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ब्रह्मोस : देशद्रोही निशांत अग्रवाल को नहीं मिली जमानत 

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नागपुर : कुरुक्षेत्र एनआईटी के 2013 बैच का टॉपर, जिसे देश के प्रतिष्ठित रक्षा संस्थान – डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) ने चुना. उसे सुपरसोनिक ब्रह्मोस मिसाइल प्रोजेक्ट का वैज्ञानिक बनाया. लेकिन वह निशांत अग्रवाल तो गद्दार और देशद्रोही निकला. निचली अदालत से पिछले 3 जून 2024 को मिली तीन साल की सश्रम कैद की सजा के विरुद्ध हाई कोर्ट से जमानत की उसकी याचिका शुक्रवार को खारिज हो गई. उसने कनाडा में 30 हजार डॉलर की नौकरी की लालच में पाकिस्तानी एजेंटों से देश के सुपरसोनिक क्रूज ब्रह्मोस मिसाइल की खुफिया जानकारी का सौदा कर डाला था. 

बॉम्बे हाई कोर्ट के नागपुर बेंच ने कहा, “नागपुर जिला सत्र न्यायालय के फैसले में कोई खामी नहीं है. यह मुद्दा मुख्य रूप से देश की सुरक्षा और संरक्षा से संबंधित है, जिसे गंभीरता से देखा जाना चाहिए. अपराध का प्रभाव राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है. हमारे विचार में जब राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल उठता है तो यह हत्या के मामलों से भी अधिक जघन्य होता है. इन परिस्थितियों में राष्ट्रीय सुरक्षा और सुरक्षा को जोखिम में नहीं डाला जा सकता है. निचली अदालत ने सभी तथ्यों पर गौर करने के बाद उचित फैसला किया है.”

ब्रह्मोस मिसाइल की गोपनीय जानकारी पाकिस्तान के आईएसआई एजेंट को देने के मामले में लंबी न्यायिक प्रक्रिया के बाद हाल ही में जिला सत्र न्यायालय ने पिछले 3 जून 2024 को निशांत अग्रवाल को तीन साल की सश्रम कैद की सजा सुनाई. वह नागपुर के बुटीबोरी स्थित डीआरडीओ में अतिसंवेदनशील रक्षा क्षेत्र के सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस प्रोजेक्ट पर कार्यरत था. जिला सत्र न्यायालय के इसी आदेश को चुनौती देते हुए सजा रद्द करने की मांग कर निशांत ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. याचिका पर चली लंबी बहस के बाद शुक्रवार को हाई कोर्ट की ओर से फैसला सुनाया गया. निशांत की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दवे और सरकार की ओर से सहायक सरकारी वकील अनूप बदर ने पैरवी की.

एटीएस की चार्जशीट का हवाला देते हुए बताया गया कि निशांत के लैपटॉप और हार्ड डिस्क का गहन जांच की गई. लैपटॉप में खुफिया और प्रतिबंधित रिकॉर्ड पाया गया था. इस तरह की 19 फाइल्स निशांत के लैपटॉप में थीं. आश्चर्यजनक यह है कि उसने लैपटॉप में एक सॉफ्टवेयर डाल रखा था. सॉफ्टवेयर के जरिए लैपटॉप से खुफिया और गंभीर विस्तृत जानकारी विदेशों में बैठे आतंकी संगठनों को मिल जाती थी. प्राथमिक स्तर पर पाया गया कि 4,47,734 कैच फाइल्स इस लैपटॉप और हार्ड डिस्क से लीक हुई है. इस तरह के कई गंभीर और पुख्ता सबूत उपलब्ध है. पूरा मामला देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है जो काफी गंभीर है. 

अभियोजन पक्ष के अनुसार, निशांत फेसबुक के जरिए पाकिस्तान स्थित इस्लामाबाद से ऑपरेट होने वाले फेसबुक अकाउंट से जुड़ा हुआ था. सेजल कपूर नामक युवती द्वारा भेजे गए एप्लीकेशन को निशांत ने कम्प्यूटर में डाउनलोड कर लिया था, जिसके माध्यम से विदेशी खरीदार ब्रह्मोस मिसाइल से संबंधित खुफिया जानकारी को सहजता से प्राप्त कर सकते थे.

-अभियोजन पक्ष ने जो तथ्य प्रस्तुत किए, उसमें बताया गया, “देश विघातक गतिविधियों में फंसाने के लिए याचिकाकर्ता के खिलाफ हनी ट्रैप लगाकर उसे जांल में फंसाया गया.”

