Ex CJI गोगोई के तीरों के आगे AG वेणुगोपाल भी ढेर 

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सुप्रीम कोर्ट की अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के लिए सहमति देने से किया इनकार

देश का वर्तमान शासन तंत्र अर्थात कार्यपालिका और न्यायपालिका के साथ विधायिका की भी विशेष सन्दर्भों में तटस्थता के भाव जाहिर रूप से मात्र स्वांग ही नजर आते हैं. विधायिका में विपक्ष कमजोर ही नहीं, अपने को आप्रसांगिक बना चुका है. देश के गंभीर मसलों को अनर्गल आरोपों के आवरण में पेश कर अपनी स्थिति विदूषक सी बना ली है. उसकी आक्रामकता नपुंसकता की हद तक थोथी बन चुकी है. स्पष्ट नजर आता है कि विपक्षी नेताओं में वह बात है ही नहीं, जिसे देश पूर्व की सरकारों के समय के विपक्षी नेताओं में देखा था. 

यही कारण है कि आज कार्यपालिका अथवा हमारा शासन तंत्र, न्यायपालिका और विधायिका दोनों पर पूरी तरह हावी है. इससे वह चिकना घड़ा बन चुकी है. जो उसे नहीं भाती, विशेष सन्दर्भों में उसकी ओर से वह अपने कान-आंख बंद करने का स्वांग रच लेता है. कुछ मामलों जब भृकुटि तान लेता है तब विधायिका और न्यायपालिका दोनों ही साथ हो लेते हैं. निष्प्रभावी विपक्ष का निष्प्रभावी विरोध तूती की आवाज बन कर रह जाती है. इसका उदाहरण हाल के अनेक विशिष्ट जनों के मामले में सामने आया है. 

विश्लेषण : कल्याण कुमार सिन्हा-
मामले अनेक हैं. लेकिन सबसे ताजा और दिलचस्प प्रकरण है भारत की सर्वोच्च अदालत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई के सन्दर्भ में. Ex CJI रंजन गोगोई के खिलाफ (उनके अपने कार्यकाल के ही दौरान) यौन उत्पीड़न (सेक्सुअल हरासमेंट) मामले में खुद के नोटिस (स्वत: संज्ञान) पर शुरू की गई सुनवाई पिछले गुरुवार, 18 फरवरी 2021 को बंद कर दिए जाने का मामले की स्याही अभी सूखी नहीं है. अदालत (सुप्रीम कोर्ट) ने कहा कि पूर्व जस्टिस ए.के. पटनायक की जांच किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है. उनकी रिपोर्ट के आधार पर यह केस बंद किया जा रहा है. उन्हें साजिश की जांच करने का काम सौंपा गया था…” 

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला तो सुना कर गोगोई को बरी कर दिया, लेकिन उन्हें आरोपित करने वाली पीड़िता के सन्दर्भ में अदालत ने चुप्पी साध ली. उसके आरोप सही नहीं थे तो झूठा आरोप लगाने वाली महिला दोषी थी या नहीं, नहीं बताया गया. पीड़िता के साथ प्रशासन ने कैसे-कैसे खेल खेले, यह सब बातें दबा दी गईं, पीड़िता के मुंह बंद करने का भी उपाय कर दिया गया. इस मामले में विपक्ष के नेताओं ने जानने की भी जुर्रत नहीं की. 

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इण्डिया टुडे के कार्यक्रम में इंटरव्यू देते भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई. 

लेकिन मामले में फांस तो पड़ ही गई है. जस्टिस गोगोई ने अपने बारे में इस मामले में फैसला आने से पूर्व (संभवतः आशंका वश) ‘इंडिया टुडे’ के साथ इंटरव्यू में देश की न्यायव्यवस्था पर ऐसी टिप्पणियां कर डालीं, जिसे देश की न्यायपालिका की मानो कंपकंपी छूट गई. दो दिनों बाद जस्टिस गोगोई को सेक्सुअल हरासमेंट के आरोप से बरी कर दिया. लेकिन इंटरव्यू के दौरान जस्टिस गोगोई ने न्यायव्यवस्था और परोक्ष रूप से कार्यपालिका पर भी ऐसी कड़ी टिप्पणियां कर दी हैं, जिसे न्यायपालिका और कार्यपालिका दोनों को ही निगलने में ही अपनी भलाई नजर आ रही है.
 
