नए सहयोगियों के कदमों में डालनी होगी ‘शिव-तलवार’
शिव-सत्ता हासिल करने के लिए महाराष्ट्र में अड़ी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी शिवसेना (56) के पाले में अब गेंद आ गई है. राज्यपाल की ओर से अब उसे सरकार बनाने का न्यौता दिया है. इस तरह अपने स्वर्गीय पिता बाला साहेब ठाकरे को राज्य में शिवसेना का मुख्यमंत्री बनाने के दिए अपने वचन निभाने का उद्धव ठाकरे को यह एक स्वर्णिम मौका मिला है. राज्य में सबसे बड़े दल के रूप में विधानसभा चुनाव में चुन कर आई भाजपा (105) ने भी सरकार बनाने से इंकार कर शिवसेना को अपनी यह महत्वाकांक्षा पूरी करने का अवसर दे दिया है.
कीमत भी चुकानी है सरकार बनाने के लिए
लेकिन महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए शिवसेना को अब कीमत भी चुकानी है. अपनी सरकार बनाने के लिए बहुमत हेतु उसे जिन कांग्रेस (44) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी, 54) के सहारे की जरूरत है, वे भी ‘शिव-सत्ता’ कार्यकाल में 50-50 फार्मूले की शर्त रखने वाले हैं. हालांकि शिवसेना का अभी दोनों दलों से औपचारिक रूप से समर्थन मांगना बाकी है, लेकिन एनसीपी ने समर्थन मांगने से पूर्व ही अपनी शर्तों में से एक- “राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से सारे संबंध तोड़ने और केंद्र सरकार में शामिल शिवसेना के मंत्री के इस्तीफे” की शर्त रख दी है.
भाजपा-शिवसेना का गठबंधन टूटने की कगार पर
और इसके साथ ही भाजपा-शिवसेना का गठबंधन टूटने की कगार पर आ गई है. अब कांग्रेस और राकांपा की शर्तें पूरी कर दोनों दलों से समर्थन प्राप्त करने की सारी प्रक्रिया शिवसेना को आज शाम तक ही पूरी कर लेनी है. क्योंकि राज्यपाल ने सरकार बनाने का दावा करने का समय उसे आज सोमवार की शाम 7.30 बजे तक का समय दिया है.
बैठकों का दौर शुरू
इधर शिवसत्ता और मुख्यमंत्री पद पाने के लिए शिवसेना उत्साहित है. बैठकों का दौर शुरू हो चुका है. उद्धव ठाकरे ने आपात बैठक बुलाई है. उधर सत्ता में शामिल होने के लिए शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी भी कम उत्साहित नहीं है. उसने भी बैठक शुरू कर दी है. कांग्रेस नेताओं की गतिविधियां भी आरंभ हो चुकी हैं.
आदित्य को किनारे कर उद्धव सामने
महाराष्ट्र की सरकार का कार्यकाल 9 नवंबर को खत्म हो चुका है और मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस इस्तीफा देकर अब कार्यकारी मुख्यमंत्री बने हुए हैं. अब अपने बेटे आदित्य ठाकरे को किनारे कर उद्धव ठाकरे के लिए महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनना आसान हो गया है. बेटे आदित्य ठाकरे को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद पर बैठाने का उद्धव का सपना कांग्रेस उसे अनुभवहीन बताकर चकनाचूर कर चुकी है.
