प्रचार पत्रिका

वर्धा लोकसभा चुनाव 2019 : गड़करी की सभा की प्रचार पत्रिका से मोदी का...

अश्विन शाह, पुलगांव (वर्धा) : लोकसभा चुनाव के लिए वर्धा क्षेत्र के उम्मीदवार सांसद रामदास तड़स के चुनाव प्रचार के लिए आज शुक्रवार, 5 अप्रैल को पुलगांव के सर्कस मैदान में केंद्रीय मंत्री और विदर्भ में भाजपा के कद्दावर नेता नितिन गड़करी की चुनावी सभा होने वाली है. इस सभा के लिए शहर और आस-पास के क्षेत्रों में गड़करी के आगमन के प्रचार के लिए वितरित की गई रंगीन प्रचार पत्रिका से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फोटो का नदारद होना यहां चर्चा का विषय बना हुआ है. हालांकि चुनाव सभा मंच पर लगाए गए बैनर में प्रधानमंत्री मोदी का छोटा चित्र भाजपाध्यक्ष अमित शाह के चित्र के पहले लगा कर भूल सुधार करने की कोशिश की गई है. शहर में वितरित इस प्रचार पत्रिका में गड़करी और उम्मीदवार रामदास तड़स के बड़े चित्र के साथ स्व. अटलबिहारी वाजपेयी और स्व. बाला साहब ठाकरे के चित्र के अलावा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस, प्रदेशाध्यक्ष राव साहब दानवे, राज्य के वित्त मंत्री और जिले के पालक मंत्री सुधीर मुनगंटीवार, रिपा (आठवले) नेता और केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले सहित अनेक नेताओं के चित्र हैं. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इससे ब्लैकआउट कर दिया जाना भाजपा सहित अन्य राजनीतिक दलों के साथ-साथ आम नागरिकों के लिए भी आश्चर्य और चर्चा का विषय बन गया है. केंद्रीय मंत्री गड़करी की चुनाव सभा आज 5 अप्रैल को दोपहर 2 बजे पुलगांव के सर्कस ग्राउंड में वर्तमान सांसद रामदास तड़स के लिए शुरू होने वाली है. पुलगांव शहर भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि इस प्रचार सभा के लिए केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी के आगमन की सूचना आम नागरिकों को देने के लिए पुलगांव शहर में 5000 यह पत्रिका वितरित की गई है. इस संबंध में कोई प्रतिक्रिया देने से स्थानीय भाजपा नेता बचते रहे. प्रचार मंच पर लगे बैनर में पीएम मोदी का छोटा चित्र लगा कर भूल सुधारने का प्रयास भी चर्चा में बना हुआ है.
मासिक रिटर्न

बेहतर मासिक रिटर्न के लिए कहां लगाएं अपनी गाढ़ी कमाई की बचत?