-कुरुक्षेत्र एनआईटी से 2013 की बैच के टॉपर निशांत को डीआरडीओ में वैज्ञानिक के पद पर नियुक्ति मिली थी.

-अगस्त 2012 को प्लेसमेंट के बाद उसे नागपुर यूनिट में भेजा गया. जहां ब्रह्मोस यूनिट में कार्यरत था. सरकारी पक्ष के अनुसार यह देश की सुरक्षा का प्रश्न है, जिसे सहजता से नहीं लिया जा सकता है.

निशांत की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील की दलील थी कि लैपटॉप में जो खुफिया फाइल्स पाई गई हैं, वह प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करने के लिए रखी गई थी. यहां तक कि ये दस्तावेज वरिष्ठ सहकर्मी ऐलन अब्राहम ने ही उपलब्ध कराया था. उन्होंने कोर्ट को बताने की कोशिश भी की कि याचिकाकर्ता ने सामान्य रूप से फेसबुक पर स्वीकृत होने वाले अनुरोध को स्वीकार कर सेजल और अन्य युवती के सम्पर्क में आ गया. याचिकाकर्ता ने गलती से मालवेयर डाउनलोड कर लिया था. इस संदर्भ में उसे कोई जानकारी नहीं थी. याचिकाकर्ता के खिलाफ ऐसे कोई तथ्य नहीं हैं कि उसने जानबूझकर देश की सुरक्षा को खतरे में डालने के इरादे से खुफिया जानकारी प्राप्त की थी.

बचाव पक्ष के इन दलीलों पर न्यायालय में प्रस्तुत अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए प्रमाण भारी थे. फलस्वरूप हाई कोर्ट से निशांत अग्रवाल की जमानत पाने की आशा धरी रह गई. 

पाकिस्तानी गुप्तचर एजेंसी आईसीआई का एजेंट बने युवा वैज्ञानिक निशांत अग्रवाल को ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल की अतिसंवेदनशील गुप्त जानकारियां और तकनीकि आंकड़े पाकिस्तानी और अमेरिकी एजेंसियों को उपलब्ध कराने के आरोप में 8 अक्टूबर 2018 को गिरफ्तार किया गया था. वह केंद्र सरकार के रक्षा शोध एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की नागपुर स्थित बुटीबोरी के निकट की इकाई में कार्यरत था.

उसकी गिरफ्तारी उत्तर प्रदेश एटीएस (आतंकवाद रोधी पथक ), महाराष्ट्र एटीएस और मिलिट्री इंटेलिजेंस की संयुक्त कार्रवाई के तहत की गई थी. निशांत को ऑफिसियल सीक्रेट एक्ट की विभिन्न धाराओं के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया. गिरफ्तारी के साथ ही उसके घर की तलाशी भी की गई. वह नागपुर के वर्धा रोड के उज्जवल नगर स्थित मनोहर काले नामक व्यक्ति के प्लाट नं. 50/7 मकान में किराए से रह रहा था.

निशांत चार वर्षों से नागपुर के निकट बुटीबोरी स्थित डीआरडीओ के ब्रह्मोस प्रोडक्शन सेंटर में कार्यरत था. उसे 2017-18 के ‘यंग साइंटिस्ट अवार्ड’ से भी सम्मानित किया गया था. गिरफ्तारी से चार महीने पूर्व ही उसका विवाह भी हुआ था. उसके साथ कार्यरत साइंटिस्टों और अधिकारियों को इस बात की भनक भी नहीं थी कि वह देश की रक्षा से संबंधित ऐसी गुप्त एवं संवेदनशील जानकारी अपने शत्रु देश और अमेरिका को उपलब्ध करा रहा है.

जांच में पता चला कि निशांत अग्रवाल को पाकिस्तानी गुप्तचर एजेंसी आईएसआई ने कनाडा में 30,000 डॉलर मासिक की एक आईटी फर्म में नौकरी दिलाने का लालच दिया और फांस लिया.

नौकरी देने के लिए फोन पर आईएसआई एजेंट ने डीआरडीओ में ब्रह्मोस एयरोस्पेस मिसाइल प्रोजेक्ट पर उसके काम का नमूना मांगा और इतनी बड़ी रकम की नौकरी पाने की लालच में निशांत अग्रवाल ने ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल से संबंधित जानकारी पाकिस्तानी एजेंट को उपलब्ध करा दी थी.

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