अब शिवसेना के लिए एक ही विकल्प
‘शिव-सत्ता’ और मुख्यमंत्री पद के लिए अड़ी शिवसेना के सामने इसके लिए एक ओर भाजपा थी और दूसरी ओर कांग्रेस-एनसीपी का गठबंधन. शिवसेना से पूरी 49 सीटें अधिक जीतने वाली भाजपा को यह स्वीकार नहीं था कि मात्र 56 सीटें पाने वाली शिवसेना को मुख्यमंत्री बनाने का वह समर्थन दे. बहुमत के लिए 145 का समर्थन पाने के लिए भी भाजपा को और 40 के समर्थन की जरूरत थी. हालांकि उसे अनेक निर्दलीयों का समर्थन मिल चुका था, लेकिन बहुमत के लिए संख्या पर्याप्त नहीं होने के कारण उसने राज्यपाल से साफ कह दिया है कि महाराष्ट्र में भाजपा सरकार नहीं बनाएगी. इसके बाद राज्यपाल ने अब सरकार बनाने की जिम्मेदारी शिवसेना के कंधों पर डाल दी है. और इसके साथ ही अब उसके सामने अब सिर्फ एक ही विकल्प बचा है और वह है- कांग्रेस-एनसीपी से समर्थन प्राप्त करना.
समर्थन पाने के लिए बैठकों का दौर शुरू
अब इसी विकल्प पर अमल करने के लिए बैठकों का दौर भी चल पड़ा है. शिवसेना की ओर से शरद पवार से मुलाकात की जा रही है. कांग्रेस के विधायकों ने भी शिवसेना को समर्थन देने का मन बना लिया है, इसलिए मल्लिकार्जुन खड़गे विधायकों की बात सोनिया गांधी के सामने रख रहे हैं. उधर शिवसेना ने भी मुख्यमंत्री पद का चेहरा बदल दिया है, ताकि सरकार बनाने में थोड़ी आसानी हो सके. यहां आपको बता दें कि विकल्प भले ही एक ही है, लेकिन इस पर अमल करने के रास्ते में भी बहुत सारी बाधाएं हैं.
नहीं चलेंगे आदित्य ठाकरे..!
कल तक शिवसेना की ओर से आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने की कोशिशें हो रही थीं, लेकिन शायद शिवसेना अब ये समझ चुकी है कि आदित्य अभी इतने काबिल नहीं हुए हैं कि उनके कंधों पर इतनी बड़ी जिम्मेदारी डाल दी जाए. इसी बीच अन्य दलों सहित कांग्रेस ने भी आदित्य ठाकरे की क्षमता पर भी आशंका जता कर शिवसेना को आदित्य ठाकरे को पीछे लेने पर मजबूर कर दिया है. इसके साथ ही मुंबई में कुछ जगहों पर उद्धव ठाकरे के पोस्टर लगे दिखाई दिए. यानी ये कहना गलत नहीं होगा कि अब शिवेसना की ओर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार खुद उद्धव ठाकरे भी हो सकते हैं.
कांग्रेस- एनसीपी गठबंधन को भी सत्ता में 50-50 चाहिए
अब कांग्रेस-एनसीपी के साथ गठबंधन के बाद ये फैसला किया जाएगा कि पूरे समय वही मुख्यमंत्री रहेंगे या फिर 50-50 फॉर्मूला अपनाते हुए आधे समय कांग्रेस-एनसीपी को मौका देंगे.
आधे कार्यकाल का कांग्रेस- एनसीपी का मुख्यमंत्री होगा कौन?
सवाल ये भी उठता है कि अगर आधे समय कांग्रेस-एनसीपी का मुख्यमंत्री होगा तो वो कौन होगा? क्या दोनों पार्टियों से आधे-आधे समय एक-एक नेता मुख्यमंत्री बनेगा या फिर दोनों की सहमति से बाकी के ढाई साल कोई एक ही मुख्यमंत्री रहेगा? चुनाव नतीजे आने के बाद महाराष्ट्र में सरकार बनना जितना आसान लग रहा था, असल में ये उतना ही अधिक उलझ गया है.
विचारधारा का क्या?