अल्प आय वाले और सेवानिवृत वरिष्ठ नागरिकों की बड़ी जरूरत निवेश विकल्प : कम आय वाले सेवानिवृत वरिष्ठ नागरिकों और नौकरीपेशा लोगों के पास अपनी बचत को और अधिक बढ़ाने के माध्यम बहुत सीमित हैं. जबकि इन दोनों वर्गों के लोगों के लिए अपने भविष्य को सुधारने की चिंता सर्वाधिक होती है. यह वर्ग अपने बच्चों, बुजुर्गों और अपने लिए अपनी मेहनत की कमाई से बचाए गए पैसे को सुरक्षित रखने और उसमें निरंतर वृद्धि करने के मार्ग ढूढता रहता है. सरकारी नौकरी वाले व्यक्ति के लिए सरकारी पीएफ और पेंशन एक बड़ी राहत है. लेकिन निजी क्षेत्र में काम करने वाला और निजी क्षेत्र से सेवानिवृत हुए व्यक्ति के लिए तो एकमात्र भरोसा उसका बचत ही होता है. खासकर निजी क्षेत्र में काम करने वाले या सेवानिवृत अल्पआय वाले उन लोगों के लिए, जिन्हें अपनी बचत से आजीविका चलाने में मदद वाली मासिक आय की जरूरत है, कहां से मिले इन्हें अधिक मासिक रिटर्न? अमूमन यह देखा जा रहा है कि आज बैंकों में चाहे एफडी हो या फिर बचत खाता उसमें ब्याज काफी कम हो गया है. सलाह यह दी जाती है कि म्यूच्युअल फंड में एसआईपी के माध्यम से निवेश करें. इसमें एक ख़ास अवधि में बड़ा रिटर्न मिलता है, लेकिन यहां पर पैसे पर कुछ रिस्क भी रहता है और यह रिस्क बाजार के उतार-चढ़ाव के साथ बना रहता है. साथ ही इसमें लम्बी अवधि तक निवेश जरूरी है. कम अवधि का निवेश तो बिलकुल ही नुकसानदायक है. लेकिन यदि अपनी बचत की रकम से यदि अच्छी मासिक रिटर्न की आपको जरूरत हो तो? तो आप कहां जाएं? सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक हों या निजी क्षेत्र के, उनके एफडी (सावधि जमा) पर भी ब्याज दर बहुत कम हैं. नेट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार निजी क्षेत्र की ऐसी मात्र दो विश्वसनीय वित्तीय संस्थाएं हैं, जो इन बैंकों और अन्य निजी क्षेत्र की वित्तीय संस्ताओं से एफडी पर अधिक ब्याज दे रही हैं. इनमें से एक है- ईएसएएफ स्माल फाइनेंस बैंक (ESAF Small Finance Bank), जहां एफडी पर 8.75% सालाना ब्याज है और वरिष्ठ नागरिकों के लिए 9.25% की दर से मिलता है. लेकिन यदि मासिक ब्याज चाहिए तो यह दर लगभग .40% कम हो जाता है. फिर भी यह अन्य से अधिक मासिक ब्याज देता है. इसी तरह दूसरी अन्य निजी क्षेत्र की विश्वसनीय वित्तीय संस्था है- बजाज फायनांस. हाल ही में इसने सावधि जमा योजना शुरू की है. यह वरिष्ठ नागरिकों को तीन साल की जमा पर 9.10 प्रतिशत ब्याज दे रहा है और एफडी पर मासिक ब्याज 8.70 प्रतिशत देता है. बजाज फायनांस एफडी का पूरा चार्ट यहां देखें- ऐसे में मेहनत की कमाई को बचाए रखने और उसे भविष्य के हिसाब से बढ़ाने के लिए सबसे बेहतर ऑपशन एफडी दिखाई देने लगा है. 1. नेट पर उपबल्ध जानकारी के अनुसार ईएसएएफ स्माल फाइनेंस बैंक (ESAF Small Finance Bank) में सामान्य नागरिक को एफडी पर 8.75% सालाना ब्याज मिलेगा. जबकि इसी बैंक में वरिष्ठ नागरिकों को यह 9.25% की दर से मिलता है. 2. बजाज फायनांस ने हाल ही में...
वेकोलि

