‘आरक्षण तुष्टिकरण नीति’ भारी तो नहीं पड़ रही सत्तारूढ़ भाजपा के लिए
विश्लेषण : कल्याण कुमार सिन्हा
महाराष्ट्र में ‘सेव मेरिट, सेव नेशन’ (मेरिट बचवा, देश बचवा) आंदोलन अपना प्रभाव पैदा करने में कामयाब होता नजर आ रहा है. आरक्षण के घोड़े पर सवारी कर सत्ता सुनिश्चित करने में सफल रही राज्य की भाजपा-शिवसेना सरकार को इस आंदोलन से मिल रही चुनौतियां भारी पड़ रही है. क्योंकि इस आंदोलन में भारतीय जनता पार्टी समर्थकों की संख्या ही सर्वाधिक नजर आई है. आंदोलन के अगुआ और आंदोलन से जुड़े 62 के करीब संगठन भी सत्तारूढ़ दल के बड़े समर्थकों में से हैं. जो जनसंख्या के 32 फीसदी समूह बताए जाते हैं.
इसी वर्ष 2019 के मई-जून महीने में आरंभ हुए राज्यव्यापी ‘मेरिट बचवा, देश बचवा’ आंदोलन, पिछले दिनों के मराठा आरक्षण आंदोलन से कहीं अधिक प्रभावी रहा है. क्योंकि इसमें शैक्षणिक और सामाजिक संगठनों के साथ ही अनेक वाणिज्यिक और सामान्य वर्ग के विभिन्न जातीय समूहों के संगठन भी शामिल हैं. नागपुर के साथ ही विदर्भ के अन्य जिलों में इस आंदोलन को व्यापक प्रतिसाद मिला है. इसके साथ ही पुणे, मुम्बई सहित कोंकण, पश्चिम महाराष्ट्र, मराठवाड़ा और नासिक (खानदेश) में भी इस आंदोलन का प्रभावी स्वरूप नजर आया है. पडोसी राज्य मध्य्प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी इस आंदोलन के सुगबुगाहट दिखाई देने लगी है.
भयावह बन गई है आरक्षण की राजनीति
लोकसभा चुनाव से पूर्व केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने सामान्य जाति वर्ग में आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू कर दिया है. इसके तहत सरकारी नौकरी और शिक्षा के क्षेत्र में 10 फीसदी आरक्षण दिया गया है. लेकिन इसके बाद से ही सामान्य वर्ग के लोगों में शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण के इस घुड़दौड़ के बीच 10 फीसदी आरक्षण के खोखलेपन का अहसास गहराया है. महाराष्ट्र में आरक्षण की राजनीति सामान्य वर्ग के लोगों की नजरों में भयावह बन गई है. शिक्षा और नौकरियों में प्रतिभा (मेरिट) की उपेक्षा कर जातिगत वोटबैंक के लिए आरक्षण कोटे को महाराष्ट्र में 74 प्रतिशत तक जा पहुंचा दिया गया है.
आत्मघाती मानते हैं अत्याधिक आरक्षण को
‘मेरिट बचवा, देश बचवा’ समर्थकों के अनुसार आरक्षण के कारण शिक्षा से लेकर वित्त, साइंटिफिक और सरकारी संस्थाओं में गिरावट आई है. यह केवल सामान्य वर्ग के लोगों के लिए ही नहीं, बल्कि आरक्षित वर्ग और देश के भविष्य के लिए भी सही नहीं है. आंदोलनकारियों को संवैधानिक आरक्षण स्वीकार्य है, लेकिन अत्याधिक आरक्षण को वे आत्मघाती मानते हैं. उनका स्पष्ट मत है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण के लिए तय 50 फीसदी मर्यादा का पालन होना चाहिए.
