लेटरल एंट्री

लेटरल एंट्री रोकी : गठबंधन धर्म या विपक्ष के दबाव में..! 

देश राजनीति
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*कल्याण कुमार सिन्हा-

विश्लेषण : कांग्रेस नेता राहुल गांधी और अन्य विपक्षी नेताओं को अपनी-अपनी पीठ थपथपाने का मौका मिल गया है. केंद्र सरकार की ओर से यूपीएससी लेटरल एंट्री के विज्ञापन को रद्द करने का आदेश दे दिया. यूपीएससी ने लेटरल एंट्री का विज्ञापन रद्द भी कर दिया है.  प्रश्न यह भी उठाने लगा है कि एनडीए सरकार ने यह लेटरल एंट्री का निर्णय वापस लेने का फैसला गठबंधन धर्म निभाते हुए लिया या विपक्षी नेताओं के विरोध के कारण?

पिछले दो कार्यकालों में मजबूत सरकार के रूप में अपनी पहचान बनाने वाली केंद्र की मोदी सरकार तीसरे कार्यकाल में इस प्रकरण से बैकफुट पर आ गई है. केंद्र सरकार की ओर से केंद्रीय लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) लेटरल एंट्री के विज्ञापन को रद्द करने का आदेश आने के बाद एक बार फिर से सियासत तेज हो गई है. विपक्ष इसे अपनी जीत के तौर पर पेश कर रहा है. जिसके बाद चर्चा होने लगी है कि इससे भाजपा को भारी नुकसान हो सकता है.

एनडीए गठबंधन के नेताओं में लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) से केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान तो खुलकर इस निर्णय का विरोध करते नजर आए. जनता दल (यूनाइटेड) ने भी राममनोहर लोहिया का हवाला दे डाला. लेकिन चंद्रा बाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) सरकार के फैसले के साथ थी. फिर भी यह सत्य है कि सरकार का अस्तित्व तो गठबंधन के इन्हीं दलों पर है. विपक्ष गठबंधन की इस कमजोर कड़ी से वाकिफ है. 

राहुल गांधी और अन्य विपक्षी नेताओं ने जिस प्रकार इसे लेकरसरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और कांग्रेस समेत विपक्षी दलों का कहना शुरू कर दिया कि मोदी सरकार आरक्षण खत्म करने की साजिश कर रही है. उसका यह प्रहार काम कर गया. एनडीए गठबंधन के सहयोगी दल दबाव में आ गए. उन्हें लगा कि फिर विपक्ष के आरक्षण और संविधान बदलने के भ्रामक प्रचार का शिकार बनना पड़ जाएगा. और फिर उनके दबाव में और पीएम मोदी के लिए गठबंधन धर्म निभाने के अलावा दूसरा रास्ता भी नहीं रहा.

केंद्रीय कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने यूपीएससी यानी संघ लोकसेवा आयोग के चेयरमैन को चिट्ठी लिखी, जिसमें उन्होंने यूपीएससी चेयरमैन को कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के निर्देश पर सीधी भर्ती यानी लेटरल एंट्री के विज्ञापन पर रोक लगाई जाए. मंत्री ने आगे कहा कि सरकार ने यह फैसला लेटरल एंट्री के व्यापक पुनर्मूल्यांकन के तहत लिया है.

पत्र में कहा गया कि अधिकतर लेटरल एंट्री 2014 से पहले की थी और इन्हें एडहॉक स्तर पर किया गया था. केंद्रीय कार्मिक मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री का विश्वास है कि लेटरल एंट्री हमारे संविधान में निहित समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के समान होनी चाहिए. खासकर आरक्षण के प्रावधानों के संबंध में किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए.