तो ऐसे 7 मि. टन अधिक कोयले का उत्पादन कर सकी वेकोलि

अब तक का सर्वाधिक उत्पादन कर लक्ष्य से आगे रही कंपनी नागपुर : कोल इंडिया लिमिटेड (सीआइएल) की अनुषंगी कम्पनी वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (वेकोलि) पिछले वर्ष की तुलना में 7 मिलियन टन अधिक कोयले का उत्पादन करने में सफल रही है. बताया गया कि इसी वर्ष के आरंभ में 'मिशन : डब्ल्यूसीएल 2.0' लागू कर वेकोलि अच्छे नतीजे तक पहुंचने में सफल रही. कंपनी द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार अभी-अभी समाप्त हुए वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान, कम्पनी के स्थापना-काल से अब तक का सर्वाधिक कोयला-उत्पादन और डिस्पैच कर नया रिकार्ड बनाया. एमोयू लक्ष्य 49.70 मिलियन टन लक्ष्य की तुलना में वेकोलि ने 53.18 मिलियन टन कोयला उत्पादन किया. यह पिछले वर्ष के उत्पादन से 7 मिलियन टन अधिक है. केंद्र की संप्रग सरकार के कार्यकाल के अंतिम वर्ष में कम्पनी 8 वर्षों के बाद अपना उत्पादन-लक्ष्य प्राप्त कर सकी है. वेकोलि ने बताया है कि कोयला-उत्पादन में स्थापना-काल से अब तक की सर्वाधिक 15 प्रतिशत वृद्धि उसने दर्ज की है. इसी तरह, कोयला-प्रेषण में भी वेकोलि ने 14% से अधिक की उपलब्धि हासिल की है. आलोच्य वित्तीय वर्ष के दौरान, वेकोलि ने 55.56 मिलियन टन कोयला डिस्पैच किया, जबकि इसी अवधि में पिछले वर्ष यह 48.75 मिलियन टन था. बढ़िया रहा 'मिशन : डब्ल्यूसीएल 2.0' का नतीजा कंपनी ने दावा किया है कि चालू वित्त वर्ष के दौरान, उत्पादन एव प्रेषण में बढ़ोत्तरी से कम्पनी की वित्तीय स्थिति वर्ष 2017-18 की तुलना में सुदृढ़ होगी. 2018-19 के पूर्वार्द्ध में प्रारम्भ 'मिशन : डब्ल्यूसीएल 2.0' से टीम वेकोलि अपनी विभिन्न मूलभूत आवश्यकताओं को ठीक करने में सफल रही. नतीजतन, 31 मार्च के दस दिन पूर्व ही कम्पनी 49.70 मिलियन टन लक्ष्य को पार कर चुकी थी. कम्पनी के खाते में एक उपलब्धि यह भी रही कि 22 मार्च 2019 को ही वह 50 मिलियन टन से अधिक कोयला-उत्पादन कर चुकी थी. 'मिशन : वेकोलि 2.0' के प्रभावी क्रियान्वयन से हर स्तर पर नई कार्य-संस्कृति स्थापित हुई. टीम वेकोलि के हरेक सदस्य ने इसमें भाग लिया और इस उपलब्धि को हासिल करने में एक-दूसरे का साथ दिया. वेकोलि की उपरोक्त सफलता में, पिछले चार वर्षों में खोली गई 20 नयी खदानों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा. 2018-19 में इन खदानों से कम्पनी 35.82 मिलियन टन कोयला-उत्पादन कर सकी. विविध मोर्चो पर समुचित योजना और समेकित प्रयासों के चलते इन नई खदानों से उत्पादन में गत वर्ष की तुलना में 30% की वृद्धि दर्ज की गई. वेकोलि के अनुसार इस वर्ष कम्पनी के उत्पादन में वणी क्षेत्र की प्रतिष्ठित पेनगंगा ओपन कास्ट माइन का सबसे ज्यादा 6.30 मिलियन टन कोयले का योगदान रहा, जबकि उमरेड ओपन कास्ट ने 4.9 मिलियन टन और मकरधोकड़ा-3 ने 3.26 मिलियन टन कोयला-उत्पादन किया. गत चार वर्षों में 20 नई खदानें खोलने के अलावा पुरानी खदानों की क्षमता में वृद्धि और वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से त्वरित अनुमति के कारण वेकोलि अधिक कोयला-उत्पादन कर सकी. खदानों से निकली रेत भी बेच रही कंपनी उल्लेखनीय है कि कोल इंडिया की सभी अनुषंगी कम्पनियों में, वेकोलि लीक से हट कर (आउट ऑफ बॉक्स) कार्य भी कर रही है. इस क्रम...
रिजर्व बैंक

रिजर्व बैंक ने की कृपा : आवास और वाहनों पर कर्ज की ईएमआई की...

