कोश्यारी

कोश्यारी : बहुत बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले

*कल्याण कुमार सिन्हा- हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि, हर ख़्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले डरे क्यूँ मेरा क़ातिल, क्या रहेगा उसकी गर्दन पर वो ख़ूँ, जो चश्मे-तर (भीगी आँख) से उम्र यूँ दम-ब-दम (प्राय:, बार-बार) निकले निकलना ख़ुल्द (स्वर्ग) से आदम (पहला मानव) का सुनते आए थे लेकिन, […]

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