शिवसेना के नेता संजय राउत ने कहा है कि शिवसेना की कांग्रेस के साथ कोई दुश्मनी नहीं है. उन्होंने कहा है कि अगर कोई सरकार बनाने की तैयारी में है तो शिवसेना इसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार है. यानी वह सीधे-सीधे यही कह रहे हैं कि कांग्रेस-एनसीपी अगर चाहे तो वह शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बना ले. हां ये बात अलग है कि उन्होंने अपनी शर्तें सामने नहीं रखी हैं. लेकिन यहां एक बड़ा सवाल ये उठता है कि अगर शिवसेना के साथ कांग्रेस शिव-सत्ता में आती है तो शिवसेना के हिंदुत्व के एजेंडा का क्या होगा? कांग्रेस की सेकुलर विचारधारा का क्या होगा? किस मुंह से कांग्रेस हिंदुत्व छवि वाली भाजपा पर हमला बोलेगी? उद्धव ठाकरे कैसे हिंदुत्व की विचारधारा को आगे बढ़ाएंगे? यानी भले ही सरकार बन जाएगी, लेकिन विचारधारा का टकराव होना तय है. और जहां विचारधारा ही नहीं मिलेगी, वो सरकार कितने दिन चलेगी, ये देखना दिलचस्प रहेगा.
क्या भाजपा को हराने के लिए वाकई कांग्रेस ऐसा करेगी?
इसमें कोई दो राय नहीं है कि भाजपा का विजय रथ रोकने के लिए कांग्रेस अक्सर ही किसी न किसी पार्टी के साथ गठबंधन करती है. कर्नाटक में भी उसने ऐसा ही किया और जेडीएस के साथ गठबंधन किया. हालांकि, पूरे समय दोनों में अनबन बनी रही. जेडीएस तो तब भी भाजपा के खिलाफ चुनाव मैदान में थी, ऐसे में उसके साथ गठबंधन तो समझ आता है, लेकिन शिवसेना तो भाजपा की सहयोगी है, उसके साथ कांग्रेस गठबंधन कैसे कर सकती है? खैर, भाजपा को हराने के लिए हो सकता है कि कांग्रेस ये भी कर जाए. ये देखने वाली बात होगी कि कितने दिन ये गठबंधन चलेगा.
कुछ भी तय नहीं है
शिवसेना ने ये साफ कर रखा है कि उसे मुख्यमंत्री बनना है. यानी सीएम की कुर्सी के लिए शिवसेना सब कुछ करने को तैयार है. लेकिन कांग्रेस और एनसीपी का क्या? बिना किसी स्वार्थ के वह अपनी विरोधी विचारधारा वाली पार्टी के साथ गठबंधन क्यों करेंगे? बेशक वह भी कुछ न कुछ तो चाहते ही होंगे. कौन मंत्री बनेगा, किसे कौन सा मंत्रालय मिलेगा… बहुत सारा झोल होने वाला है. ये भी देखने वाली बात होगी कि कांग्रेस खुलकर शिवसेना का साथ देती है, या फिर बाहर से समर्थन करती है.
कितने दिन चलेगी ये सरकार?
एक सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि आखिर विरोधी विचारधारा की पार्टियों का गठबंधन कितना चलेगा, जबकि भाजपा-शिवसेना की विचारधारा एक ही है, बावजूद इसके शिवसेना और भाजपा में हमेशा ठनी रहती है. महाराष्ट्र में हमेशा भाजपा-शिवसेना का ही गठबंधन हुआ है, लेकिन हमेशा दोनों एक दूसरे से लड़ते ही रहे हैं. जैसे-तैसे दोनों ने मिलकर सरकार तो चला ली, लेकिन विरोधी विचारधाराओं की पार्टियों में सरकार कैसे चलेगी? मान लिया कि कांग्रेस-एनसीपी कुछ सोचकर शिवसेना के साथ गठबंधन के लिए तैयार भी हो जाएं तो सवाल ये है कि आखिर ये कब तक साथ रहेंगे और कैसे साथ रहेंगे? एक विचारधारा वाली भाजपा-शिवसेना का टकराव तो महाराष्ट्र ने खूब देखा है, इस बार विपरीत विचारधाराओं की पार्टियों का गठबंधन और फिर उनके बीच टकराव भी देखने तो मिल जाएगा.