रेपो रेट 6.25 प्रतिशत से घटकर 6 प्रतिशत पर पहुंची मुंबई : भारतीय रिजर्व बैंक ने नीतिगत दरों में 25 आधार अंक कटौती कर दी है. अर्थात अब आवास और वाहनों पर कर्ज की ईएमआई की ब्याज दर भी घट सकती है. चुनाव के इस मौके पर दी गई गई इस राहत पर हालांकि राजनीतिक दलों की प्रतिक्रया अभी सामने नहीं आई है, लेकिन एसोचैम-ईग्रो फाउंडेशन द्वारा आरबीआई की मौद्रिक नीति पर आयोजित एक परिचर्चा में कहा गया है, "मौद्रिक नीति में ढील का यह बहुत उपयुक्त समय है." मौद्रिक नीति समीक्षा के आखिरी दिन नीतिगत दरों में 25 आधार अंक कटौती से अब रेपो रेट 6.25 प्रतिशत से घटकर 6 प्रतिशत पर पहुंच गई है. इस बैठक की अध्यक्षता आरबीआई गवर्नर शक्ति कांत दास कर रहे थे. विशेषज्ञों के अनुसार रेपो रेट घटने से आवास और वाहन पर चल रही ईएमआई पर ब्याज दर कम हो सकती है. इसके अलावा दिसंबर की पॉलिसी में आरबीआई ने वित्त वर्ष 2019-20 के लिए विकास दर 7.2 फीसदी रहने का अनुमान जताया था. पहले यह 7.2 रखी गई थी. अनेक अर्थशास्त्रियों ने रिजर्व बैंक से रेपो रेट में कटौती का आह्वान किया था. अर्थशास्त्री अरविंद विरमानी समेत अर्थशास्त्रियों के एक समूह ने रिजर्व बैंक की चालू वित्त वर्ष की पहली मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो दर में कम-से-कम 0.25 प्रतिशत की कटौती की बात कही थी. विरमानी ने कहा कि यह आरबीआई को समझना है कि देश में फिलहाल वास्तविक ब्याज दर काफी ऊंची है. एसोचैम-ईग्रो फाउंडेशन द्वारा आरबीआई की मौद्रिक नीति पर आयोजित एक परिचर्चा में उन्होंने कहा, "मौद्रिक नीति में ढील का यह बहुत उपयुक्त समय है." ज्ञातव्य है कि आरबीआई द्वारा बैंकों से वसूले जाने वाले ब्याज दर को रेपो रेट कहते हैं. रेपो रेट घटने का फायदा बैंकों को होता है. इसलिए बैंक भी अपने ग्राहकों को राहत दे कर उनके लिए ब्याज दरों में कटौती कर देते हैं.
कांग्रेस

लोकसभा चुनाव 2019 : राहुल का ‘गरीबी मिटाओ’, कितना जुमला, कितनी हकीकत

विश्लेषण : कल्याण कुमार सिन्हा चुनावी जुमलेबाजी से उड़ी खिल्लियां झेल चुकी भारतीय जनता पार्टी तो लगता है कुछ सबक सीख चुकी है, लेकिन कांग्रेस काठ की हांडी एक बार फिर चुनावी अलाव पर सेंकने का लोभ संवरन करती नहीं दिख रही. पिछले विधानसभा चुनावों में छतीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में ऐसे ही वादे की बदौलत फिर से सत्ता हथियाने में मिली सफलता से वह कुछ अधिक ही उत्साहित नजर आ रही है. अब देखें - बढ़ती महंगाई के दौर में 12 हजार रुपए मासिक में एक परिवार की गरीबी मिटा डालने की यह स्कीम हकीकत है या जुमला! गरीबी दूर करेंगे राहुल कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने केंद्र में कांग्रेस की सरकार आने पर 25 करोड़ गरीब लोगों को 12 हजार रुपए न्यूनतम आय की गारंटी देने का एलान कर दिया है. राहुल गांधी के वादे के मुताबिक इस योजना से कम से कम 72 हजार रुपए सालाना उन्हें मदद दी जाएगी. इस योजना के अनुसार 5 करोड़ गरीब की आमदनी कम से कम 12 हजार रुपए मासिक तक पहुंचा दी जाएगी. अर्थात उनका एलान है कि सत्ता में आने पर वे लोगों की गरीबी दूर कर देंगे. राफेल-राफेल और चोर-चोर का शोर बेअसर होने के बाद राहुल के इस जुमले का दम, असर तो दिखा सकता है. वक्त का पहिया और वादों का इतिहास लेकिन नई पीढ़ी को चुनावी वादों का इतिहास जानना जरूरी है. वक्त का पहिया घूम कर जैसे इस बार भी लौट आया है. या यूं कहें- "राहुल गांधी ने 48 साल पहले के अपनी दादी के प्रयोग की सफलता को दुहराने के लिए वक्त का पहिया घुमा लिया है." 1971 के चुनावों में इंदिरा गांधी ने अपने चुनावी अभियान का नारा दिया था 'गरीबी हटाओ'. इंदिरा गांधी उस समय चुनावी सभा के दौरान कहा करती थीं कि 'वो कहते हैं इंदिरा हटाओ, मैं कहती हूं गरीबी हटाओ'. इंदिरा सरकार ने हटाने के बजाय बढ़ाई थी गरीबी 1970 के दशक में जब इंदिरा गांधी सत्ता में आईं थीं तो देश में 51.5 फीसदी लोग गरीबों की श्रेणी में थे और इसी दौरान यानी 1970 में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की संख्या 29.15 करोड़ थी. 1977-78 में जब इंदिरा गांधी सत्ता से बाहर गईं तो उस समय देश के 48.3 फीसदी लोग गरीबों की श्रेणी में थे और 30.68 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे बने हुए थे. ये आंकड़े योजना आयोग के हैं. उनके गरीबी हटाओ नारे से गरीबी तो हटी नहीं, बल्कि और बढ़ी. लेकिन सच यही है कि इंदिरा गांधी 'गरीबी हटाओ' के अपने नारे की बूते ही मझधार में डोलते अपने तत्कालीन कांग्रेस(आई) गुट को सत्ता में लाने के साथ ही असली कांग्रेस के रूप में भी स्थापित करने में सफल हो गई थीं. विधानसभा चुनावों की सफलता दुहराने की कवायद पिछले साल ही 2018 के विधानसभा चुनाव में 10 दिन के भीतर किसानों के कर्ज माफ करने और युवाओं को 3,500 रुपए बेरोजगारी भत्ता देने के वादे की तरह अपने इस "गरीबी दूर करने के वादे" से राहुल गांधी केंद्र के सत्ता पाने की राह बनाने में...
महागठबंधन