यह तथ्य भी इस वाकये से सामने आया है कि भारत के अटॉर्नी जनरल (AG) के.के. वेणुगोपाल ने इस इंटरव्यू के दौरान पूर्व मुख्य न्यायाधीश (Ex CJI) रंजन गोगोई द्वारा दिए गए बयानों के लिए उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने पर अपनी सहमति देने से इनकार कर दिया है. 
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आरटीआई एक्टिविस्ट साकेत गोखले. 

AG वेणुगोपाल ने यह जवाब एक RTI एक्टिविस्ट साकेत गोखले द्वारा न्यायपालिका और सुप्रीम कोर्ट के बारे में अपने बयानों के लिए गोगोई के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने के बारे में पूछने पर दिया. 

हालांकि, सहमति देने से इनकार करते हुए वेणुगोपाल ने माना है कि EX CJI गोगोई ने हाल के एक इंटरव्यू में न्यायपालिका और सुप्रीम कोर्ट के बारे में कुछ बहुत ही कड़े बयान दिए हैं और उनकी “उन निराशाओं के साथ गहरी चिंता को प्रतिबिंबित किया, जो निस्संदेह न्याय व्यवस्था के सामने खड़े हैं.”

हालांकि, AG वेणुगोपाल यह कह हैं कि गोगोई ने जो कुछ भी इंटरव्यू में कहा था, वह संस्थान की भलाई के लिए कहा था. इसके साथ ही उनके वे बयान किसी भी तरह से अदालत में बिखराव या जनता की नजरों में उसका सम्मान कम नहीं करेगा. 

एक्टिविस्ट साकेत गोखले ने 23 फरवरी को एजी वेणुगोपाल को पत्र लिखकर Ex CJI और वर्तमान राज्यसभा सांसद रंजन गोगोई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का अपमान करने और उसकी गरिमा को कम करने और अपमानित करने का प्रयास करने के खिलाफ अवमानना कार्यवाही की मांग की थी. गोखले एजी से इस साल 12 फरवरी को इंडिया टुडे समूह द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान Ex CJI गोगोई द्वारा दिए गए एक इंटरव्यू का जिक्र किया. जिसमें गोगोई ने निम्नलिखित 6 टिप्पणियां कीं थी-

– “भारत में आम नागरिकों को न्याय नहीं मिलता,  भारत में न्याय व्यवस्था जीर्ण-शीर्ण हो चुकी है.””आप 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था चाहते हैं, लेकिन आपके पास एक न्यायपालिका है.”
– “यदि आप अदालत में जाने वाले हैं, तो आप केवल अदालत में अपना गंदा लिनन धो रहे होंगे, आपको वहां न्याय नहीं मिलेगा. मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है.”
– “केवल कॉरपोरेट लाखों रुपए लेकर सुप्रीम कोर्ट जाने को तैयार रहते हैं.”
– “न्यायिक प्रणाली ने एक से अधिक कारणों से काम नहीं किया है.”
– “दुर्भाग्य से, ऐसे कई न्यायाधीश हैं, जो मीडिया में की गई आलोचना के शिकार हैं.”

गोगोई ने इंटव्यू में देश की न्यायव्यवस्थ के बारे में चाहे जिस मनःस्थिति में अपने यह उदगार व्यक्त किए हों, लेकिन AG वेणुगोपाल ने भी मान ही लिया है कि गोगोई के कथनों में गंभीर सच्चाई है. उन्होंने माना है कि “गोगोई ने जो कुछ भी इंटरव्यू में कहा था, वह संस्थान की भलाई के लिए कहा था” अर्थात जो कुछ गोगोई ने कहा है, वह सच्च है. 

अब गोखले भी पीछ हटाने वालों में नजर नहीं आते. उनके अनुसार, Ex CJI गोगोई के बयानों ने अदालत की घोर अवमानना की और शीर्ष अदालत को कमतर आंका. विशेष रूप से यह देखते हुए कि बयानों की व्याख्या किसी व्यक्ति से नहीं, बल्कि न्यायपालिका की सर्वोच्च संस्था पर बैठे किसी व्यक्ति ने है.

गोखले ने कॉमेडियन कुणाल कामरा और काटूर्निस्ट रचिता तनेजा के अवमानना मामलों को भी संदर्भित किया, जिसमें कहा गया था कि उन अवमानना मामलों में AG के कार्यालय द्वारा दी गई अभियोजन सहमति ने आपकी राय में अदालत की अवमानना का एक मानक स्थापित किया है. उनकी कही बात में और अधिक अवमानना और सुप्रीम कोर्ट की गंभीर निंदा है.

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