चंपई सोरेन

चंपई सोरेन की हो सकती है झारखंड भाजपा में एंट्री

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रांची : झारखंड विधानसभा चुनाव कम से कम दो महीने के लिए टाल दिए गए हैं. चुनाव टलने से दल बदल की संभावना बढ़ गई है. सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के वरिष्ठ नेता पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन सहित अन्य प्रभावशाली आदिवासी नेताओं के भाजपा में शामिल होने की अटकलें तेज हो गई हैं.

झारखंड में भाजपा की सत्ता में वापसी की जिम्मेदारी असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को दी गई है. हिमंत सरमा जोरशोर से अपना अभियान चला रहे हैं. यही कारण है कि अब अचानक झारखंड की सत्ताधारी पार्टी झामुमो में बड़ी टूट की आशंका पैदा हो गई है.

झारखंड के राजनीतिक गलियारों में चल रही चर्चा है कि कोल्हान के झामुमो नेता पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन क्षेत्र के कुछ विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो सकते हैं. इसके अलावा झामुमो से निष्कासित लोबिन हेम्ब्रम और बहरागोड़ा विधायक समीर मोहंती के भी पाला बदलने की खबर है. इन तीनों का झारखंड विधानसभा की जिन 28 एसटी आरक्षित सीटों पर व्यापक असर है, उन पर भाजपा की पहले से नजर है.  

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर पार्टी के टूट की गाज गिरा कर  हिमंत बिस्वा सरमा यह आदिवासी मतदाताओं को संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि झामुमो में आदिवासी नेताओं का सम्मान नहीं है. हेमंत सोरेन को सिर्फ अपने परिवार की चिंता है.

इस बीच झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने भाजपा में शामिल होने की अफवाहों पर यह कहकर अटकलों को और हवा दे दी है कि, “हमें नहीं पता कि अफवाह है या नहीं. हमें खबर भी नहीं पता, तो हम सच और झूठ का मूल्यांकन कैसे करें. हम नहीं जानते.” कुछ पता नहीं, हम जहां हैं, वहीं हैं.”

चंपई सोरेन झामुमो के वरिष्ठ नेता हैं. झारखंड के कोल्हान क्षेत्र में इन्हें कोल्हान बाघ के नाम से जाना जाता है. कोल्हान की 14 विधानसभा सीटों पर उनका सीधा असर रहा है. झामुमो में शिबू सोरेन के विश्वस्त रहे चंपई के कद का कोई दूसरा नेता भी नहीं है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जमीन घोटाला और मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जब जेल गए तो सोरेन परिवार ने उन्हें ही अपना उत्तराधिकारी चुना था.

हेमंत सोरेन जेल से बाहर आए और चंपई सोरेन को उन्होंने मुख्यमंत्री पद से हटा दिया. चंपई इस कार्यकाल तक मुख्यमंत्री बने रहना चाहते थे. हेमंत यह साबित करने में लग गए हैं कि चंपई अच्छे से शासन नहीं चला सकते. सूत्रों के अनुसार हेमंत सोरेन के इस रवैये से चंपई सोरेन का पार्टी से मोहभंग होने लगा है.

पार्टी छोड़ने की दूसरी बड़ी वजह अपने बेटे को मैदान में उतारना बताया जा रहा है. वह अपने बेटे बाबूलाल सोरेन के लिए विधानसभा सीट चाहते हैं. सूत्रों ने बताया कि भाजपा बाबूलाल के लिए घाटशिला और पोटका सीट ऑफर कर सकती है. उन्हें नहीं लगता कि झामुमो में रहते हुए ऐसा करना संभव है.

जेएमएम से निष्कासित लोबिन हेम्ब्रम शिबू सोरेन के वफादार सिपाही रहे हैं. 1990 में पहली बार विधायक बने लोबिन अब तक 5 बार बोरियो से विधायक चुने जा चुके हैं. हेमंत सोरेन के पहले कार्यकाल में उन्हें कैबिनेट में जगह दी गई थी. लेकिन, अब लोबिन हेमंत कैबिनेट में नहीं हैं.