लोकसभा चुनाव 2019 : कन्हैया कुमार को तेजस्वी ने दिया झटका, महागठंधन से किया...

सीमा सिन्हा, पटना (बिहार) : बिहार में महागठबंधन में आखिरकार सीटों के बंटवारे का मामला सुलझ गया है. लेकिन इसमें एक ओर जहां कांग्रेस को 12 की जगह 9 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा है, वहीं सीपीआई के फायर ब्रांड उम्मीदवार कन्हैया कुमार को लेकर पेंच फंस गया है. उन्हें महागठबंधन में शामिल नहीं किया गया है. चर्चा है कि कन्हैया कुमार को महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव गठबंधन का हिस्सा बनाने से इंकार कर दिया है. उम्मीद थी कि महागठबंधन में कन्हैया कुमार को शामिल कर बेगुसराय की सीट दे दी जाएगी और उनकी पार्टी सीपीआई (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया) को इसमें जगह दी जाएगी, पर ऐन वक़्त पर ऐसा नहीं हो सका. जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार और तेजस्वी के बीच हाल के कुछ महीनों में नजदीकियां देखी जा रही थीं और वे साथ में मंच साझा करते भी नजर आए थे. तेजस्वी, कन्हैया के पक्ष में खुल कर बोलने लगे थे. उन्होंने पटना में मकर संक्राति के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में कन्हैया के लिए कहा था कि "जो भी भाजपा के खिलाफ बोलता है, उस पर मुकदमा होता है. हमारे लोगों के साथ ऐसा ही हो रहा है." महागठबंधन से कन्हैया कुमार को दूर रखने के संबंध में बिहार की राजनीति की समझ रखने वाले विश्लेषक इसकी तीन वजहें गिनाते हैं- पहली वजह - बिहार में महागठबंधन का नेतृत्व तेजस्वी यादव कर रहे हैं और वो जाति का गणित लेकर चल रहे हैं. वे और उनके पिता राजद सुप्रीमों लालू प्रसाद इस समीकरण पर किसी भी हाल में समझौता करने के पक्ष में नहीं हैं. दूसरी वजह - यह हो सकती है कि कन्हैया कुमार की छवि सत्ता पक्ष ने "देशद्रोह" की बनाई है और उन पर इस तरह का मुक़दमा भी चलाया गया है. ऐसे में राष्ट्रवादी माहौल के ख़िलाफ़ पार्टी जाना नहीं चाहती है. तीसरी वजह - कन्हैया कुमार की छवि तेजस्वी से थोड़ी भारी हो गई है. इससे तेजस्वी के प्रभामंडल को नुक्सान पहुंचने की भी आशंका है. इस कारण राजद और स्वयं तेजस्वी कन्हैया को महागठबंधन से दूर रखना चाहते हैं. बंटवारे के अनुसार राष्ट्रीय जनता दल -20 सीटों पर, कांग्रेस -9, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी -5, मुकेश सहनी की वीआईप (विकासशील इंसान पार्टी) -3 और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी की हम (हिंदुस्तान आवाम मोर्चा) -3 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.
अमित शाह

