शताब्दी वर्ष पर संघ की ‘बारा-खड़ी’ का भाग -1
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी शताब्दी पूरा कर चुका है. प्रस्तुत है, बारह भागों में संघ के विकास गाथा का वृतांत अर्थात ‘बारा-खड़ी’ का पहला भाग… “डॉक्टर साहब ने संगठन के नामकरण में ‘राष्ट्रीय’ के साथ ‘स्वयंसेवक’ शब्द को शामिल कर संगठन के सेवाभावी स्वरूप को न केवल स्थापित किया, बल्कि इसी कारण संघ से जुड़ते गए तमाम लोगों ने सही मायने में स्वयंसेवक बन देश और अपने समाज के लिए समर्पित होते चले गए…”
*विनोद देशमुख-
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मराठी भाषी लोगों के सामूहिक प्रयासों से निर्मित एक विश्व स्तरीय चमत्कार है! संघ के समान विश्व में कोई दूसरा स्वयंसेवी संगठन नहीं है, जो जीवन के अनेक क्षेत्रों को समेटे हुए है. विगत सौ वर्षों से निरंतर कार्यरत इस संगठन ने विगत, 2 अक्टूबर 2025 को विजयादशमी (स्थापना की मूल अंग्रेजी तिथि 27 सितंबर 1925) को अपनी शताब्दी पूर्ण की.
संघ के इस सफल अभियान में मराठी भाषी लोगों का बड़ा योगदान है. इस अद्वितीय संगठन की आधारशिला विदर्भ के प्रमुख नगर नागपुर के मराठी भाषी भारतीयों ने नागपुर में रखी थी और इसके साथ ही संगठन पहले महाराष्ट्र में, फिर देश के विभिन्न राज्यों के साथ विदेशों तक फ़ैल गया है. निश्चय ही संघ की स्थापना से लेकर संगठन के संवर्धन और इसके संचालन में महाराष्ट्र के लोग ही अभी तक अग्रणी हैं.
पिछले 100 वर्षों में संघ के 6 सरसंघचालकों में से 4 (डॉ. परांजपे सहित) मराठी हैं, और संघ के अधिकांश पदाधिकारी भी मराठी हैं. यहां तक कि संघ के मुख्य स्तंभ प्रचारकों में भी, जो नागपुर-पुणे क्षेत्र के युवा हैं, बहुसंख्यक मराठी भाषी हैं. इससे इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि महाराष्ट्र में जन्मे लोगों ने अद्वितीय संघ की पताका पूरे विश्व में फहराने का महान कार्य किया है.
संस्थापक और पहले आरएसएस प्रमुख डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार मूल रूप से तेलुगु भाषी थे. लेकिन चूंकि उनकी पिछली पीढ़ियां नागपुर में रहती थीं, इसलिए परिवार मराठी बन गया. वे मराठी संस्कृति में पले-बढ़े, शिक्षा ली, संघर्ष किया और अंततः नागपुर कर्मभूमि में ही विश्राम किया.
संघ संस्थापक डॉक्टर साहब के जीवनकाल में, डॉ. एल.वी. परांजपे, जो थोड़े समय के लिए अस्थायी आरएसएस प्रमुख थे. बाद में नागपुर के समीप रामटेक के निवासी, बनारस में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के आचार्य प्रो. माधव सदाशिव उपाख्य श्री गुरुजी गोलवलकर, मधुकर दत्तात्रेय उपाख्य बालासाहेब देवरस और वर्तमान डॉ. मोहनराव मधुकरराव भागवत सभी मराठी भासी आरएसएस प्रमुख हैं. (इन सभी ने आरएसएस के 100 वर्षों में से 80 वर्षों तक आरएसएस प्रमुख का पद संभाला है.)
देवरस और भागवत के बीच, 15 वर्षों तक दो महारथी आरएसएस प्रमुख रहे – प्रो. राजेंद्र सिंह उपाख्य रज्जू भैया और कुप्पाहाली सीतारमैया सुदर्शन जी. जो गैर मराठी भाषी थे. संघ के दूसरे नंबर का सरकार्यवाह का पद भी अधिकांश समय मराठी भाषियों के पास ही रहा. (16 में से 13 सरकार्यवाह मराठी) इससे यह समझना आसान है कि संघ के निर्माण और प्रसार में मराठी भाषी लोगों का कितना बड़ा योगदान रहा है.
इसके बावजूद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ महाराष्ट्र या मराठी भाषियों तक सीमित नहीं रहा. बल्कि, अब तो यह भारत की सीमाओं को पार करके इंग्लैंड, अमेरिका और अन्य देशों तक पहुँच गया है. इसका कारण माननीय डॉ. हेडगेवार की दूरदृष्टि ही है.
उन्होंने भारत भर के समस्त हिंदू समुदाय के नब्ज को पहचाना, जो सदियों के मुस्लिम आक्रांताओं और आगे चल कर अंग्रेजों की दासता झेलते हुए अपनी राष्ट्रीयता और हिन्दू होने की गरिमा अक्षुण्ण रख पाने में दिग्भ्रमित से थे. भारतवर्ष के मूल हिन्दू समुदाय को फिर से आत्मगौरव के साथ भारतीयता का मौलिक भाव जागृत करने के उद्देश्य से ही उन्होंने इस देश और समाज के निमित्त इस सेवाभावी संगठन को खड़ा किया. अपनी इसी अवधारणा को ध्यान में रखते हुए उन्होंने संघ के नामकरण में ‘राष्ट्रीय’ और ‘स्वयंसेवक’ शब्द शामिल किया. बाद के सभी सरसंघचालकों, पदाधिकारी अपने संस्थापक माननीय डॉक्टर साहब के इस स्वप्न को साकार करने का सतत प्रयास करते रहे.
डॉक्टर साहब ने संगठन के नामकरण में ‘राष्ट्रीय’ के साथ ‘स्वयंसेवक’ शब्द को शामिल कर संगठन के सेवाभावी स्वरूप को न केवल स्थापित किया, बल्कि इसी कारण संघ से जुड़ते गए तमाम लोगों ने सही मायने में स्वयंसेवक बन देश और अपने समाज के लिए समर्पित होते चले गए.
पहली आधी सदी में, सभी प्रमुख पदाधिकारी और प्रचारक मुख्यतः मराठी भाषी ही थे. डॉक्टर साहब के समय में, भारत भर में भेजे गए प्रचारक मुख्यतः नागपुर-पुणे क्षेत्र से थे और उन्होंने ही देश भर में संघ की मजबूत नींव रखी. लेकिन बाद में, देश के सभी हिस्सों से, सभी भाषाओं में संघ प्रचारक आए और उन्होंने देश के कोने-कोने में संघ शाखाओं का एक विशाल नेटवर्क बनाया और संघ को दुनिया भर में पहुंचाया!
# विनोद देशमुख (वरिष्ठ पत्रकार).