सात वर्षों

सात वर्षों की तपश्चर्या से भारत को मिली उर्वरक उत्पादन की स्वदेशी तकनीक 

कृषि और किसान
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*विदर्भ आपला –
साक्षात्कार : भारत ने पिछले सात वर्षों के अनुसंधान के बाद अपनी पहली स्वदेशी घुलनशील उर्वरक प्रौद्योगिकी विकसित की है. यह एक ऐसी बड़ी सफलता है, जिससे देश विशेष उर्वरकों के क्षेत्र में आयात-निर्भर क्रेता से निर्यात-उन्मुख खिलाड़ी में बदल सकता है.

खान मंत्रालय द्वारा समर्थित तथा भारतीय कच्चे माल और स्वदेशी संयंत्रों का उपयोग करके डिजाइन किए गए इस नवाचार को वास्तविक “मेक इन इंडिया” उपलब्धि माना जा रहा है. इस नवाचार में चाइनीज आयात पर निर्भरता में भारी कमी लाने की क्षमता है. जो वर्तमान में भारत की विशेष उर्वरक आवश्यकताओं का लगभग 80 प्रतिशत है. 
इस महत्वपूर्ण ‘मेक इन इंडिया’ नवाचार पहल का नेतृत्व करने वाले सॉल्यूबल फर्टिलाइजर इंडस्ट्री एसोसिएशन (एसएफआईए) के अध्यक्ष राजीब चक्रवर्ती हैं. उन्होंने बताया, “मेरा उद्देश्य भारत को, विशेष रूप से विशेष उर्वरक के लिए, एक निर्यात-प्रधान देश बनाना था, न कि आयात पर निर्भर देश बनाना है.” 

स्वदेशी तकनीक से उत्पादन शून्य-अपशिष्ट और  उत्सर्जन-मुक्त होगा 

राजीब की सात वर्षों की तपश्चर्या से मिली इस नई तकनीक की सबसे बड़ी उपलब्धि एक और भी है. इस तकनीक से उर्वरक उत्पादन “शून्य-अपशिष्ट (Zero Waste), उत्सर्जन-मुक्त (Emission Free)” होगा. आज दुनिया भर में प्रत्येक उद्योग के लिए बड़ी समस्या, उत्पादन के साथ भारी मात्रा में निकलने वाले अपशिष्ट होते हैं. जिन्हें ठिकाने लगाना इंडस्ट्रीज का बहुत बड़ा सरदर्द होता है. मौजूदा तकनीक में इस बड़ी समस्या से मुक्ति मिलेगी. चीन भारी मात्रा में उर्वरक उत्पादन करता है और निर्यात भी करता है. लेकिन वह भी अपशिष्ट और उत्सर्जन का हल नहीं निकाल पाया है. 

उन्होंने “विदर्भ आपला” को एक भेंट में बताया, “दुर्भाग्य की बात है कि भारत की चीन पर निर्भरता लगभग पूरी तरह से है—इसके 95 प्रतिशत विशेष उर्वरक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से चीन से प्राप्त होते हैं. केवल 5 प्रतिशत घरेलू स्तर पर एनपीके फॉर्मूलेशन उत्पादित किए जाते हैं.” ऐसी निराशाजनक परिदृश्य में युवा शोधकर्ता एवं घुलनशील उर्वरक उद्यमी राजीब चक्रवर्ती ने अपने इस अनुसंधान से देश को स्वदेशी घुलनशील उर्वरक उत्पादन में आत्मनिर्भर और दुनिया में अग्रणी बनाने की दिशा में मार्ग प्रशस्त किया है. 