लोकसभा चुनाव 2019 : क्या अमित शाह खतरा बनेंगे राजनाथ सिंह के लिए…

समाचार विश्लेषण / विशेष संवाददाता : अमित शाह का चुनावी अखाड़े में उतरना भाजपा की भविष्य की राजनीति के संकेत देने लगा है. उनकी गुजरात के गांधीनगर सीट से उम्मीदवारी की घोषणा के जरिए पार्टी ने कई संदेश देने की कोशिश की है. पहला संदेश तो इस रूप में आया है कि लालकृष्ण आडवाणी रिटायर कर दिए गए हैं. यह पुरानी पीढ़ी की विदाई का संदेश है. अमित शाह के लिए लोकसभा चुनाव लड़ना कुछ तात्कालिक और कुछ दीर्घकालिक लक्ष्य इंगित करता है. इससे भाजपा में पदानुक्रम तय हो रहा है. मोदी के साथ के जो नेता साठ पार वाले हैं, उनके लिए संदेश है कि पदानुक्रम में अब अमित शाह औपचारिक रूप से नंबर दो हो सकते हैं. यह भी स्पष्ट है कि अमित शाह लोकसभा में एक साधारण सदस्य की तरह नहीं रहने वाले हैं. लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा की सरकार फिर बनी तो इस बात की प्रबल संभावना है कि अमित शाह देश के गृह मंत्री और कैबिनेट में नंबर दो होंगे. वर्तमान गृह मंत्री राजनाथ सिंह के लिए यह बड़ा झटका होगा. इत्तेफाक की बात है कि पार्टी अध्यक्ष पद भी अमित शाह को राजनाथ सिंह को हटाकर ही मिला था. पिछले पांच साल के राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर डालें तो मोदी-शाह की जोड़ी ने उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, त्रिपुरा, असम, हिमाचल, अरुणाचल प्रदेश और अब गोवा में पचास साल या उससे कम के नेताओं को मुख्यमंत्री बनाया है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने संघ सहकार्यवाहक रहते हुए संघ में पीढ़ी परिवर्तन का काम किया था और उसी समय भाजपा नेताओं को भी ऐसा करने की सलाह दी थी. ऐसे में अब फिलहाल सरकार में नंबर-दो राजनाथ सिंह का क्या होगा, वे कैबिनेट में रहेंगे तो उनकी हैसियत क्या होगी, नया पार्टी अध्यक्ष कौन होगा, अन्य वरिष्ठ मंत्रियों की स्थिति क्या रहेगी, हालांकि यह सारे प्रश्न तो चुनाव के बाद उठाने वाले हैं. लेकिन पार्टी के भीतर इन प्रश्नों पर चर्चा शुरू हो चुकी है.
ऑनलाइन

