श्रीकृष्ण जन्मस्थल : बाधक कानूनी व्यावधान को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

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“अयोध्या को रखा, मथुरा को छोड़ दिया” याचिका में धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांत का उल्लंघन कहा

नई दिल्ली : मथुरा के भगवान श्रीकृष्ण जन्मस्थल को अतिक्रमण मुक्त कराने के सन्दर्भ में बाधक कानूनी व्यावधान को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. इसे धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांत का उल्लंघन कहा गया है.

याचिका में पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की धारा 2, 3 और 4 की संवैधानिक वैधता को श्रीकृष्ण जन्मस्थल सहित देश के प्राचीन धर्म स्थलों पर हुए अतिक्रमण को हटाने की दिशा में बड़ा बाधक बताया गया है. सुप्रीम कोर्ट में दायर य‌ाचिका में कहा गया है कि उक्त प्रावधान 15 अगस्त, 1947 से पहले पूजा और तीर्थ स्थानों पर अवैध अतिक्रमणों के खिलाफ उपचार पर रोक लगाते हैं.

कानून में भेदभाव उदाहरण भी दिया  
याचिकाकर्ता ने कानून में भेदभाव उदाहरण भी दिया  है, बताया है – “हिंदू सैकड़ों साल से भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थान की बहाली के लिए लड़ रहे हैं और शांतिपूर्ण सार्वजनिक आंदोलन जारी है, लेकिन कानून लागू करते समय, केंद्र ने अयोध्या में भगवान राम के जन्मस्थान को बाहर रखा, लेकिन मथुरा में भगवान कृष्ण के जन्मस्थान को बाहर नहीं रखा, जबकि दोनों ही भगवान विष्णु के अवतार, निर्माता हैं.”  

शाही ईदगाह मस्जिद के कब्जे में 13.37 एकड़ जमीन  
मथुरा के श्रीकृष्ण जन्म स्थान परिसर से शाही ईदगाह मस्जिद के कब्जे से 13.37 एकड़ जमीन को श्रीकृष्ण विराजमान को सौंपने के लिए दायर वाद पिछले दिनों मथुरा के सिविल जज सीनियर डिवीजन न्यायालय ने खारिज कर दिया. न्यायालय ने श्रीकृष्ण विराजमान के वाद पर विचार करने से मना कर दिया. न्यायालय ने कहा कि 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट (उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के तहत सभी धर्मस्थलों की स्थिति 15 अगस्त 1947 वाली रखी जानी है, इस कानून में सिर्फ अयोध्या मामले को अपवाद रखा गया था.

शीर्ष अदालत को बताया गया है कि उक्त प्रावधानों ने उन लंबित मुकदमे अथवा कार्यवाही को समाप्त कर दिया है, जिनकी कार्रवाई का कारण 15 अगस्त, 1947 से पहले उत्पन्न हुआ था और इस प्रकार, पीड़ित व्यक्ति के लिए अदालत के माध्यम से उपलब्ध उपचार से इनकार कर दिया गया है.

याचिका में यह भी कहा गया है कि अधिनियम की धारा 2, 3, 4 ने न्यायालय से संपर्क करने का अधिकार भी छीन लिया है और इस तरह न्यायिक उपचार के अधिकार बंद दिया गया है.

भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि कि ये प्रावधान मनमाने, तर्कहीन और पूर्वव्यापी कट-ऑफ डेट का निर्माण करते हैं और इस प्रकार अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (भेदभाव के खिलाफ अधिकार), अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार), अनुच्छेद 25 (प्रार्थना, अभ्यास, और धर्म प्रचार के अधिकार), अनुच्छेद 26 (पूजा-तीर्थ स्‍थलों के प्रशासन, प्रबंधन और रखरखाव के अधिकार) और अनुच्छेद 29 (संस्कृति के संरक्षण का अधिकार) का हनन करती है.

धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांत का उल्लंघन  
याचिका में यह भी बताया गया है कि उक्त प्रावधान धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं.  यह अनुच्छेद 49 के तहत ऐतिहासिक स्‍थलों की रक्षा करने और संविधान के अनुच्छेद 51 ए के तहत धार्मिक सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के राज्य के कर्तव्य के खिलाफ हैं.

याचिका में कहा गया है, “केंद्र ने पूजा और तीर्थ स्‍थलों पर अवैध अतिक्रमण के खिलाफ उपचार पर रोक लगा दी है और अब हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख अनुच्छेद 226 के तहत मुकदमा दायर नहीं कर सकते या हाईकोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटा सकते हैं. इसलिए, वे अनुच्छेद 25-26 की भावना के अनुसार, मंदिरों की बंदोबस्ती और अपने पूजा स्थलों और तीर्थयात्रा को बहाल नहीं कर पाएंगे. फलस्वरूप आक्रमणकारियों के गैरकानूनी बर्बर कृत्य का अपराध सर्वदा जारी रहेगा.”

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