26 नवंबर तक जवाब देने अथवा 110 करोड़ रुपए भरने का दिया आदेश
नागपुर : 12 वर्ष पूर्व 145 करोड़ रुपए के घोटाले में लिप्त नागपुर के प्रतिष्ठित समता सहकारी बैंक के तत्कालीन संचालक मंडल के विरुद्ध दायर मामले अभी तक महाराष्ट्र सरकार के सहकार विभाग की “आरोपियों पर कृपा” के कारण हाईकोर्ट में फैसले के लिए लंबित पड़ा है. गुरुवार, 25 अक्टूबर को मुंबई हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने इसके लिए महाराष्ट्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई है.
हाईकोर्ट के समक्ष ‘समता सहकारी बैंक ठेवीदार कृति समिति’ (जमाकर्ता संघर्ष समिति) की ओर से अधि. श्रीरंग भांडारकर वे याचिका दायर कर महाराष्ट्र सरकार के सहकार विभाग द्वारा नियुक्त दूसरे लिक्विडेटर पंकज वानखेड़े की बैंक के जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा करने में विफलता और उनकी अक्षमता की ओर ध्यान दिलाते हुए उनकी नियुक्ति रद्द करने और उनकी जगह किसी दूसरे सक्षम व्यक्ति को लिक्विडेटर नियुक्त करने की मांग की थी.
इस याचिका पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ के न्यायाधीशद्वय न्यायमूर्ति भूषण धर्माधिकारी और श्रीराम मोडक ने महाराष्ट्र सरकार को समता बैंक के संबंध में जवाब प्रस्तुत करने में विफल रहने पर कड़ी फटकार लगाई है और चेतावनी दी है कि आगामी माह 26 नवंबर तक यदि वह सारी औपचारिकताएं पूरी करने के आदेश का पालन नहीं करती है तो सरकार 110 करोड़ रुपए रजिस्ट्री की रकम के साथ जमा करे.
उल्लेखनीय है कि बैंक के संचालक मंडल के प्रमुख मिलिंद चिमुरकर के कार्यकाल में बैंक में करोड़ों के घोटाले सामने आने के बाद रिजर्व बैक ऑफ इंडिया ने 3 और 4 अगस्त 2006 को अपने सारे लेनदेन के आर्थिक व्यवहार बंद करने का आदेश दिया था. इसके बाद सहकारी समितियों के आयुक्त और रजिस्ट्रार ने पूर्व सहायक रजिस्ट्रार चैतन्य नासरे को समता बैंक का प्रशासक नियुक्त किया था. इसके बाद नासरे ने प्राथमिक ऑडिट कर 145 करोड़ रुपए के घोटाले का पता लगाया. इस पर रिजर्व बैंक ने 22 दिसंबर 2006 को समता बैंक का लायसेंस कैंसिल कर दिया.
तत्पश्चात सहकारी समितियों के आयुक्त और रजिस्ट्रार ने लिक्विडेशन की प्रक्रिया पूरी करने नासरे के अधीन एक बोर्ड ऑफ लिक्विडेटर्स का गठन कर दिया. इसके बाद मामले की जांच क्राइम इन्वेस्टीगेशन डिपार्टमेंट मो सौंपा गया. इस बीच मिलिंद चिमुरकर सहित फरार संचालकों के विरुद्ध आरोप पत्र (चार्जशीट) दाखिल कर दिया गया. प्रवर्तन संचालनालय (इंफोर्समेंट डायरेक्टोरेट- ई.डी.) ने भी बीच जांच शुरू कर दी थी.
नासरे ने इस बीच बैंक के 15 हजार जमाकर्ताओं को उनकी जमा राशि डिपॉजिट इन्सुरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कार्पोरेशन (डीआईसीजीसी) द्वारा प्राप्त 38 करोड़ रुपए सेटलमेंट के आधार पर भुगतान कर दिया और डीआईसीजीसी को भी 5.5 करोड़ रुपए का भुगतान किया.
इसके बाद नासरे को हटा कर उनके स्थान पर 16 अक्टूबर, 2016 को पंकज वानखेड़े को मुख्य प्रशासक नियुक्त किया गया. वानखेड़े ने एक साल तक तो पहले चार्ज ही नहीं लिया. साल भर तक समता बैंक प्रशासक विहीन रहा. सहकार विभाग को भी साल भर तक इसकी कोई ‘चिंता’ ही नहीं रही.
2017 में प्रभार ग्रहण करने के बाद भी वानखेड़े निष्क्रीय रहे और जैसा कि याचिकाकर्ताओं का आरोप है वानखेड़े ने बैंक संचालकों की संपत्ति अटैच करने संबंधी मामले को प्रभावी ढंग से ई.डी. (प्रवर्तन संचालनालय) के समक्ष पेश नहीं किया. फलस्वरूप ई.डी. ने बैंक संचालकों की संपत्ति अटैच करने की अपील खारिज कर दी.
याचिका में हाईकोर्ट को बताया गया है कि वानखेड़े के ने इस बीच न तो ई.डी. द्वारा आरोपी संचालकों की संपत्ति जब्त कराई और न एक पैसा ही निकाल पाए. यहां तक की जांच भी पूरी तरह ठप पड़ गया है. समता सहकारी बैंक सहित राज्य के अनेक सहकारी बैंकों के घोटालों को पिछली कांग्रेस सरकारों के बाद अब भाजपा सरकार के कार्यकाल में भी इस प्रकार मिल रहे संरक्षण पर जमाकर्ताओं में भारी रोष है.