लेटरल एंट्री का विज्ञापन रद्द होने के बाद राहुल गांधी ने एक्स पर एक पोस्ट करते हुए लिखा कि “संविधान और आरक्षण व्यवस्था की हम हर कीमत पर रक्षा करेंगे. भाजपा की ‘लेटरल एंट्री’ जैसी साजिशों को हम हर हाल में नाकाम कर के दिखाएंगे. मैं एक बार फिर कह रहा हूं- 50% आरक्षण सीमा को तोड़ कर हम जातिगत गिनती के आधार पर सामाजिक न्याय सुनिश्चित करेंगे. लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने रविवार को आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूपीएससी यानी संघ लोक सेवा आयोग के बजाय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माध्यम से लोक सेवकों की भर्ती करके संविधान पर हमला कर रहे हैं. केंद्र सरकार ने ‘लेटरल एंट्री’ के माध्यम से 45 विशेषज्ञों की विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, निदेशक और उपसचिव जैसे प्रमुख पदों पर नियुक्ति करने की घोषणा की थी.

हालांकि आमतौर पर ऐसे पदों पर अखिल भारतीय सेवाओं-भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) और भारतीय वन सेवा (आईएफएस) और अन्य ग्रुप ए सेवाओं के अधिकारी तैनात किए जाते हैं. यह प्रक्रिया पंडित जवाहरलाल नेहरू के समय से चली आ रही है. इंदिरा  गांधी, राजीव गांधी, नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह की सरकारों ने लेटरल एंट्री के तहत अनेक उच्च पदों पर नियुक्तियां की हैं. नरेंद्र मोदी की सरकार ने यह कोई नई परिपाटी शुरू नहीं की. 

यूपीएससी ने हाल ही में उप सचिव, संयुक्त सचिव और निदेशकों के 45 पदों पर सीधी भर्ती का विज्ञापन जब जारी किया तो इसको लेकर जब विपक्ष ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया था. उन्होंने फिर से आरक्षण को हथियार बनाया और प्रहार करते गए. सरकार में शामिल सहयोगी दल उनके प्रहार से लथपथ हो चले थे. 

हालांकि, सरकार ने भी करारा जवाब दिया और कहा कि इसकी शुरुआत तो यूपीए सरकार ने ही की थी. सरकार की ओर से जब यह बात उजागर की गई कि देश में उच्च पदों पर लेटरल एंट्री का चलन कांग्रेस ने न केवल शुरू किया था, बल्कि इसके समर्थन में आरक्षण का विरोध भी किया था. विरोध करने वालों में और कोई नहीं, प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और राजीव गांधी थे, जो क्रमशः नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के नाना और पिता थे.

केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने सोमवार को नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को आईना भी दिखाया और उनके आरोप को बिना सोचे-समझे कुछ भी बोलते चले जाने वाली नासमझी करार दिया.  उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि कांग्रेस की सरकारों ने कैसे-कैसे लोगों को लेटरल एंट्री के तहत उच्च पदों पर बैठाया था. 

इतना ही नहीं, तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के प्रमुख बनाया गया. यह पद प्रधानमंत्री का रहा है. लेकिन इस पर सोनिया गांधी जा बैठी थीं. अर्थात वे साबित कर रही थीं कि प्रधानमंत्री से भी ऊंची कुर्सी उनकी है. और देश ने देखा कि डॉ. मनमोहन सिंह को कैसे उन्होंने अपने अंगूठे के नीचे रखा था. ऐसा नहीं था कि तब सोनिया गांधी को इस पद पर बैठाए जाने का विरोध नहीं हुआ था, सवाल नहीं उठाए गए थे. लेकिन किसी की कुछ नहीं चलने दी थी कांग्रेस ने. मोंटेक सिंह अहलूवालिया को योजना आयोग का उपाध्यक्ष लेटरल एंट्री के जरिए ही बनाया था. वहीं 1976 में मनमोहन सिंह को भी सीधी भर्ती के जरिए वित्त सचिव बनाया गया था.

अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1961 में काका साहेब कालेलकर की रिपोर्ट के आधार पर ओबीसी रिजर्वेशन का विरोध किया था. इसके बाद राजीव गांधी ने भी विरोध किया. बता दें कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के दौर से ही समय-समय पर अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों को शीर्ष पदों पर बैठाया गया है.

पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1959 में ही इंडस्ट्रियल मैनेजमेंट पूल की शुरुआत की थी, जिसमें मंटोश सोढ़ी जैसे लोगों को सरकार में शामिल किया गया था. बाद में उन्हें भारी उद्योग का सचिव बना दिया गया. इसी कड़ी में दूसरा नाम वी. कृष्णमूर्ति का था, जिन्होंने BHEL, SAIL और पीएसयू की जिम्मेदारी संभाली. इसी तरह डी.वी. कपूर ने तीन अहम मंत्रालयों का कार्यभार संभाला. इसमें ऊर्जा, भारी उद्योग और रसायन और पेट्रोकेमिकल्स विभाग शामिल था.

1954 में आई.जी. पटेल को आर्थिक सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया था. इसके बाद उन्हें वित्त विभाग का सचिव बना दिया गया. बाद में वह आरबीआई के गवर्नर भी बने. इसी तरह 1971 में पूर्व पीएम मनमोहन सिंह को आर्थिक सलाहकार के रूप में भर्ती किया गया था. उन्हें पहले वाणिज्य मंत्रालय में जिम्मेदारी दी गई और इसके बाद कई पदों पर रहे. जनता सरकार के दौरान भी रेलवे इंजीनियर एम. मेनेजेस को डिफेंस प्रोडक्शन का सचिव बनाया गया था.

केरल इलेक्ट्रॉनिक्स डेवलपमेंट कारपोरेशन के चेयरमैन के.पी.पी. नांबियार को राजीव गांधी की सरकार में इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्रेटरी बनाया गया था. इसके अलावा सैम पित्रोदा को भी सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स की जिम्मेदारी दी गई थी. वहीं 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में आर.वी. शाही को प्राइवेट सेक्टर से लाकर ऊर्जा मंत्रालय में सचिव बना दिया गया. इस क्षेत्र में सुधार के लिए उन्हें लाया गया था.

80 और 90 के दशक में कई आर्थिक जानकार सरकार में सीधे आए और उन्हें संयुक्त सचिव बनाया गया. बाद में वे सचिव के पद तक गए. मोदी सरकार ने 2018 में लेटरल एंट्री को व्यवस्थित करने का प्रयास किया और बड़ी संख्या में भर्ती के लिए रणनीति तैयार की. मोदी सरकार का कहना था कि बहुत सारे आईएएस अधिकारी केंद्र में नहीं आना चाहते. ऐसे में बड़े सुधारों के लिए प्रतिभाओं की जरूरत है. ऐसे में जिन लोगों ने अपने-अपने क्षेत्र में अच्छा काम किया है, वे सरकार की भी मदद कर सकते हैं.

राहुल गांधी और अन्य विपक्षी नेताओं के ऐसे आरोप नासमझी भरी तो बिलकुल नहीं है. उनके ये आरोप उनकी सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है, जिससे वे लोकसभा चुनाव में मतदाताओं को भ्रमित करने में सफल रहे थे. लेकिन यह तो मानना पड़ेगा कि उनकी यह रणनीति काम कर गई. सरकार को झुकना पड़ गया. अब चाहे वह विपक्ष का दबाव रहा हो या एनडीए गठबंधन के सहयोगी दलों का. सुखद तो इसे बिलकुल ही नहीं कहा जा सकता. 

यूपीएससी को लिखे सरकार के पत्र से जाहिर है कि सरकार लेटरल एंट्री मामले में आरक्षण के मुद्दे पर पस्त हो चुकी है. देश में चलाई जा रही आरक्षण की यह बयार, आगे और क्या गुल खिलाएगी, यह आने वाला समय ही बताएगा. विपक्ष अपने एजेंडा मनवाने में सफल हो रहा है. सरकार झटके खा रही है. 

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