लोकसभा उपचुनाव विश्लेषण : मोदी विरोध का केंद्र बनकर उभरे अखिलेश

मोदी विरोध के केन्द्र बनकर उभरे अखिलेश यादव अब विपक्षी एकता के नायक बन गए हैं. महज उपचुनाव की दो लोकसभा सीटों का नतीजा इतना बड़ा नतीजा दे सकता है, यह बात उन्होंने साबित कर दिखलाई. / बिहार में राजद अब भाजपा और जदयू गठबंधन के लिए बड़ी चुनौती बन कर सामने आया है...

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बिहार में भी राजद प्रमुख लालू प्रसाद की आभा में तेजस्वी का तेज झलका

अनिता सिन्हा/सीमा सिन्हा
नई दिल्ली/पटना :
अखिलेश यादव ने 6 साल बाद एक बार फिर अपना नेतृत्व साबित कर दिखाया है. फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र के उपचुनाव के नतीजे आशा के विपरीत उनकी सपा के पक्ष में रहे. हमारी नई दिल्ली संवाददाता अनिता सिन्हा के अनुसार उनका यह एक प्रयोग, जिसके बारे में सोचना भी आसान नहीं था. उस प्रयोग में उनकी यह भारी सफलता साबित हुई है. यह खासकर इसलिए भी कि इससे पूर्व एक अन्य प्रयोग अखिलेश के नेतृत्व में असफल हो चुका था.

राजद बिहार में भाजपा और जदयू गठबंधन के लिए बड़ी चुनौती बना

इधर बिहार के एक लोकसभा और दो विधानसभा उपचुनाव के नतीजों ने भी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को नया जीवनदान दे दिया है. हमारी पटना संवाददाता सीमा सिन्हा के अनुसार राजद अब राज्य में भाजपा और जदयू गठबंधन के लिए बड़ी चुनौती बन कर सामने आया है. राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के जेल में होने के बावजूद उपचुनाव के नतीजों में उनके पुत्र पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के तेज की झलक दिखाई दे गई है.

नेता के तौर पर अपने को स्थापित कर दिखाया

इस कठिन अग्निपरीक्षा में अखिलेश यादव ने अपनी पहचान एक नेता के तौर पर स्थापित कर दिखाया है. पिछले साल जब यूपी विधानसभा चुनाव हुए थे, तब अखिलेश यादव ने दो मोर्चों पर लड़ाई लड़ी थी. एक मोर्चा था चुनाव मैदान का और दूसरा मोर्चा था समाजवादी पार्टी के भीतर की सियासत का. समाजवादी पार्टी टूट के कगार तक पहुंच गई. फिर भी समाजवादी पार्टी में अध्यक्ष के तौर पर अखिलेश यादव ने जगह बना ली थी. यह सफलता बहुत चमक नहीं पाई, क्योंकि विधानसभा चुनाव वे हार गए थे.

गठबंधन का दांव रहा कामयाब

अखिलेश का नया दांव कामयाब रहा. उन्हें मुख्यमंत्री पद जरूर छोड़ना पड़ा, मगर उनकी राजनीतिक समझ गलत नहीं थी. भाजपा का मुकाबला करने के लिए गठबंधन की जरूरत को उन्होंने सही समझा था. सहयोगी के तौर पर कांग्रेस का चुनाव तब गलत साबित हुआ. एक बार फिर जब उपचुनाव का मौका आया, तो अखिलेश ने अपनी समझ को सही साबित कर दिखाया. उन्होंने पहल कर बीएसपी से बातचीत की, मायावती को गठबंधन के लिए राजी किया.

आशान्वित नहीं थीं मायावती गठबंधन करने के बाद भी

हालांकि गठबंधन का श्रेय मायावती को भी दिया जाना चाहिए, मगर एक बात गौर करने की है कि उपचुनाव के दौरान मायावती कभी खुलकर गठबंधन के लिए वोट मांगती नहीं दिखी. इससे पता चलता है कि उन्हें इस गठबंधन की सफलता का अंदाजा नहीं था. वह विफलता की उम्मीद कर आगे की रणनीति और विकल्पों पर भी विचार कर रही थीं.

मोदी विरोध के केन्द्र बनकर उभरे अखिलेश

मोदी विरोध के केन्द्र बनकर उभरे अखिलेश यादव अब विपक्षी एकता के नायक बन गए हैं. महज उपचुनाव की दो लोकसभा सीटों का नतीजा इतना बड़ा नतीजा दे सकता है, यह बात उन्होंने साबित कर दिखलाई. सोनिया गांधी ने उपचुनाव से एक दिन पहले डिनर पार्टी दी थी. यही पार्टी अगर एक दिन बाद होती तो उस पार्टी के नायक अखिलेश यादव ही होते.

बिहार का अररिया लोकसभा सीट राजद की झोली में

इधर बिहार में भी राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव की आभा में उनके पुत्र पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का तेज झलक गया है. अररिया लोकसभा सीट और जहानाबाद विधान सभा सीट पर राजद की यह सफलता तेजस्वी यादव के नेतृत्व को एक बड़ी पहचान दे गया है. लालू प्रसाद में रहने के बावजूद तेजस्वी की चुनावी रणनीति बिहार में मृतप्राय मान लिए गए राजद को बड़ा जीवनदान दे गया है.

हार-जीत के गणित को बराबर कर दिया विधानसभा उपचुनावों ने

अररिया लोकसभा उपचुनाव का नतीजा भाजपा के लिए बड़ा गहरा सदमा है. अररिया में भी राजद उम्मीदवार ने भाजपा के प्रदीप सिंह को पछाड़ दिया है. लेकिन राज्य के दो विधानसभा उपचुनावों ने हार-जीत के गणित को बराबर कर दिया. जहानाबाद विधानसभा सीट पर जहां राजद ने जीत दर्ज की है, वहीं भाजपा ने बिहार की भभुआ विधानसभा सीट जीत लिया है.

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