आरएंडडी की चुनौतियों से उपजी हताशा को दिया मात 

राजीब चक्रवर्ती ने स्वदेशी उर्वरक के अनुसंधान में शोध और विकास (आरएंडडी) के सात वर्षों की अपनी तपश्चर्या के दौरान अपने उर्वरक उत्पादन व्यवसाय को ही जोखिम में डाल दिया था. कई बार ऐसी परिस्थितियां आईं कि लगा कि वर्षों की मेहनत से खड़ी की गई अपना उद्यम ही वे खो बैठेंगे, उर्वरक क्षेत्र से ही वे बाहर हो जाएंगे. लेकिन देश को उर्वरक उत्पादन में स्वदेशी तकनीक एवं स्वदेशी खनिजों के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाने के उनके जुनून ने आखिरकार उन्हें मंजिल तक पहुंचा ही दिया है. चुनौतियों का वर्णन करते हुए राजीब कहते हैं, “आरएंडडी का मतलब है हजार बार असफल होना. अनुसंधान और शोध कार्य आसान नहीं होते. सीमित संसाधनों और आर्थिक मदद के बिना ऐसे संकल्प पूरे कर पाने में सात वर्षों में मुझे अपनी बार-बार की असफलताओं ने कई बार हताशा की ओर भी ढकेलने की कोशिश की. लेकिन मैं गिर कर उठता रहा और अंत में मुझे वह आत्मिक आनंद मिल पाया, जिसे पाना मैंने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था. 

हजार विफलताओं के बाद तपश्चर्या रंग लाई

उन्होंने कहा, “हज़ार बार असफल होने के बाद भी आपको सिर्फ़ एक बार सफलता मिली है. तो यह हर अनुसंधान एवं विकास प्रक्रिया में आम बात है.” उन्होंने बताया कि सात वषों के इस अनुसंधान के दौरान एक समय तो उनका कारोबार लगभग बंद सा हो गया था. लेकिन, ख़ुशी की बात है कि अब तो मेरी इस नई तकनीक का कई सरकारी स्तरों पर परीक्षण हो चुका है और इसे खान मंत्रालय से पायलट प्लांट के लिए समर्थन मिल चुका है, जो अब बड़े पैमाने पर विस्तार के लिए तैयार है. राजीब को पूरा विश्वास है कि अगले दो साल के भीतर किसानों के खेतों हमारा स्वदेश उर्वरक पहुंच जाएगा, जब इसका व्यावसायिक उत्पादन पहुंचने की उम्मीद है, और देश की प्रमुख उर्वरक कंपनियों के साथ संयुक्त उद्यम के लिए बातचीत भी पहले ही शुरू हो चुकी है.

राजीब ने बताया , “यह दो साल बाद यह स्वदेशी उर्वरक बाजार में आना शुरू हो जाएगा, जब हम इसकी बड़ी क्षमता से रूबरू होंगे और मुझे लगता है कि बहुत जल्द ही यह कम से कम विशेष उर्वरक में आत्मनिर्भरता लाएगा.” 

पारंपरिक प्रक्रियाओं के विपरीत, जिनमें प्रत्येक उत्पाद के लिए अलग-अलग तकनीकों की आवश्यकता होती है, यह सफलता लगभग सभी घुलनशील उर्वरकों के निर्माण के लिए एक ही प्रक्रिया प्रदान करती है. उन्होंने बताया कि इसे शून्य-अपशिष्ट, उत्सर्जन-मुक्त परियोजना के रूप में भी डिजाइन किया गया है, जो राष्ट्रीय महत्व की परियोजना के रूप में आधिकारिक मान्यता प्राप्त करने में महत्वपूर्ण रही. 

राजीब चक्रवर्ती ने बताया, “यह विशेष प्रौद्योगिकी शून्य उत्सर्जन वाली परियोजना है. इस परियोजना से कोई उत्सर्जन नहीं होता. इसीलिए खान मंत्रालय ने इस पर विचार किया और इसे राष्ट्रीय महत्व की परियोजना घोषित किया. है.” 

अर्थात, यह स्वदेशी मॉडल, विदेशी उर्वरक तकनीकों के लाइसेंस और उन्नयन पर भारत को होने वाली उच्च लागत को भी समाप्त कर देगा. चक्रवर्ती ने कहा, “आज हमारे पास जो भी तकनीक है, खासकर उर्वरक के क्षेत्र में, वह वास्तव में उधार ली गई तकनीक है. वह हमारी भारतीय तकनीक नहीं है. इसलिए हर उधारी के लिए हमें बहुत बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ती है.” 

उन्होंने कहा कि “घरेलू विकास निरंतर नवाचार सुनिश्चित करता है, हमें विदेशी तकनीक के साथ उन्नयन नहीं मिलता. यह उन्नयन पाने के लिए हम एक अलग कीमत चुकाते हैं. लेकिन अगर यह हमारा अपना है, तो हम विकास सुचारु रूप से जारी रख सकते हैं.”