आयुर्वेद फार्माकोपिया में सात सौ दवाओं के वैज्ञानिक ब्योरे ऑनलाइन किए जाएंगे

नई दिल्ली : आयुर्वेद की तरफ लोगों के बढ़ते रुझान के मद्देनजर केंद्रीय आयुष मंत्रालय आयुर्वेदिक दवाओं की गुणवत्ता में सुधार के लिए इसके फार्माकोपिया को ऑनलाइन करने जा रहा है. इससे 700 दवाओं के वैज्ञानिक ब्यौरे एक क्लिक पर उपलब्ध होंगे. इससे दवा निर्माताओं को आयुर्वेदिक दवाओं के पादपों, उनमें मौजूद विभिन्न तत्वों और उनके इस्तेमाल की मात्रा को लेकर वैज्ञानिक जानकारी हासिल होगी. आयुर्वेद फार्माकोपिया में अब तक मौजूद करीब सात सौ दवाओं के वैज्ञानिक ब्योरे को ऑनलाइन किया जाएगा. फार्माकोपिया कमीशन फॉर इंडियन मेडिसिन एंड होम्योपैथी के निदेशक डॉ. के.सी.आर. रेड्डी ने बताया कि अब तक आयुर्वेद की 400 एकल दवाओं तथा करीब 300 एक से ज्यादा मालीक्यूल वाली दवाओं का फार्माकोपिया तैयार किया जा चुका है. अभी तक यह सिर्फ दस्तावेज के रूप में उपलब्ध थी. लेकिन अब इन्हें ऑनलाइन उपलब्ध कराया जा रहा है. पहली बार आयुर्वेद दवाओं को लेकर ऑनलाइन प्रमाणिक जानकारी सरकार की तरफ से उपलब्ध कराई जा रही है. उन्होंने बताया कि केंद्रीय आयुष मंत्री श्रीपद येसो नाईक ने गाजियाबाद स्थित फार्माकोपिया कमीशन में आयोजित कार्यक्रम में इस सेवा की शुरुआत कर दिया है. इसके बाद से यह ब्योरा ऑनलाइन उपलब्ध होगा. इससे आयुर्वेद की दवा बनाने वाली कंपनियों को सटीक वैज्ञानिक जानकारी मिल सकेगी और वह फार्माकोपिया की जानकारी के आधार पर अपनी दवाओं की गुणवत्ता में सुधार कर सकेंगे. इसके अलावा आयुर्वेद पर शोध करने वालों के लिए भी आनलाइन फार्माकोपिया फायदेमंद साबित होगा. उन्होंने कहा कि आयुर्वेद फार्माकोपिया बनाने का कार्य आगे भी जारी रहेगा. आयुर्वेद में औषधों की संख्या हजारों में हैं, इसलिए यह कार्य लंबा चलेगा. ज्यों-ज्यों नए औषधों का वैज्ञानिक रूप से प्रमाणीकरण होता जाएगा, उन्हें इस वेबसाइट पर अपडेट किया जाता रहेगा. उन्होंने कहा कि आयुर्वेद फार्माकोपिया बनाने का कार्य आगे भी जारी रहेगा. आयुर्वेद में औषधों की संख्या हजारों में हैं, इसलिए यह कार्य लंबा चलेगा. ज्यों-ज्यों नए औषधों का वैज्ञानिक रूप से प्रमाणीकरण होता जाएगा, उन्हें इस वेबसाइट पर अपडेट किया जाता रहेगा. रेड्डी ने बताया कि आयुर्वेद दवाओं के मानकों को आयुर्वेद शोधकर्ताओं, विशेषज्ञों, दवा निर्माताओं को आमंत्रित किया गया है. इस सिंपोजियम का मकसद आयुर्वेद फार्माकोपिया के क्रियान्वयन को लेकर विभिन्न पक्षों में जागरूकता पैदा करना है.
पुलिस

पुलिस उपायुक्त रोशन को गृह मंत्रालय का स्कॉच अवार्ड

अ.भा. ग्राहक कल्याण परिषद ने किया सत्कार नागपुर : नागपुर जोन 4 के पुलिस उपायुक्त राज तिलक रोशन का यहां अखिल भारतीय ग्राहक कल्याण परिषद ने सत्कार किया. पुलिस आयुक्त रोशन को हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मानव तस्करी, मिसिंग चिल्ड्रन और बालिकाओं के खिलाफ काम करने वाले अपराधियों के खिलाफ उत्कृष्ट कार्य करने के लिए पुरस्कृत किया है. इस उपलक्ष्य पर परिषद के केंद्रीय महांमत्री देवेंद्र तिवारी, नागपुर जिला अध्यक्ष अश्विन भाई मेहाडिया, महासचिव प्रताप मोटवानी उपाध्यक्ष रमेश लालवानी, सहसचिव राजू भाई माखीजा, कार्यकारी सदस्य कैलाश केवलरमानी और महेश ग्वालानी ने बुके देकर उनका अभिनंदन किया और ग्राहक परिषद की तरफ से बधाई पत्र दिया. अश्विन भाई मेहाडिया और प्रताप मोटवानी ने स्वागत समारोह में ने कहा कि बेहद खुशी और गर्व की बात है कि श्री रोशन को केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा वर्ष 2018 का स्कोच अवार्ड से नवाजा गया है. नागपुर के सभी नागरिकों के लिए यह हर्ष का विषय है. आभार देवेंद्र तिवारी ने माना. पुलिस उपायुक्त रोशन ने सत्कार के लिए कृतज्ञता प्रकट की और कहा कि इस अवार्ड ने उनकी जिम्मेदारी और बढ़ा दी है. उन्होंने कहाकि वे नागपुर के नागरिकों की सुरक्षा और आम जनता की मदद के लिए सदैव प्रस्तुत हैं और अपराधियों की तमाम अपाधिक गतिविधियों पर प्रभावी नियंत्रण के लिए कृतसंकल्प हैं.
बिहार

बदले माहौल में क्या फिर करवट लेगा बिहार..!