असंतुष्ट लोबिन हेम्ब्रम ने पिछले लोकसभा चुनाव में राजमहल लोकसभा क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में अपना आवेदन दाखिल किया था. चुनाव के बाद उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. उनकी विधानसभा सदस्यता भी ख़त्म कर दी गई. अब उनके पास भाजपा में शामिल होने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

तीसरे हैं प्रभावशाली नेता समीर मोहंती कभी भी एक पार्टी में बंधकर नहीं रहे. वे लगभग हर चुनाव में दल बदलने के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत झामुमो से की थी. 2014 में पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने झारखंड विकास मोर्चा की स्थापना की और उसमें शामिल हुए. इसके बाद उन्होंने भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ा. पिछले चुनाव में वे 10 साल बाद झामुमो में लौटे थे.

कोल्हान में 14 विधानसभा सीटें हैं. पिछले चुनाव में यहां से भाजपा का पूरी तरह सफाया हो गया था. इसी क्षेत्र से आने वाले तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास भी चुनाव में सरयू राय से हार गए थे. अब भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव में यहां से ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने की कोशिश करेगी. ऐसे में चंपई सोरेन इस क्षेत्र में उनके लिए संजीवनी साबित हो सकते हैं. राज्य की ऐसी 28 एसटी आरक्षित सीटें भाजपा के निशाने पर हैं, जिन पर भाजपा की पकड़ कमजोर है.

हालांकि इन झामुमो नेताओं को पार्टी में लाने से भाजपा को फायदा होगा भी या नहीं, यह संदेहास्पद है. क्यों कि ऐसी ही चाल उसने लोकसभा चुनाव के दौरान भी चली थी, लेकिन यह चाल चली नहीं. लोकसभा चुनाव के दौरान वह चाईबासा से वरिष्ठ कांग्रेस नेता गीता कोड़ा और दुमका से हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन दोनों को भाजपा ने लोकसभा का टिकट दिया. लेकिन दोनों हार गए. ऐसे में लोबिन हेम्ब्रम, चंपई सोरेन और समीर मोहंती के भाजपा में शामिल होने से झामुमो समर्थकों के विचार बदलेंगे, इसमें संदेह तो है.

वैसे अगर भाजपा इन नेताओं को तोड़ने में सफल हो गई तो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व पर पार्टी में भरोसा भी डगमगाएगा. अगर वफादार और पुराने नेता पार्टी छोड़ेंगे तो झामुमो में अविश्वास और अस्थिरता का माहौल बनेगा. चंपई और लोबिन जैसे नेताओं ने अपना पूरा जीवन पार्टी को समर्पित कर दिया है. इसका फायदा भाजपा को चुनाव में मिल सकता है. ऐसे में हेमंत सोरेन चंपई सोरेन को पार्टी छोड़ने से रोकना होगा.

झारखंड में भाजपा का यह अभियान असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के हाथ में है. वे हर सप्ताह झारखंड का दौरा कर रहे हैं. विभिन्न क्षेत्रों में जा रहे हैं. पार्टी क्या मुद्दा उठाएगी, सदन से लेकर मैदान तक पार्टी की नीति क्या होगी, सब कुछ वही तय कर रहे हैं.

यही कारण है कि पार्टी अपने पुराने एजेंडे को छोड़कर आदिवासियों को मुस्लिम बनाने के मुद्दे को जोर-शोर से प्रचारित कर रही है. हिमंत बिस्वा को राजनीतिक जोड़-तोड़ और हिंदुत्व की राजनीति का माहिर खिलाड़ी माना जाता है. उन्होंने इसे पूर्वोत्तर राज्यों में साबित कर दिया है. यही कारण है कि भाजपा ने झारखंड में स्थानीय नेतृत्व को किनारे कर दिया है और जिम्मेदारी उनके कंधों पर डाल दी है.

इस बीच, चंपई सोरेन के भाजपा में शामिल होने की खबर पर पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने कहा, “मैंने यह सिर्फ खबरों में सुनी है. मेरे पास कोई वास्तविक जानकारी नहीं है. उन्होंने एक अच्छे मुख्यमंत्री के रूप में झारखंड की सेवा की. सब कुछ केंद्रीय नेतृत्व पर निर्भर है. वह बहुत बड़ी शख्सियत हैं. झारखंड की साढ़े तीन करोड़ जनता उनके काम से खुश थी, लेकिन जिस तरह से उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाया गया, वह दुर्भाग्यपूर्ण था. यह एक सदमा था कि एक अच्छे व्यक्ति को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया. उनकी गलती क्या थी?”

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