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Supreme Court को ही जब अपनी अवमानना से फर्क नहीं पड़ता..!

ईपीएस-95 देश
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नजरिया : जब Supreme Court के 2022 के फैसले के बावजूद जब उच्च पेंशन के लिए आवेदन करने वाले लगभग 17 लाख वयोवृद्ध पेंशन आवेदकों को मानसिक यातना दी जा रही हो. अंतिम सांसें गिन रहे इन असहायों को अंतहीन इंतजार कराया जा रहा हो. और इसका संज्ञान लेने की फुर्सत भी नहीं हो Supreme Court के पास… ऐसा कैसे हो रहा है?

सुना है, अदालत के आदेश का अनुपालन नहीं करना, अदालत की अवमानना कहलाती है. ऐसे में अदालत अवमानना करने वाले को दंडित करता है. लेकिन देश के हमारे सर्वोच्च अदालत के आदेश को धता बताने वाले केंद्रीय कर्मचारी भविष्य निधि आयुक्त (CPF) के विरुद्ध संभवतः माननीय सर्वोच्च के लिए कोई भी कदम उठाना संभव नहीं हो पाया है. जबकि क्या केंद्रीय भविष्य निधि (CPF) आयुक्त को जेल भेजा जाना चाहिए? वह तो ईपीएस 95 पेंशनरों के प्रति अनेक अपराधों के लिए दोषी है.

लेकिन ऐसा इसलिए भी संभव नहीं लगता, क्योंकि वह भी लगातार अपने फैसलों के पेंच ईपीएफओ के पक्ष में  है. जबकि केरल हाई कोर्ट ने तो पिछले  गत वर्ष 2023 के 12 अप्रैल को EPFO की चालों को निष्फल करते हुए EPS 95 पेंशनर्स के पक्ष में फैसला सुनाया था. इस फैसले ने उच्च पेंशन के लिए EPFS, 1952 के पैरा 26(6) के तहत चुने गए विकल्प की प्रतियां पेंशनर्स द्वारा प्रस्तुत करने की बाध्यता समाप्त कर दी थी. 

साथ ही, न्यायमूर्ति जियाद रहमान एए ने अंतरिम आदेश (डब्ल्यूपी-सी नंबर 8979/23 और अन्य) में निर्देश दिया कि EPFO और उसके अधीन आने वाले प्राधिकरण फिलहाल अपनी ऑनलाइन सुविधा में कर्मचारियों या पेंशनभोगियों को सक्षम बनाने के लिए पर्याप्त प्रावधान करें. यह भी स्पष्ट किया कि EPFS, 1952 के पैरा 26(6) के तहत चुने गए विकल्प की प्रतियां प्रस्तुत किए बिना सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार विकल्प प्रस्तुत करें.

अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि यदि ऑनलाइन सुविधा में उचित संशोधन नहीं किए जा सकते हैं तो विकल्पों की हार्ड कॉपी जमा करने की अनुमति सहित व्यवहार्य वैकल्पिक व्यवस्था की जानी चाहिए या दी जानी चाहिए. अदालत ने 10 दिनों के भीतर आवश्यक व्यवस्था करने का आदेश दिया था.

अदालत के 10 दिनों के भीतर आवश्यक व्यवस्था करने के आदेश को EPFO को लागू करना था. लेकिन अदालतों के आदेशों से बच निकलने की राह बनाने में EPFO की चालें भी उस बार भी सफल हो गईं. हालांकि इसमें Supreme Court के पिछले फैसले ने भी इस ‘स्वघोषित दुनिया के सबसे बड़े सामाजिक सुरक्षा चलाने वाले सरकारी संगठन’ EPFO को अपनी धूर्तता बरकरार रखने में कम सहयोग नहीं किया है. न्याय प्रक्रिया को हायर पेंशन मामले में निष्फल बनाने की आशंका एक बार फिर सही साबित हो गई. EPFO इसे भी निष्फल कर चुका है. 

पेंशन की यह गड़बड़ी सरकार और ईपीएफओ की देन है. 1995 में सरकार ने ईपीएफओ कानून में संशोधन करके कर्मचारियों के लिए पेंशन योजना शुरू की थी, जिसका वित्तपोषण कर्मचारी के सेवानिवृत्ति लाभ में नियोक्ता के योगदान के बड़े हिस्से से किया जाना था. नियोक्ता ने कर्मचारी के वेतन का 12% सेवानिवृत्ति लाभ के रूप में योगदान दिया, और उसमें से वेतन का 8.33 प्रतिशत पेंशन में जाएगा. पेंशन योग्य वेतन सीमा शुरू में 2,500 थी, लेकिन धीरे-धीरे इसे बढ़ाकर 6,500 कर दिया गया, फिर सितंबर 2014 से इसे बढ़ा कर 15,000. 

विभिन्न उच्च न्यायालयों ने इस सीमा के विरुद्ध निर्णय दिया और उच्च अंशदान के आधार पर उच्च पेंशन पाने के इच्छुक कर्मचारियों को उस विकल्प का प्रयोग करने का अवसर दिया. ईपीएफओ ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी. नवंबर 2022 में, Supreme Court ने फैसला सुनाया कि पात्रता की सीमा मनमानी थी और लोगों को उच्च अंशदान करने और उच्च पेंशन पाने के विकल्प का प्रयोग करने के लिए 4 महीने की अवधि का आदेश दिया.

इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने ईपीएफओ को आठ महीने में सभी भुगतान पूरा करने का निर्देश दिया. कुल मिलाकर, ईपीएफओ को लगभग 17.5 लाख आवेदन प्राप्त हुए. नियोक्ता, जिनकी सहमति उच्च पेंशन के लिए आवश्यक है, लगभग 3 लाख आवेदनों को दबाए बैठे हैं. ईपीएफ के पास 14 लाख पूर्ण आवेदन हैं, और 8.47 लाख को संसाधित किया गया है. Supreme Court के आदेश के दो साल बाद, 16,000 से अधिक सेवानिवृत्त लोगों को पेंशन आदेश जारी नहीं किए जा सके हैं.
पेंशनभोगी क्या करें?

वे ईपीएफओ के खिलाफ अवमानना ​​का मामला दर्ज कर सकते हैं, लेकिन उन्हें न्यायिक प्रणाली पर पहले से ही बोझ बने मामलों के ढेर में दबना पड़ेगा. मुख्य सवाल यह है कि सरकार इस स्थिति के बारे में क्या कर रही है? इसने ईपीएफओ को काम पूरा करने का आदेश दिया है. क्या यह काफी है?

ईपीएफ द्वारा दी जाने वाली पेंशन का निवेश करने पर मिलने वाले रिटर्न से कोई संबंध नहीं है. यह एक औचित्यहीन फॉर्मूले पर आधारित है. अब सवाल है कि ‘पेंशन योग्य वेतन x सेवा अवधि/70’ वाला यह फॉर्मूला इसे क्यों नहीं खत्म किया जाना चाहिए? ईपीएस पेंशन का भुगतान राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली की तरह ही प्राप्त रिटर्न से क्यों नहीं किया जाना चाहिए? वास्तव में, जरूरत है कि ईपीएफ खातों को एनपीएस में स्थानांतरित कर दिया जाए और ईपीएफ को तुरंत बंद कर दिया जाए. लेकिन Supreme Court बीच में है. अवमानना के बाद भी पता नहीं क्यों, वही ईपीएफओ के बचाव में खड़ा नजर आता है?