तत्काल रद्द हो अतिरिक्त आरक्षण
‘सेव मेरिट सेव नेशन’ के समर्थकों का मानना है कि अतिरिक्त आरक्षण तत्काल रद्द होना चाहिए, ताकि उत्कृष्ट विद्यार्थियों को शिक्षा और नौकरी में समान अवसर मिल सके. उनका आरोप है कि राज्य सरकार के मराठा आरक्षण और केन्द्र सरकार के आर्थिक आरक्षण के कारण राज्य में आरक्षण 74 फीसदी तक पहुंच गया है. इससे उत्कृष्ट विद्यार्थियों के साथ अन्याय हो रहा है और शिक्षा एवं नौकरियों में सामान्य वर्ग के प्रतिभाशाली युवाओं के लिए जगह कम हो गई है. ऐसे में मेरिट के बच्चे जाएं तो कहां जाएं.
महाराष्ट्र के इतिहास में अब तक सामान्य वर्ग ने आरक्षण को लेकर कोई आंदाेलन नहीं किया, लेकिन जब 16 फीसदी आरक्षण एक दिन में देने का निर्णय लिया गया तो बात चुभ गई और सरकार की तुष्टिकरण की इस नीति से होने वाले नुकसान को लेकर वे सजग हो गए. आंदोलनकारी मानते हैं कि राज्य के विभिन्न जाति, धर्म और समाज के छोटे-छोटे समूहों के 40 फीसदी लोगों के साथ अन्याय हुआ है.
भौंचक हैं भाजपा नेता
दिलचस्प स्थिति यह है कि जिन विधायकों ने अतिरिक्त आरक्षण के इस बिल का विरोध नहीं किया, वही अब आश्वासन दे रहे हैं कि हम ‘सेव मेरिट, सेव नेशन’ आंदोलन का समर्थन करते हैं. इससे यह बात साफ होने लगी है कि इस आंदोलन ने वोट की राजनीति को तो निश्चित रूप से प्रभावित किया है. सरकार के लोग और भाजपा नेता भौंचक हैं. वे समझ नहीं पा रहे कि सामान्य वर्ग के जिस बड़े समूह ने राज्य में भारतीय जनता पार्टी को सत्तारूढ़ करने में जी-जान लगा दी थी, वही समूह अब अपनी ही सरकार की आरक्षण नीति के खिलाफ ऐसे खड़ा कैसे हो गया?
सत्ता की मलाई में अपना हिस्सा?
लेकिन जनांदोलन का स्वरूप ले चुके ‘मेरिट बचवा, देश बचवा’ को लेकर सत्तारूढ़ दल को गलफहमी भी हो चली है. नेताओं को लग रहा है कि आंदोलन खड़े कर इसके नेता सत्ता की मलाई में अपना हिस्सा चाहते हैं. राज्य में विधानसभा चुनाव सिर पर है. ऐसे में उन्हें लगता है कि आंदोलन के नेताओं के साथ सौदेबाजी की जा सकती है. जबकि आंदोलन में शामिल हो अपनी एकजुटता का परिचय दे चुके भारी संख्या में युवक-युवतियों में कोई मुगालता नहीं है. वे किसी के नेतृत्व के मोहताज नजर नहीं आते. उनका मानना है कि आरक्षण की यह तुष्टिकरण की नीति उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ है.
आरक्षण को ही अपना जनाधार बढ़ाने का साधन बनाया
उन्होंने यह तथ्य भी ढूंढ निकाला है कि देश में जब-जब और जहां-जहां भाजपा शासन में आई और जिन-जिन को सरकार बनाने के लिए समर्थन दिया, वहां-वहां उसने आरक्षण को ही अपना जनाधार बढ़ाने का साधन बनाया. भारतीय जनता पार्टी की आरक्षण के टुकड़े डाल-डाल कर अपना जनाधार बढ़ाने की नीति अब उसे अपने गले का ही फांस बनता नजर आ रहा है. सिर पर आ खड़ा हुए विधानसभा चुनाव के बीच ही बवंडर बन गई आरक्षण विरोधी इस हवा को समझ पाने में विपक्षी दलों की असफलता ही राज्य में भाजपा को आश्वस्त कर रही है कि संभवतः इससे उसे कोई बड़ा नुकसान न हो.