शताब्दी वर्ष के अवसर पर संघ के ‘बारह कड़ी ‘- भाग 5
*विनोद देशमुख-
दो अद्भुत प्रयोग, स्वयंसेवक बनाने के लिए एक घंटे की दैनिक शाखा ( यानि डेली ब्रांच..)और स्वयंसेवकों को शाखा तक लाने के लिए अवैतनिक प्रचारक, डॉ. हेडगेवार द्वारा शुरू किए गए थे और उन्हीं की सफलता के कारण आज संघ का विशाल नेटवर्क निर्मित हुआ है. शाखा और प्रचारक, दोनों ही संघ के कार्य के सुदृढ़ आधार के महत्वपूर्ण अंग हैं. इन्हीं दो पहियों के बल पर संघ इतनी जल्दी एक सदी पार कर पाया.
इस सरल लेकिन अद्भुत प्रयोग ने संघ को ऐसी शक्ति दी कि आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दुनिया का सर्वाधिक शक्तिशाली, अनुशासित, देश प्रेम और सामाजिक चेतना का उद्देश्य समाज को संगठित कर देश के जनसामान्य में परस्पर प्रेम, भरोसा, आत्मबल और आत्मसम्मान जगाना ही था. चौबीस घंटों में से सिर्फ एक घंटा एक साथ मिलना, खेलना, गीत गाना, यही शाखा का स्थूल स्वरूप है. इस दैनिक संगति से स्नेह बढ़ता है, रिश्ते प्रगाढ़ होते हैं और किसी भी कार्य को मिलजुल कर करने की प्रवृत्ति बढ़ती है. ऐसे स्वयंसेवक देश के लिए कुछ भी करने को तत्पर रहते हैं. संघ के स्वयंसेवक प्राकृतिक आपदाओं और भयंकर दुर्घटनाओं जैसे संकट के समय जिस सहजता से देशवासियों की सहायता के लिए दौड़ पड़ते हैं, वह इसी शाखा में पैदा हुए गुणों में निहित है.
नागपुर में कांग्रेस की एक सभा के दौरान हुई एक घटना ने डॉक्टर हेडगेवार को सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि लोगों में एकता, अनुशासन, परस्पर भरोसा और आत्मबल की कितनी जरूरत है. सभा के दौरान घटी उस घटना ने डॉक्टर साहब ‘एकता की शक्ति’ की आवश्यकता से भली-भांति परिचित करा दिया. उनका यह अनुभव भी समाज में एकता बनाने के उद्देश्य से ‘एक हिंदू संगठन की स्थापना का विचार’ उनके मन में दृढ़ हो गया था.
घटना यह थी – नागपुर के टाउन हॉल में कांग्रेस कार्यकर्ताओं की एक सभा हो रही थी. इसे बाधित करने के लिए, ब्रिटिश एजेंटों (पुलिस या जासूस या घर तोड़ने वाले) ने बैठक में एक नकली प्लास्टिक का सांप छोड़ दिया. लोग ऐसे डर गए की सभी बैठक से भाग खड़े हुए. सभा नहीं हो सकी. जब बाहर गांव (दूसरे शहर) से लौटे डॉक्टर हेडगेवार को यह बात पता चली तो उन्होंने प्रत्येक कार्यकर्ता को बुलाकर प्रश्न किया. सभी का उत्तर एक ही था – ”मैं क्या करता? मैं तो अकेला था, मैं भी डर गया था!”
कांग्रेस की उस सभा में इतने सारे लोग एकत्रित थे. लेकिन, एक घटना से सभी के सभी ऐसे डर कर भाग खड़े हुए..! सैकड़ों के होते हुए भी, सभी कहते हैं कि वे अकेले हैं…? इससे डॉक्टर साहब को समाज में एकता की भावना जगाने की आवश्यकता बलवती हुई और उस एकता के लिए उन्होंने ‘संघ शाखा’ (डेली ब्रांच डेली ब्रांच) का अनूठा मंत्र दिया. मा.गो. वैद्य द्वारा सुनाई गई यह कहानी संगठन निर्माण की तात्कालिक प्रेरणा थी, यह सभी को याद रखना चाहिए.”

-विनोद देशमुख (वरिष्ठ पत्रकार).

