फिल्म : दीपिका ने ‘छपाक’ से दिखाया दम

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दीपिका

*जीवंत शरण,
दीपिका पादुकोण JNU में यदि ABVP के नेताओं से गले मिल लेती तो कोहराम नहीं मचता. मसला ये था कि वो वामपंथी नेताओं और उनके साथियों के पास क्यों खड़ी हुई? चंद नेता यह पचा ही नहीं पाते हैं कि केंद्र की मजबूत सत्ता उनके पास है, फिर भी कुछ नामचीन उनका समर्थन करने की बजाए आलोचना करने लगते हैं. लेकिन सिर्फ बाजीगरी से जीवन की नैया लंबे समय तक नहीं चलती है और जब विस्फोट होता है, तो ‘छपाक’ से भी लोग भयभीत हो जाते हैं.

दुष्कर्म और तेजाबी हमले की घटनाएं तेजी से बढ रही है. इस पर अंकुश के लिए ‘छपाक’ जैसी फिल्मों का परदे पर आना बदलाव की दिशा में एक सार्थक कदम है. इसे हर तरफ से प्रोत्साहन मिलना चाहिए था, लेकिन कुछ नेता इसे ‘बेपटरी’ करने के प्रयास में लगे हुए हैं. बावजूद इसके फिल्म को सिर्फ समीक्षकों की ही सराहना नहीं मिल रही है, बल्कि दर्शकों का भी भरपूर समर्थन मिल रहा है.

‘छपाक’ रिलीज के आज चौथे दिन सिनेमा से लेकर राजनीतिक गलियारे में भी खूब चर्चा में है. दीपिका JNU में जाकर रहीं तो मौन, लेकिन राजनीति के कुछ धुरंधरों को यह रास नहीं आया. सत्ता पक्ष के कुछ नेता ‘वाचाल’ हो गए. ‘छपाक’ के बहिष्कार का भी ऐलान कर दिया. फिर भी फिल्म ने सिर्फ चार दिनों में ही तकरीबन बीस करोड़ के आंकड़े को छू ही लिया है.

दरअसल ‘छपाक’ से बतौर निर्माता भी दीपिका पादुकोण का नाम पहली बार सामने आया है. जाहिर तौर पर दीपिका के ऊपर फिल्म की जिम्मेदारी और बढ गई. वह एक मंजे हुए खिलाड़ी की तरह विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए फिल्म की सफलता के प्रयास में निरंतर लगी हुई हैं. मेघना गुलजार के निर्देशन में दिल को छू लेने वाली ‘छपाक’ की कहानी और दीपिका का अभिनय बेहद दमदार है.

समाज में एक विकृत वर्ग की अमानवीय हरकतों के कारण जिंदगी कैसे तबाह हो जाती है औऱ अटूट साहस से विपरीत परिस्थितियों के बावजूद समाज में हक से एक युवती के जीने की कला को दर्शाने वाली यह बेहद भावुक फिल्म अपने मिशन में पूरी तरह सफल रही. निश्चित रूप से फिल्म देखने के बाद बहुत सारे लोगों का मन बदलेगा. यही नहीं जिन्होंने कभी बदला लेने के लिए तेजाब को हथियार बनाया होगा, वो भी पश्चात की ताप से गुजरेंगे.

2005 में दिल्ली की युवती लक्ष्मी अग्रवाल पर एक युवक ने एसिड से उसकी सूरत बिगाड़ दिया था. चेहरा झुलस जाने के बाद समाज तो दूर, घर में भी जीना मुश्किल हो जाता है. टूटे हुए आत्मविश्वास, वेदना और जीवन के प्रति हताशा के बाद भी यदि कोई सही राह दिखाने वाला मिल जाए, तो जीवन के प्रति ललक बढ जाती है. दीपिका पादुकोण ने अपने किरदार को यादगार बना दिया है. फिल्म देखते हुए अधिसंख्य दर्शकों की आंखे नम हो जाती हैं.

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