*विदर्भ आपला –
मत-सम्मत : नई दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से बात कर एकनाथ शिंदे मुंबई लौटे तो शुक्रवार को अचानक सातारा स्थित अपने गांव दरे चले गए. उनका इस प्रकार गांव चले जाना अटकलों को जन्म देने लगा था. लेकिन आज शनिवार 30 नवम्बर दोपहर बाद यह खबर आई कि वे बहुत बीमार हैं.
सातारा से डॉक्टरों की टीम उनके निवास पर पहुंची जांच की तो पाया कि उन्हें तेज बुखार है. वे शर्दी, जुकाम से पीड़ित हैं. चुनाव के दौरान भारी भागम-भाग और दिन-रात की मेहनत का भी असर है. डॉक्टरों ने कहा कि दो-तीन दिनों में वे ठीक हो जाएंगे. लेकिन उनके लिए थोड़ा आराम भी जरूरी है.
बाला साहब की भूमिका
इस खबर से अटकलों को विराम तो मिला, लेकिन प्रश्न अभी भी खड़ा है कि प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा? एकनाथ शिंदे आखिर चाहते क्या हैं? क्या वे डिप्टी सीएम की कुर्सी स्वीकार कर लेंगे? या फिर वह सरकार से बाहर रहना पसंद करेंगे. ऐसे में उनके पास अवसर का बड़ा द्वार तो खुला हुआ जरूर है.
प्रेक्षकों के अनुसार, शिंदे के लिए राज्य में डिप्टी सीएम बनाने के अलावा केंद्र में मंत्री बनाने का विकल्प है. लेकिन संभावना यह भी है कि वे राज्य की राजनीति में प्रभावशाली भूमिका निभाने की अगर सोच रहे हैं तो उनके लिए स्वयं डिप्टी सीएम बनने की जगह अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेता को यह पद सौंप दें और स्वयं महायुति के प्रमुख पद पर बने रह कर पार्टी और सरकार के लिए बाला साहब ठाकरे की भूमिका में आ जाएं. केंद्र में अपने सांसद बेटे श्रीकांत को मंत्री पद पर बैठा कर राज्य की राजनीति में अपनी पकड़ और मजबूत कर लें.
सरकार में पद का मोह छोड़ने से और महायुति का प्रमुख बने रहने से वे केंद्र की राजनीति में भी भाजपा के लिए और अपनी शिवसेना दोनों के लिए एक बड़ी ताकत बन कर उभर सकते हैं. महायुति में रहकर अपने पिछले कार्यकाल में सभी सहयोगी दलों के साथ तालमेल का अनुभव उन्होंने प्राप्त कर लिया है. महायुति प्रमुख की भूमिका में अपने उसी अनुभव के आधार पर वे राज्य की बाला साहब ठाकरे और शरद पवार जैसी प्रतिष्ठा प्राप्त कर पाने का उनके लिए यह बड़ा अवसर है.
यदि एकनाथ शिंदे अपनी भूमिका और प्राथमिकताओं का निर्धारण भाजपा से अलग करना चाहते हों तो यह भी उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं, उनके समर्थन आधार और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ उनके संबंधों पर ही निर्भर करेगा. वैसे उनके पास तीन विकल्प हैं. वे चाहें तो केंद्र में मंत्री बनें, उप मुख्यमंत्री बनाना मंजूर करें या नाराज होकर महायुति से अलग हो जाएं. आइए, उनके इन तीनों विकल्पों पर ध्यान दें –
केंद्र में मंत्री बनने का विकल्प :
– केंद्र में मंत्री बनने से राष्ट्रीय स्तर पर उनकी साख बढ़ सकती है और उन्हें भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अवसर मिल सकता है.
– यह विकल्प उन्हें महाराष्ट्र की राजनीति से कुछ हद तक दूर कर सकता है, जिससे उनकी राज्य स्तर पर पकड़ कमजोर हो सकती है.
– यदि वे दीर्घकालिक राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय होना चाहते हैं, तो यह विकल्प आकर्षक हो सकता है.
महाराष्ट्र में उपमुख्यमंत्री बनना :
– महाराष्ट्र में उपमुख्यमंत्री का पद उन्हें राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण शक्ति और प्रभाव बनाए रखने का अवसर देगा.
– यह उनकी पार्टी और समर्थकों के साथ निकटता बनाए रखने में मदद करेगा.
– यदि वे महाराष्ट्र की राजनीति में लंबी अवधि तक सक्रिय रहना चाहते हैं, तो यह विकल्प बेहतर हो सकता है.
– लेकिन इससे उनकी छवि धूमिल हो सकती है.
– वे अपने सबसे प्रबल विरोधी शिवसेना (यूबीटी) की आलोचना और तंज का हमेशा शिकार बनाते रह सकते हैं.
निष्कर्ष
यह निर्णय इस बात पर निर्भर करेगा कि वे अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को किस प्रकार देखते हैं. भाजपा और शिंदे गुट के बीच सत्ता संतुलन और संभावित समझौतों का भी इसमें बड़ा योगदान होगा. अगर उन्हें भरोसा है कि केंद्र में मंत्री बनकर वे महाराष्ट्र में भी प्रभाव बनाए रख सकते हैं, तो वे उस विकल्प को चुन सकते हैं. वहीं, अगर राज्य स्तर पर उनकी पकड़ और सत्ता प्राथमिकता है, तो उप मुख्यमंत्री का पद उनके लिए अधिक उपयुक्त हो सकता है. चौथा विकल्प उन्हें बाला साहब जैसी प्रतिष्ठा दिला सकता है. इससे उनका कद महाराष्ट्र की राजनीति में बढ़ सकता है.
अगर एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र की राजनीति में ही खुद को सक्रिय रखना चाहते हैं तो वे डिप्टी सीएम बनने को भी राजी हो सकते हैं. इस तरह से महाराष्ट्र की सरकार में उनकी सीधी दखल रहेगी, वे राज्य में रहकर अपनी पार्टी को भी और ज्यादा मजबूत कर पाएंगे और शानदार प्रदर्शन के दम पर कई बड़े मंत्रालय भी अपनी झोली में रखेंगे. ऐसे में अगर ईगो बीच में ना आए तो शिंदे महायुति को लीड कर सकते हैं.
यदि नाराज होकर समर्थन वापस लेना चाहें शिंदे..!
अगर किसी भी स्थिति में एकनाथ शिंदे इस तीसरे विकल्प को चुनते हैं, जानकार मानते हैं कि यह उनके लिए सियासी रूप से आत्मघाती सिद्ध हो सकता है. असल में किसी जमाने में राज ठाकरे ने भी ऐसे ही शिवसेना से अलग होकर अपनी हिंदू राजनीति आगे बढ़ाने का फैसला किया था. आज उनकी पार्टी का ऐसा हाल है कि सभी सीटों पर जमानत जब्त हो गई.
ऐसे में अगर एकनाथ शिंदे भाजपा से अपना समर्थन वापस भी लेते हैं, उस स्थिति में उनके पास ज्यादा विकल्प नहीं बचते. क्योंकि बिना दूसरे सहयोगी दलों उनके पास आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त वोट बैंक नहीं है. उद्धव के साथ फिर हाथ मिलाने का तो वैसे भी कोई सवाल पैदा नहीं होता. उद्धव के आगे वहां उनका अस्तित्व ही नहीं बचेगा.