लोकसभा चुनाव : विश्लेषण/बिहार कृष्ण किसलय– राजनीतिक दृष्टिकोण से 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश के बाद लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा 40 सीटों वाले बिहार का रणनीतिक महत्व है. बिहार में अपने दम-खम पर सरकार बनाने-चलाने में क्षेत्रीय पार्टियों के नाकाम होने पर गठबंधन की राजनीति शुरू हुई. बिहार के सियासी मिजाज को मौटे तौर पर इस तथ्य से समझने की जरूरत है कि यहां 1944 से 1990 तक राज्य सरकार की सत्ता कांग्रेस के पास थी. हालांकि इस बीच चार छोटी अवधि के लिए गैर कांग्रेसी सरकारें भी रहीं. श्रीकृष्ण सिंह 1961 तक लगातार मुख्यमंत्री रहे. इसके बाद 29 सालों में कांग्रेस के 23 मुख्यमंत्री बने और पांच बार राष्ट्रपति शासन लागू हुआ. 1990 के बाद कांग्रेस हाशिये पर चली गई और सत्ता लालू प्रसाद के पास आ गई. अब 2005 से सत्ता नीतीश कुमार के पास है. गठबंधन की राजनीति से ही कांग्रेस में 2015 से फिर जान आई है. लालू प्रसाद बने धूरी, नीतीश कुमार का बढ़ा कद बिहार में प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह के बाद एक हद तक कर्पूरी ठाकुर का कद ही राष्ट्रीय स्तर का था. बिहार की राजनीतिक पहचान में तब जबर्दस्त उछाल आई, जब 1990 में लालकृष्ण आडवाणी के रथ को समस्तीपुर में रोक कर और उन्हें गिरफ्तार कर लालू प्रसाद धर्मनिरपेक्षता के हीरो बन गए. नब्बे के दशक के बाद बिहार में उर्वर रही वामपंथी जमीन कमजोर हो गई, क्योंकि वामपंथी दलों का जनाधार मंडलवाद के कारण टूट गया. 1991 में बिहार में भाकपा के 8 सांसद हुआ करते थे. मतदाता जातीय आधार पर लालू प्रसाद और अन्य नेताओं से जुड़ गए. जनता दल में लालू प्रसाद का कद बढ़ा तो शरद यादव, जार्ज फर्नांडीस, नीतीश कुमार जैसे प्रमुख नेता घुटन महसूस करने लगे. नीतीश कुमार और जार्ज फर्नांडीस ने 1994 में लालू प्रसाद से किनारा कर समता पार्टी बना ली. शरद यादव 1997 में चारा घोटाला में लालू प्रसाद का नाम आने पर अलग हो गए. लालू प्रसाद ने नई पार्टी राष्ट्रीय जनता दल बनाकर अपनी राह के अवरोध दूर किए. बिहार में राजग सरकार बनने पर नीतीश कुमार का कद बड़ी तेजी से बढ़ा और बिहार को राष्ट्रीय स्तर पर तरजीह मिली. …और लालू प्रसाद ने 'माई' समीकरण से मार लिया मैदान कांग्रेस मुस्लिम, दलितों और जार्ज, नीतीश पिछड़ी जातियों के सहारे थे तो भाजपा को राम लहर पर भरोसा था, मगर लालू प्रसाद ने माई MY समीकरण (मुस्लिम-यादव) से चुनाव का मैदान मार लिया. 2003 में समता पार्टी का विलय जदयू में हुआ तो नीतीश कुमार प्रखर नेता के रूप में उभरे. भाजपा-जदयू ने मिलकर चुनाव लड़ा तो वोट प्रतिशत बढ़ गया. 2014 में भाजपा से अलग होने पर जदयू को करारा झटका लगा. इस बार लोकसभा चुनाव में दोनों दल साथ हैं. गठबंधन से संवरती गई है भाजपा... 1989 की राम लहर में अकेले भाजपा बिहार में तीन ही सीट जीत सकी थी. 10 वर्षों में 1999 में भाजपा-जदयू ने साथ मिलकर 40 में 29 सीटें जीती थीं, जिनमें भाजपा को 12 और जदयू को 17 सीटें मिली थीं. 2002 में गोधरा कांड के बाद रामविलास पासवान ने राजग से नाता...