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राष्ट्र सेवा की नए क्षितिज की ओर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 

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*विनोद देशमुख

बालासाहब देवरस ने अपने जीवनकाल में ही सरसंघचालक द्वारा अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करने की नई परंपरा शुरू की. उनके बाद के दो सरसंघचालकों (रज्जू भैया और सुदर्शन जी) ने भी यही किया. बालासाहब ने सह सरकार्यवाह रज्जू भैया (डॉ. राजेंद्र सिंह) को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया, जबकि रज्जू भैया ने सुदर्शन जी को सरसंघचालक बनाया. शेषाद्रि जी, जो दोनों ही अवसरों पर सरकार्यवाह रहे, ने व्यवहार में इस परिवर्तन को सहजता से स्वीकार किया और बाद में ही वे इस पद से सेवानिवृत्त हुए. यही संघ की शिक्षा की सुंदरता है, और यही संघ का शक्ति-केंद्र भी है.

राष्ट्र के लिए समय के अनुसार ऐसे बदलाव टीम की विशेषता हैं. इससे संघ में नई परंपराओं की स्थापना और नई उड़ान के लिए मजबूत पंख मिलते जा रहे हैं. शुरुआती दिनों में खाकी हाफ पैंट और खाकी शर्ट टीम की वर्दी हुआ करती थी. जब यह महसूस हुआ कि अंग्रेजों का इस बारे में गलत नजरिया है और इससे प्रतिबंध लग सकता है, तो खाकी शर्ट की जगह सफेद शर्ट ने ले ली. जब पशु प्रेमियों ने चमड़े की बेल्ट पर आपत्ति जताई, तो नायलॉन/प्लास्टिक की बेल्ट आ गई. हाफ पैंट की जगह अब फुल पैंट ने ले ली है. इससे विरोधियों के लिए टीम के सदस्यों को ‘शॉर्ट्स’ कहकर नीचा दिखाना मुश्किल हो गया है!

स्वयंसेवक प्रशिक्षण

संघ के प्रारंभिक प्रशिक्षण शाला तो संघ की शाखाएं ही हैं. इसमें प्रातः एक घंटे में शाखा आरंभ करने की प्रक्रिया के साथ ध्वजारोहण, शारीरिक क्रियाओं के अंतर्गत व्यायाम, योगासन, सूर्य नमस्कार, दंड प्रहार, सञ्चलन के साथ मानसिक विकास से संबंधित खेल, गीत, शुभाषित, अमृतवचन और अंत में प्रार्थना के साथ ध्वजावतरण होता है, एक घंटे की ये सारी प्रक्रियाएं स्वयंसेवक के मानसिक, शारीरिक और आत्मोत्थान में सहायक होती हैं. यह उनके व्यक्तित्व विकास में प्रभावी योगदान करता है. लेकिन इसके साथ स्वयंसेवकों को राष्ट्र और समाज के लिए संगठन की बड़ी जिम्मेदारियां निभाने के लिए भी तैयार किया जाता है. इसके लिए देश भर में कई प्रशिक्षण वर्ग नियमित रूप से चलाता है. जैसे प्रारम्भिक वर्ग, प्राथमिक वर्ग, प्रथम वर्ष प्रशिक्षण, द्वितीय वर्ष प्रशिक्षण और तृतीय वर्ष प्रशिक्षण का आयोजन होता रहता है. 

‘हमने किया है, आप करेंगे’

वस्तुतः संघ का कार्य देश के लिए, सम्पूर्ण भारतीय समाज के कल्याण के लिए उपयोगी है. संघ ने अपने संस्थापक काल से ही इसी दिशा में कार्य किया है. डॉ. हेडगेवार ने संघ का लक्ष्य विदेशी शासन के स्थान पर अपना शासन स्थापित करना और उसे चलाने के लिए योग्य व्यक्तियों को तैयार करना रखा था. ‘हमने किया है, आप करेंगे’ संघ का मूलमंत्र है. 

संघ के सर्वाधिक लोकप्रिय टीकाकार और प्रथम आधिकारिक प्रवक्ता माननीय गो. उपाख्य बाबूराव वैद्य कहा करते थे – ”संघ क्या है? तो संघ स्वयंसेवक है. हम स्वयंसेवक बनाते हैं और उसे राष्ट्र व समाज को देते हैं. व्यक्तित्व निर्माण हमारा कार्य है. ये लोग फिर विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करते हैं.” यही संघ है, यही संघ का सच है.

सेवा क्षेत्र में अग्रणी 

संघ द्वारा निर्मित स्वयंसेवक समाज के लिए किस प्रकार उपयोगी हैं, इसका एक सुंदर उदाहरण माननीय राज्यपाल वैद्य जी ने दिया है, जिन्होंने सदैव कहा – “जिन क्षेत्रों में सरकार या अन्य संस्थाएं आसानी से नहीं पहुंच पातीं, वहां संघ की उपस्थिति नजर आती है. किसी भी आपदा की स्थिति में संघ के स्वयंसेवक राहत और सेवा कार्य के लिए स्वतः उपस्थित नजर आते हैं. संघ के स्वयंसेवकों में सेवा भावना ऐसे कूट-कूट कर भर जाता है कि एक सैनिक की तरह वे एक पुकार में जुट जाते हैं. संघ द्वारा देशभर में एक लाख से अधिक स्थानों पर एकल विद्यालय चलाए जा रहे हैं. एकल विद्यालय का अर्थ है एक शिक्षक वाला विद्यालय! ये शिक्षक, जो संघ के स्वयंसेवक हैं, अत्यंत अल्प वेतन पर, अपनी आजीविका से समय निकालकर जरूरतमंद बालक-बालिकाओं को शिक्षित करने का प्रयास कर रहे हैं. यह कार्य बिना किसी सरकारी अनुदान के देशभर में वर्षों से चल रहा है. इसके माध्यम से लाखों बालक-बालिकाएं साक्षर हो रहे हैं. स्वयंसेवकों के माध्यम से समाज का कल्याण करना ही सच्चा संघ है.”

इसी प्रकार वनवासी कल्याण आश्रम, सेवा भारती, विद्या भारती आदि सामाजिक संथाएं हैं, जो संघ की विचारधारा के आधार पर देश के कोने-कोने में सक्रिय हैं, जो समाज और राष्ट्र के सेवा में उड़ान को नए क्षितिज की ओर ले जाने के लिए सक्रिय हैं.   

राष्ट्र – विनोद देशमुख, (वरिष्ठ पत्रकार ).