था के कारण कोरोना वायरस के संक्रमण को लेकर आसाराम की जमानत अर्जी गुजरात हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया. आसाराम ने जमानत याचिका में दलील दी थी कि वृद्धावस्था के कारण वह आसानी से घातक कोरोना वायरस के संक्रमण की चपेट में आ सकता है. इसी आधार पर न्यायालय से ज़मानत मांगी गई थी.
84 वर्षीय आसाराम वर्तमान में जोधपुर की सेंट्रल जेल में बंद है, जिसे जोधपुर की अदालत ने बलात्कार के मामले में दोषी ठहराया है. आसाराम को गांधीनगर की एक अदालत के समक्ष एक अन्य यौन उत्पीड़न मामले में मुकदमे का सामना करना पड़ रहा है. आसाराम ने यह कहते हुए गुजरात उच्च न्यायालय का रुख किया था कि अधिक आयु और अन्य कई बीमारियों को देखते हुए, वह राज्य में फैले COVID-19 वायरस के प्रति अधिक संवेदनशील होने के कारण इसके संक्रमण की चपेट में आ सकता है.
सरकारी वकील ने किया विरोध
आसाराम के वकील ने कहा कि COVID-19 वायरस के प्रकोप की आशंका के तहत सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार उनके क्लाइंट को अस्थायी जमानत देने के लिए उनका केस फिट है. राज्य के वकील ने कथित अपराधों की गंभीरता और सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष उनके द्वारा पहले की गई नियमित जमानत अर्जियों की अस्वीकृति का हवाला देते हुए जमानत याचिका का विरोध किया. उन्होंने कहा, “कथित अपराधों की गंभीरता को देखते हुए, आवेदक की नियमित जमानत के पहले के आवेदन इस अदालत द्वारा और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वीकार नहीं किए गए हैं, इसलिए, अस्थायी जमानत के लिए वर्तमान आवेदन पर विचार नहीं किया जाना चाहिए.” इस पर ध्यान देते हुए उच्च न्यायालय ने जमानत से देने से इनकार कर दिया.
न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की एकल पीठ ने यह भी कहा कि आसाराम कैदियों की उस श्रेणी में नहीं है, जिनमें सुप्रीम कोर्ट के उपर्युक्त निर्देश के अनुपालन में राज्य की उच्चाधिकार प्राप्त समिति द्वारा अंतरिम जमानत पर रिहा करने का प्रस्ताव है. उक्त मामले में, शीर्ष अदालत ने सिफारिश की है कि उन अंडरट्रायल कैदियों को अंतरिम जमानत पर रिहा किया जाए जो ऐसे आरोपों का सामना कर रहे हैं, जिनमें केवल 7 साल तक की जेल की सजा का प्रावधान है.
आसाराम पर आईपीसी की धारा 376 (2) (सी) के तहत बलात्कार करने का मामला दर्ज किया गया है, जिसमें 10 साल की कैद की सजा है. पीठ ने कहा, “आवेदक का मामला सुप्रीम कोर्ट के पारित आदेश के अनुसार गठित हाई पावर कमेटी द्वारा जारी दिशा-निर्देशों में उल्लिखित किसी भी श्रेणी के अंतर्गत नहीं आता है… यह भी देखा गया कि सुप्रीम कोर्ट और इस अदालत द्वारा उसकी नियमित जमानत अर्जी मंजूर नहीं की गई थी.”